धीरेंद्र उपाध्याय
मुंबई
• बिगड़ी आबोहवा से बीमारियां हो रहीं हावी
प्रदूषण दुनियाभर के लिए एक चुनौती बना हुआ है लेकिन हिंदुस्थान जैसे देशों पर इसकी ज्यादा ही मार है। हमारे देश के शहरों में प्रदूषण की समस्या मानव जीवन के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। तमाम प्रयासों के बावजूद शहरों का प्रदूषण नहीं घट रहा है। यह चिंता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि स्विस फर्म आईक्यूएयर की नवीन वर्ल्ड एयर रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में ५० प्रदूषित शहरों में से ३९ हिंदुस्थान के हैं। हालांकि, प्रदूषित देशों की रैंक में वर्ष २०२२ में हिंदुस्थान का स्थान आठवां रहा, जबकि २०२१ में यह पांचवें पायदान पर था। इसलिए यह तो माना जा सकता है कि हिंदुस्थान ने हालात में सुधार तो किए हैं लेकिन शहरों की मौजूदा स्थिति से लगता है कि और सुधार की जरूरत है। आमतौर पर ऐसी रिपोर्ट जारी होने के पीछे यह जानने का मकसद होता है कि देश और शहर ने वायु प्रदूषण के स्तर में सुधार के कितने प्रयास किए हैं? लेकिन प्रदूषित शहरों में भारतीय शहरों की भरमार यह खुलासा करती है कि अभी तमाम प्रयासों की जरूरत है। शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो इसका साफ अर्थ है कि यह लोगों के रहने के लिए सुरक्षित नहीं है। अच्छे मानवीय जीवन के लिए जरूरी है कि शहरों की आबोहवा बेहतर होनी चाहिए। लेकिन जिन शहरों में प्रदूषण की ज्यादा मार है, वहां बीमारियां भी हावी हो रही हैं। ज्यादातर शहरों की दिक्कत यह है कि प्रदूषण रोकने के लिए जितने प्रयास किए जाते हैं उससे अधिक प्रदूषण के रास्ते भी खुले नजर आते हैं। ऐसे में रोकथाम के प्रयास बेअसर दिखाई देते हैं। शहरों का बिना थमे विस्तार, वाहनों की आवाजाही और कारखानों से गैसों का उत्सर्जन आबोहवा बिगाड़ने के मुख्य कारकों में हैं लेकिन इन पर सरकारी एजेंसियों का नियंत्रण नाकाफी नजर आता है।
एक साल में हुईं ९० लाख मौतें
प्रदूषण खतरनाक है, सेहत के लिए अच्छा नहीं है। ये बातें हम सब जानते हैं लेकिन प्रदूषण से हर साल जितनी मौतें होती हैं, वे हमें आगाह करने के लिए काफी हैं। एक नई स्टडी के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर एक साल में ९० लाख मौतों के लिए सभी तरीके का प्रदूषण जिम्मेदार है। इसमें कारों, ट्रकों और उद्योगों की दूषित हवा से मरनेवालों की संख्या वर्ष २००० के बाद से ५५ फीसदी तक बढ़ गई है। यह शोध ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज डेटाबेस और सिएटल के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन से मिले डेटा पर आधारित है।
होती हैं ये बीमारियां
हिंदुस्थान और चीन प्रदूषण से होनेवाली मौतों के मामले में दुनिया में सबसे आगे हैं। हिंदुस्थान में हर साल करीब २४ लाख और चीन में २२ लाख लोगों की मौत प्रदूषण से होती है। इन मौतों के प्रमाण पत्र में मौत का कारण प्रदूषण नहीं है। वे हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के वैंâसर, फेफड़ों की दूसरी बीमारियों और डायबिटीज से संबंधित हैं।
प्रभावित राज्यों में से एक है महाराष्ट्र
मुंबई विश्व बैंक समूह द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक पत्र में विश्व स्तर पर सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों की सूची में महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है। इसकी ९७.६ फीसदी आबादी वायु प्रदूषण के खतरनाक या असुरक्षित स्तर विशेष रूप से पीएम २.५ एरोसोल के संपर्क में है। वर्ल्डपॉप ग्लोबल हाई रेजोल्यूशन पॉपुलेशन डेटा सेट से जनसंख्या और एक रासायनिक परिवहन मॉडल का पता लगाने के लिए २११ देशों और क्षेत्रों में पीएम २.५ प्रदूषकों की जानकारी के लिए रिमोट सेंसिंग डेटा का इस्तेमाल किया गया। इसमें महाराष्ट्र के क्षेत्रफल और अर्थव्यवस्था को देखते हुए लंबे समय से वायु प्रदूषण के कारण सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक रहा है। इसके परिणाम विशेषज्ञों के लिए आश्चर्यजनक नहीं थे। ये वाहनों, निर्माण, उद्योग, विकास कार्य, खराब अपशिष्ट प्रबंधन और स्रोत पर उत्सर्जन को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत भारतीय गुणवत्ता परिषद द्वारा प्रमाणित एक स्वतंत्र वायु गुणवत्ता वैज्ञानिक सचिन पवार ने कहा कि ये शहर नियमित रूप से दैनिक पीएम २.५ औसत ३५ल्ु/स्३ से अधिक दर्ज कर रहे हैं। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक उपक्षेत्रीय अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम लंबे समय से जानते हैं कि आंतरिक महाराष्ट्र वायु प्रदूषण से अधिक प्रभावित है, क्योंकि यह औद्योगिकीकरण का बहुत तेज गति से विस्तार कर रहा है। इसके अलावा मध्य महाराष्ट्र और विदर्भ में प्रदूषण अधिक स्पष्ट है और यह कोकण जिलों की तुलना में जोखिम में बड़ा अंतर बनाता है। हम अगले कुछ हफ्तों में राज्य भर में ४७ नए वायु गुणवत्ता मॉनिटर स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, ताकि हमें यह पता चल सके कि समस्या वाले क्षेत्र कहां हैं?
