मुख्यपृष्ठस्तंभउत्तर की बात : नाम बदलने की राजनीति

उत्तर की बात : नाम बदलने की राजनीति

राजेश माहेश्वरी लखनऊ

मोदी सरकार ने ‘नेहरू मेमोरियल एंड लाइब्रेरी’ का नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री स्मारक एवं पुस्तकालय’ कर दिया है। इस नाम बदलने का क्या ठोस तर्क या कारण हो सकता है? इतिहास के आलोक में अगर बात करें तो प्रधानमंत्री के रूप में यह भवन १६ साल तक पंडित नेहरू का आधिकारिक आवास था। उनकी स्मृतियां हैं। स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ी यादें और कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज यहां हैं। देश के दिवंगत प्रधानमंत्रियों की स्मृति में राजधानी दिल्ली में सैकड़ों एकड़ के भूखंड आवंटित किए गए हैं। उन्हें पर्यटन-स्थल भी बनाया गया है। जिन आवासों में नेतागण रहते थे, उन्हें स्मारक भी बनाया गया है और उन्हीं के नाम पर। तो फिर नेहरू के नाम से क्या परेशानी या समस्या है?
अब संस्थाओं के नाम ही नहीं बदले जाते योजनाओं के नाम और सरकारी विभागों के नाम भी बदले जाते हैं, जैसे योजना आयोग को नीति आयोग बना दिया गया और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। कृषि मंत्रालय को कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया गया। बीती जनवरी को राष्ट्रपति भवन के बगीचे का नाम बदलकर अमृत उद्यान किया गया था। नाम बदलने का फितूर और चलन भारतीय राजनीति में पुराना है। शहरों का नाम बदले जाने की सियासत यूपी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने शुरू की थी। उन्होंने यूपी के आठ शहरों का नाम बदला था। उन्होने अमेठी को छत्रपति शाहूजी महाराज नगर, हाथरस को महामायानगर, कानपुर देहात को रामबाई नगर, कासगंज को काशीराम नगर बनाया था। समाजवादी पार्टी के शासन में अखिलेश यादव ने मायावती द्वारा बदले गए शहरों के नामों को वापस ले लिया था। इस पैâसले के बाद राज्य में शहरों के नाम बदले जाने पर रोक लग गई थी। योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह सिलसिला फिर से शुरू हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी में सबसे पहले मुगलसराय स्टेशन और मुगलसराय तहसील का नाम वर्ष २०१७ में बदला। तहसील का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय तहसील किया गया और केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद अगस्त २०१८ में मुगलसराय स्टेशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन किया गया।
अक्टूबर २०१८ में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संगम नगरी इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने का पैâसला किया। यही नहीं योगी सरकार प्रयागराज के कई रेलवे स्टेशनों के नाम भी बदलने की पहल की। उनके प्रयास से फरवरी २०२० में प्रयागराज के चार रेलवे स्टेशनों के नाम भी बदल दिए गए। शहरों का नाम बदलने के इस सिलसिले को जारी रखते हुए सीएम योगी ने पैâजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। पहले अयोध्या शहर जिस फैजाबाद जिले के अंतर्गत आता था, अब उसका स्वरूप ही बदल दिया गया और पूरे जिले को अयोध्या बना दिया गया। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल से अलीगढ़ का नाम बदलने की कोशिश की जा रही हैं। इस तरह से लखनऊ को लक्ष्मणपुर करने, आगरा को अग्रवन, आजमगढ़ को आर्यमगढ़, सुल्तानपुर को कुशभवनपुर, फर्रुखाबाद को पांचाल नगर और बदायूं को वेद मऊ, फिरोजाबाद को चंद्रनगर और शाहजहांपुर को शाजीपुर, आजमगढ़ को आर्यमगढ़, मैनपुरी को मयानपुरी, संभल को कल्कि नगर या पृथ्वीराज नगर और देवबंद को देववृंदपुर करने की मांग तमाम संगठन और नेता बीते चार वर्षों से कर रहे हैं। नाम बदलने चलन सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि अब शहरों के छोटे स्थानों के नाम भी बदले जा रहे है।
राजनीतिक विशलेषकों के मुताबिक, शहरों के नाम बदले जाने से कोई शहर आधुनिक नहीं हो जाता और न ही शहर का नाम बदलने से लोगों के जीवन में कोई बदलाव होता है। बदलाव सिर्फ शहर का नाम बदले जाने की मांग करनेवाले नेता के रुतबे में दिखता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तक नाम बदलने की जरूरत क्या है? प्रधानमंत्री, अंतत:, देश का प्रधानमंत्री होता है और वह संवैधानिक होता है। यदि वैâबिनेट ने किसी स्थान, भवन, संस्थान, पुरस्कार आदि का नामकरण, किसी प्रधानमंत्री के नाम पर, तय किया है तो उसे एक अच्छी, खूबसूरत लोकतांत्रिक परंपरा के तौर पर स्वीकार करना चाहिए। यदि मौजूदा प्रधानमंत्री किसी पूर्व प्रधानमंत्री के स्मारक में हस्तक्षेप करता है और नाम ही बदल दिया जाता है, तो यह राजनीति की क्षुद्रता है। देश में बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे हैं मगर सरकार जनता का ध्यान भटकाने में लगी हुई है।
(लेखक उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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