सैयद सलमान मुंबई
लोकसभा चुनाव के पहले इंडिया गठबंधन में शामिल दो राज्यों के मुख्यमंत्री जेल पहुंचा दिए गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो अभी भी जेल में हैं। निचली अदालत से जमानत मिलने के बावजूद जेल से रिहा होने से पहले ही उन्हें उच्च न्यायालय में अपील कर जेल से निकलने नहीं दिया गया। दूसरी तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन भी केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर आए थे। हालांकि, उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। आखिर उनकी गिरफ्तारी हुई और वो हाल ही में जेल से जमानत पर बाहर आए। विपक्ष का आरोप है कि अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी बदले और राजनीतिक दुर्भावना से की गई। हेमंत सोरेन जमानत मिलने के बाद फिर से सक्रिय हो गए हैं। बहुत जल्द झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उनके बाहर आने से विपक्ष के हौसले बुलंद हुए हैं। विपक्ष को लग रहा है कि जल्द ही केजरीवाल को भी जमानत मिल जाएगी। सोरेन और केजरीवाल को अगर मजलूम बनाकर पेश करने में इंडिया गठबंधन कामयाब होता है तो भाजपा को जालिम होने का तमगा मिल जाएगा।
भीड़ का हिस्सा
बिहार में नीतीश कुमार को लेकर हमेशा संशय बना रहता है। उनकी राजनीतिक चालों को समझना आसान नहीं होता। कभी भाजपा और कभी राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने का अनूठा रिकॉर्ड उनके नाम है। हालिया संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में वो भाजपा के साथ थे। एनडीए सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें ज्यादा महत्व मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, फिर भी वो भाजपा के साथ बने हुए हैं। लेकिन उनका मन कचोट तो रहा ही होगा कि कहां वो कभी इंडिया गठबंधन के सूत्रधार थे और कहां एनडीए की भीड़ का हिस्सा बनकर रह गए हैं। अब उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज का मुद्दा उठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव लाकर उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया है कि वो बिहार को लेकर गंभीर हैं। हालांकि, चर्चा है कि भाजपा अब उन्हें रास्ते से हटाकर किसी भाजपा नेता या चिराग पासवान को प्रोजेक्ट करने की रणनीति बना रही है। सुशासन बाबू की चतुराई की असल अग्निपरीक्षा अभी बाकी है।
अगला निशाना जेजेपी
जिन पार्टियों के साथ भी भाजपा पहले गठबंधन करती है उसे बाद में निपटा देती है। उसका अगला निशाना हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) है। हालांकि, जेजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा से अलग होने का एलान कर दिया था। इसके बाद हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को इस्तीफा देना पड़ा था। तब भाजपा ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना कर अपनी साख बचाई थी। नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि हरियाणा में सरकार के खिलाफ माहौल बन चुका है। खासकर किसान और जाटों का जबरदस्त विरोध है। ऐसे में भी भाजपा ने हरियाणा में अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दिया है। यह किसी और को नहीं, बल्कि जेजेपी को खत्म करने का मंसूबा है। जेजेपी को अलग-थलग कर वह अपने राष्ट्रीय नेताओं की इमेज भुनाकर जेजेपी के वोट बैंक पर कब्जा करना चाहती है। अब जेजेपी की भूमिका पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
योगी और सहयोगी
नौकरियों में ओबीसी और एससी-एसटी आरक्षण को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब अपने ही लोगों के निशाने पर है। हालिया लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन से पिछड़ने के बाद राज्य में भाजपा के सहयोगियों की नाराजगी सामने आई है। पहले केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल व अब निषाद पार्टी के मुखिया और यूपी में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर योगी सरकार को घेरा है। दोनों ने योगी सरकार पर आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे को ठीक से हैंडल नहीं करने का आरोप लगाया है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह से विपक्ष ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा उठाया, उसके आगे भाजपा की राम मंदिर, सांप्रदायिक भेदभाव, बुलडोजर या अपराधियों को ढेर करने वाली कोई रणनीति काम नहीं आई। भाजपा को अपनी इन्हीं उपलब्धियों पर नाज था, जबकि जनता को रोजी-रोटी की आस थी। भाजपा और योगी आदित्यनाथ जनता की इस नब्ज को अपने अहंकार के कारण पकड़ नहीं पा रहे। नतीजतन भाजपा के छोटे-छोटे सहयोगी दलों की भी अब जुबान खुल गई है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)