महाराष्ट्र को रु.२,९८१ करोड़ की निधि
१५वें वित्त आयोग की सिफारिश पर विशेष रूप से राज्य में वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए महाराष्ट्र को कुल २,९८१ करोड़ रुपए की निधि आवंटित की गई है। निधि का उपयोग वित्तीय वर्ष २०२६ के अंत तक किया जाना है। वित्त वर्ष २०२५ के अंत तक राज्य सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले २,७७३ करोड़ रुपए में से ८० फीसदी यानी २,२१८ करोड़ रुपए ईवी नीति पर खर्च करने का प्रस्ताव है। इसमें मुख्य रूप से प्रमुख शहरी समूहों में बस बेड़े को विद्युतीकृत करने पर विशेष जोर है। शेष ५५५ करोड़ स्थानीय स्तर जैसे कि महाराष्ट्र के वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाना, धूल नियंत्रण उपायों को लागू करना, निर्माण, उद्योग, बेकरी को विनियमित करना और श्मशान पर खर्च किए जाने हैं।
हवा भी पैदा कर रही है भारी जोखिम
दिल्ली में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में अर्बन लैब के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी ने कहा कि हिंदुस्थान में वायु प्रदूषण के इर्द-गिर्द की कहानी में आमतौर पर उत्तर भारत शामिल है। लेकिन महाराष्ट्र और बिहार जैसे देश के अन्य हिस्सों में हवा भी स्वास्थ्य के लिए भारी जोखिम पैदा कर सकती है। विशेष रूप से महाराष्ट्र और बिहार में समस्या मॉनिटरिंग स्टेशनों की कमी है। इनमें महाराष्ट्र में अधिकांश मुंबई तक ही सीमित हैं और अधिकांश पिछले दो वर्षों में स्थापित किए गए हैं। बिहार में अतिरिक्त स्टेशन पिछले साल के अंत में ही आए हैं। रिमोट सेंसिंग डेटा की कुछ सीमाएं हैं। इसलिए जैसे-जैसे हम जमीन से अधिक डेटा एकत्र करेंगे, हम यह देख पाएंगे कि यह समस्या अब दिल्ली तक ही सीमित नहीं है।
जीवनकाल हो रहा कम
वायुमंडलीय वैज्ञानिक और आईआईटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि यूनिवर्सिटी ऑफ यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित अपडेटेड एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) में बताया गया है कि पीएम२.५ के संपर्क में आने से महाराष्ट्र में औसत नागरिक का जीवनकाल कुल चार साल और मुंबई में ३.७ साल कम हो रहा है। पुणे में पीएम २.५ के संपर्क में आने से जीवन प्रत्याशा औसतन ४.२ साल कम हो रही है। विदर्भ के गोंदिया और भंडारा जिले सबसे अधिक प्रदूषित पाए गए, जहां जीवन प्रत्याशा क्रमश: ५.१ और पांच साल कम हो गई।
बिगड़ा स्वरूप दर्शाते नियोजन
ये सभी कारक न केवल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, बल्कि शहर नियोजन के बिगड़े स्वरूप को भी दर्शाते हैं। यह बात सही है कि वाहनों से हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया जा रहा है लेकिन इस दिशा में अभी लंबी दूरी तय करनी होगी। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहन भी शहरी प्रदूषण को खत्म करने का सौ फीसदी उपाय नहीं माने जा सकते हैं लेकिन इनके बढ़ने से शहरों को प्रदूषण से कुछ राहत मिलेगी। प्रदूषण रोकने में शहरों का बेहतर नियोजन अहम भूमिका निभा सकता है। पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों का इस दिशा में अहम योगदान हो सकता है।
बड़े शहर ज्यादा परेशान
वायु प्रदूषण से बड़े शहर ज्यादा परेशान हैं। हर तरह के वाहन, उद्योग, सब प्रदूषण बढ़ाने में योगदान देते हैं। शहर जैसे-जैसे विकसित होते हैं, प्रदूषण भी वैसे-वैसे बढ़ता जाता है। वायु प्रदूषण दक्षिण एशिया में मौत का प्रमुख कारण है, जिसके बारे में पहले से पता है लेकिन इन मौतों में हो रही वृद्धि का मतलब है कि वाहनों और ऊर्जा उत्पादन से विषाक्त उत्सर्जन बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो इलाके सबसे गरीब हैं वहां प्रदूषण से होनेवाली मौतें बढ़ रही हैं। यह समस्या दुनिया के उन इलाकों में सबसे ज्यादा खराब है, जहां जनसंख्या सबसे ज्यादा है। घरों में बायोमास का जलना, कोयले का दहन और पराली जलाना मौतों के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना कार्यक्रम सहित घरेलू वायु प्रदूषण से निपटने हेतु हिंदुस्थान के महत्वपूर्ण प्रयासों के बावजूद मौतों की संख्या अधिक बनी हुई है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के बावजूद देश में वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों के लिए मजबूत केंद्रीयकृत प्रशासनिक प्रणाली का अभाव है।