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सियासतनामा : तारीफ बनाम आलोचना

सैयद सलमान

तारीफ बनाम आलोचना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे की तारीफों से अखबारों के पन्ने भरे हुए हैं। भाजपा नेता और प्रवक्ता केवल यह बताने में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं कि मोदी की यात्रा से देश का गौरव किस तरह बढ़ा है। वहीं भारत में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और पत्रकारों पर हमलों का मुद्दा उठाते हुए ७५ अमेरिकी सांसदों द्वारा बाइडेन को लिखे पत्र और कुछ सांसदों के बहिष्कार पर सत्तापक्ष खामोश रहा। व्हाइट हाउस के बाहर ही मोदी विरोध वाले भाषणों और ट्रकों पर मोदी के खिलाफ चले अभियान पर भी चुप्पी रही। अमेरिका दौरे में नरेंद्र मोदी की शाब्दिक त्रुटियों पर मजे लेने वालों की भी कमी नहीं है। अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल को लेकर उन की खूब खिल्ली उड़ाई गई। ऐसे में मोदी समर्थकों ने इसे देश के प्रधानमंत्री का अपमान बताया। लेकिन अगर यह दौरा ‘देश के प्रधानमंत्री’ का था तो प्रचार एक व्यक्ति ‘मोदी’ नाम का क्यों? तारीफ अगर व्यक्ति मोदी की तो आलोचना व्यक्ति मोदी की क्यों न हो? किसी व्यक्ति का महिमामंडन इसलिए सोच समझकर करना चाहिए।

फॉर्मूला ‘वन टू वन’
केंद्र में सत्तासीन भाजपा नीति मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की छिटपुट तैयारियां पिछले वर्ष ही शुरू हो गई थीं। लेकिन इस बार बड़े स्तर पर पटना में १५ दलों के लगभग २०-२५ बड़े नेताओं ने एकजुटता का प्रदर्शन कर विपक्षी एकता में जान डालने की भरपूर कोशिश की है। नीतिश कुमार की पहल पर हुई इस बैठक को सफल माना जा रहा है, जबकि भाजपा खुद को निश्चिंत दिखाने का प्रयास कर रही है। जो दल शामिल हुए उसमें भी आपस में अंतर्विरोध कम नहीं हैं, लेकिन सभी विचारधारा के नाम पर इकट्ठा होने का दावा कर रहे हैं। विपक्ष की रणनीति लोकसभा चुनाव में तकरीबन ४५० सीटों पर भाजपा के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार उतारने की है। यह कठिन टास्क वैâसे पूरा होगा, इसका खाका तैयार करना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि ‘वन टू वन’ के इस फॉर्मूले से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का होगा। उसे क्षेत्रीय दलों के साथ होनेवाले संभावित गठबंधन में लगभग २२५ से २३० सीटों पर लड़कर ही संतोष करना होगा। क्या कांग्रेस इस पर मानेगी? यही सवाल अहम है।

पोस्टर वॉर का खेल
अक्सर राजनीति के गिरते स्तर पर बात होती रहती है। बात क्या होती है, दिखाई भी देता है। अब देखिए न, मध्य प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं आरोपों-प्रत्यारोपों के माध्यम से पोस्टर युद्ध छिड़ गया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के ‘करप्शन नाथ’ लिखे पोस्टर भोपाल के कई इलाकों में लगाकर भाजपा ने इसकी शुरुआत कर दी। इससे राजनीतिक भूचाल आना ही था। इसके बाद शहर के कई इलाकों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी ‘शिवराज नहीं घोटाला राज’ लिखे पोस्टर लग गए। इन पोस्टर्स में ई-टेंडर, व्यापम, डंपर, यूरिया आदि घोटालों का जिक्र किया गया। इतना ही नहीं पोस्टर पर एक स्वैâनर भी था, जिसे स्वैâन करने पर १५ महीने की सरकार में हुए कथित घोटालों की पूरी सूची उपलब्ध थी। हालांकि, रोचक बात यह है कि दोनों पार्टियां इस पोस्टर वॉर से खुद का संबंध स्वीकार नहीं कर रही हैं और दोनों का कहना है कि आम जनता ऐसा कर रही है। एक-दूसरे की छवि खराब करने के लिए पोस्टरों का सहारा लेना आगे भी जारी रह सकता है।

घबराएं नहीं डटे रहें
ईडी और सीबीआई से क्या विपक्षी दलों को घबराने की जरूरत है? देखने में तो यही आता है कि केंद्र के इशारे पर जब भी केंद्रीय जांच एजेंसियां सक्रिय होती हैं तो विपक्ष ही निशाने पर होता है। विपक्ष को बैकफुट पर करने की यह साजिश अब कोई छिपी बात नहीं रही। भाजपा के कई नेता तो ऐसी घटनाओं को पूरे अहंकार के साथ बताते भी हैं। हालांकि, सत्यपाल मलिक जैसे कुछ लोग हैं, जिन्हें यह विश्वास है कि यह खेल अब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है। क्योंकि भाजपा २०२४ का चुनाव हारने जा रही है। वह तो यहां तक कह रहे हैं कि ईडी और सीबीआई से घबराएं नहीं, बल्कि उसका डटकर मुकाबला करें और नतीजों में जब भाजपा हार जाए तो मोदी एंड कंपनी की जांच करा लेना। सत्यपाल मलिक राज्यपाल रहते हुए भी सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं। किसानों और पहलवानों के मुद्दे पर भी वह मुखर भूमिका में रहे हैं। मलिक की भूमिका से यह तो स्पष्ट हो गया है कि अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं। क्या यह संख्या आगे चलकर बढ़ेगी?
(लेखक देश के प्रमुख प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक व मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं।)

(उपरोक्त आलेखों में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)

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