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बिहार में जाति को लेकर तेज हुई राजनीति, विधान सभा चुनाव में एक साल देर ,अभी से ही चुनाव जीतने की कवायद

 

अनिल मिश्र/पटना

बिहार राजनीतिक रूप से उर्वर भूमि के लिए जाना जाता है। यहां के बुजुर्ग और युवा पीढ़ी को छोड़ दें तो बच्चा-बच्चा राज्य ही नहीं देश की राजनीति में बौद्धिक ज्ञान रखता है। राजनितिक रूप से परिपक्व यहां की युवा पीढ़ी किसी भी सरकार को बनाने और सत्ता से हटाने का माद्दा रखते हैं। कभी मंडल बनाम कमंडल की राजनीति और जाति के नाम पर बिहार में पन्द्रह वर्षों तक राज करने वाले लालू प्रसाद यादव एवं राबड़ी देवी परिवार ने राज किया। लेकिन कभी लालू प्रसाद यादव के करीबी और जयप्रकाश नारायण की अंदोलन में साथ रहे इंजीनियर नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनियरिंग के बदौलत लालू-राबड़ी शासन का अंत कर पिछले सोलह वर्षों से बिहार की राजनीति के धुरी बनकर बैठे हुए हैं। वहीं लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार आगामी विधानसभा चुनाव से पहले जाति कार्ड खेलकर सत्ता में पुनः वापसी करना चाहते हैं। जबकि इसे ही मुद्दे पर विपक्ष उनको घेरने पर लग गई है।

लोकसभा चुनाव के समय लालू प्रसाद यादव ने जदयू के वरिष्ठ नेता और टिकारी के विधायक रहे अभय कुशवाहा को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। वहीं राजपूत बाहुल्य और बिहार के चितौड़गढ़ से मशहूर औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल का टिकट देकर चुनाव मैदान में मे उतार दिया। औरंगाबाद से अभय कुशवाहा को मैदान में उतारने से इस संसदीय क्षेत्र पर राजपूतों का वर्चस्व तोड़ने में जहां राष्ट्रीय जनता दल को कामयाबी हासिल हुआ। वहीं अभय कुशवाहा ने लोकसभा पहुंचकर राष्ट्रीय जनता दल के लोकसभा में पार्टी के मुख्य भूमिका में नजर आने लगे। इस तरह लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग में फेल कर विधान सभा चुनाव के पहले कुशवाहा समाज को अपनी पार्टी की तरफ खिंचने का एक कदम काम किया।

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले बिहार की राजनीति में जातियों का विवाद बढ़ता जा रहा है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और जीतन राम मांझी के बीच बयानबाजी का दौर जारी है। अब जीतन राम मांझी ने लालू प्रसाद यादव को अपने पूर्वजों का नाम बताने की चुनौती दी है। कहा कि लालू जी अपने दादा और परदादा का नाम बताएं। इससे पता चल जाएगा कि लालू जी कौन जाति के हैं। जीतन राम मांझी गया के फतेहपुर में मीडिया को संबोधित कर रहे थे।

कल गया के फतेहपुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने साफ शब्दों में कहा कि “जाति जिनकी गड़बड़ होती है वही जाति की बात करते हैं। उन्होंने गलत बात फैलायी है। हमको शर्मा कहते हैं तो क्या हम शर्मा हैं? हम अपने बाबू जी, बाबा, परबाबा का नाम बता सकते हैं। लालू यादव अपने बाबा और परबाबा का नाम बताएं. लालू यादव ये नहीं बता पाएंगे।”
जीतन राम मांझी केंद्रीय मंत्री जाति विवाद पर बयानबाजी लालू प्रसाद यादव और जीतन राम मांझी के बीच जाति को लेकर विवाद तूल पकड़ लिया है। दोनों पार्टी की ओर से खूब बयानबाजी हो रही है। बता दें कि यह विवाद तेजस्वी यादव के बयान से शुरू हुआ। इसके बाद जीतन राम मांझी ने लालू यादव पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने लालू यादव को मुसहर बताया था।इसके बाद लालू यादव ने भी अपने बयान में जीतन राम मांझी को मुसहर बताया था।

पिछले दिनों नवादा अग्निकांड में मांझी ने कहा था कि इस घटना में यादवों का हाथ है। इसपर विपक्ष नेता तेजस्वी यादव ने जीतन राम मांझी को लेकर कहा था। कि जीतन राम मांझी मांझी आरआरएस स्कूल से पढ़े हुए हैं। लोग उन्हें प्यार से जीतन राम शर्मा कहते हैं। इसी बयान के बाद जीतन राम मांझी गुस्सा हो गये। लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर जमकर निशाना साधा था।
जीतन राम मांझी ने तेजस्वी यादव के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ‘लालू यादव गड़ेरिया हैं। उनके पिता गड़ेरिया के जन्में हुए हैं।इसलिए वे यादव नहीं हैं.’ जीतन राम मांझी के इस बयान पर लालू यादव ने भी पलटवार किया।उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘जीतन राम मांझी मुसहर हैं क्या?’ इसके बाद जीतन राम मांझी ने एक बार फिर लालू प्रसाद यादव पर निशाना साधा है।अब मांझी लालू यादव के बाबा और परबाबा तक पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद यादव अपने बाबा और परबाबा का नाम बतायें। इससे पता चल जाएगा कि कौन किस जाति का है। उन्होंने दावा किया है कि उन्हें अपने पिता, बाबा और परबाबा का नाम पता है।

इन दोनों नेताओं के इस बयान के बाद दोनों दलों के छुटभैय्ए नेता भी प्रतिदिन राज्य भर में एक दूसरे पर जाति को लेकर आमने-सामने हैं।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन बयानों से किस पार्टी का आगामी विधानसभा चुनाव में किन को ज्यादा फायदा पहुंच पाता है और किन को नुक़सान झेलना पड़ता है।अब आने वाले समय ही इन जातियों के कुंडली निकालने वाले को पता चल पायेगा।

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