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सियासतनामा : प्रयोग का उल्टा असर!

सैयद सलमान

प्रयोग का उल्टा असर!
कर्नाटक में चुनावी सरगर्मियों के बढ़ने के साथ-साथ `जुमलेबाज हटाओ, देश बचाओ’ का नारा तेजी से गूंज रहा है। इतना ही नहीं कर्नाटक में भाजपा के प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद से ही वहां हंगामा मचा हुआ है। टिकट नहीं मिलने से असंतुष्ट पार्टी नेता इस्तीफा पर इस्तीफा दे रहे हैं। भाजपा से बगावत कर पार्टी छोड़ चुके विधायक नेहरू ओलेकर का तो दावा है कि हर विधानसभा से हजारों भाजपा कार्यकर्ता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं। भाजपा से नाराजगी का आलम यह है कि कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री और तीन बार के विधायक लक्ष्मण सावदी अपने मरने के बाद अपने शव को भी भाजपा दफ्तर के सामने से न ले जाने की नसीहत दे रहे हैं। इनके अलावा भी कई बड़े चेहरों के टिकट काटे जा चुके हैं। दरअसल, कर्नाटक चुनाव में भाजपा गुजरात मॉडल का प्रयोग कर रही है, जिसके तहत कई वरिष्ठ और दिग्गज नेताओं सहित पूर्व सीएम और डिप्टी सीएम रहे नेताओं के भी टिकट काट दिए गए। कहीं यह प्रयोग उल्टा असर न दिखा दे।
कड़वा सवाल
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान एक बार फिर से चर्चा में हैं। सत्यपाल मलिक का दावा है कि पुलवामा हमला मोदी सरकार की लापरवाही की वजह से हुआ। इतना ही नहीं मलिक ने खुद प्रधानमंत्री मोदी को इस पूरे मामले में घेरते हुए आरोप लगाया है कि उन्हें मोदी ने चुप रहने की सलाह दी थी। मलिक के दावे पर अगर यकीन किया जाए तो उस समय सीआरपीएफ ने गृह मंत्रालय से काफिले को ले जाने के लिए पांच एयरक्रॉफ्ट की मांग की थी लेकिन गृह मंत्रालय ने सीआरपीएफ को एयरक्रॉफ्ट देने की मंजूरी नहीं दी। इन आरोपों पर मलिक के खिलाफ मानहानि का मुकदमा किए जाने की तैयारी चल रही है लेकिन एक बार फिर सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या पुलवामा हमले का चुनावी फायदा लेने की कोशिश की गई थी? इस पर सत्यपाल मलिक ने तो हामी जताई ही है, प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार से जवाब मांगना शुरू कर दिया है। दरअसल, पूरे घटनाक्रम को सेना के अपमान से जोड़ कर कड़वे सवालों की धार को कुंद कर दिया जाता है।
अब केजरीवाल की बारी!
इसी हफ्ते आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने की खबर आई। क्या यह महज संयोग है कि आनन-फानन अरविंद केजरीवाल को सीबीआई ने आबकारी घोटाले के मामले में पूछताछ के लिए तलब कर लिया? राहुल गांधी का मामला अभी सामने है कि कैसे उन्हें सजा का एलान होते ही उनकी लोकसभा सदस्यता रद करने की फाइल तेजी से बढ़ी और वह सांसद से पूर्व सांसद हो गए। इतना ही नहीं, उनके घर छोड़ने का भी प्लान बना दिया गया और आखिर राहुल ने अपना सरकारी आवास खुद ही मांगी गई एक महीने की समय सीमा के काफी पहले खाली कर दिया। राहुल मामले के बाद जिस तरह से केजरीवाल मुखर होकर पीएम मोदी और भाजपा पर हमलावर थे वह आश्चर्यजनक था। क्योंकि केजरीवाल राहुल समर्थक विपक्षी नेताओं में शुमार नहीं किए जाते हैं। दिल्ली और पंजाब में उन्होंने कांग्रेस को ही बेदखल कर `आप’ की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। कांग्रेस से तो खैर राजनीतिक विरोध था लेकिन भाजपा के साथ भिड़ना उन्हें अब भारी पड़ गया है, जिसका बदला लेने का रिकॉर्ड रहा है।
अपराध पर अंकुश?
पूर्व सांसद और माफिया अतीक अहमद व उसके भाई अशरफ की सरेआम मीडिया के सामने और पुलिस सुरक्षा के बीच हुई हत्या से यूपी प्रशासन कटघरे में है। मीडिया तो लगातार खबर चला ही रहा था कि अतीक भी मारा जाएगा। अतीक की हत्या से दो दिन पहले ही उसके बेटे असद अहमद का एनकाउंटर कर दिया गया था। तब अतीक के हवाले से अलग-अलग खबरें आर्इं कि अतीक का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटे के गम में वह गुमसुम हो गया है, वह पूछता रहा है, पुलिस अधिकारियों को धमका रहा है। हां, योगी आदित्यनाथ से लेकर केशव प्रसाद मौर्या और अन्य भाजपा नेताओं तक के एक सामान `विजयी बयान’ ट्रेंड करते रहे। अतीक परिवार के प्रमुख सदस्यों के खात्मे का अपराध पर अंकुश लगाने की नीयत से कम, सांप्रदायिक विद्वेष बढ़ाने में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। यह बात चिंतनीय है। चाहे उमेश पाल की हत्या हो या फिर अतीक की, अपराध तो हुआ, वह भी पुलिस सुरक्षा के बीच, तो क्या अब भी कहा जाएगा कि यूपी की कानून व्यवस्था एकदम सही है?

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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