उम्मीद का घड़ा दिल में उबरा
सौ आशाओं की मोतियों से जड़ा
घड़ा था कुछ कंकर कुछ सोने से भरा
कंकर जिसके हाथ लगा वो पानी में चलता गया
पानी उमड़ता गया मझधार में वो फंसता गया
सोना जिसके हाथ आया वो आसमां के बादलों में उड़ता गया
अनोखी वहां सहर थी कुछ पाने की एक लहर थी
दुनियादारी निभाते हुए अपनी खबर से बेखबर रहे
संग दिल तंग दिल सब निकले
रिश्तों पर कटार पड़ गई
जैसे पहाड़ की चोटी गिर गई
असर था बेअसर मस्त थी सबकी चाल
न पानी न आसमां ने बेहतरीन बनाया चौपाल
था सारा कसूर कुदरत की करामात का
जिसने दिखाया ये सारा खेल मनुष्य को धरती का खिलौना बना के
मन की गहराइयों में उतर कर देखना हर सवाल का जवाब मिल जाएगा
किसी को तथ्य किसी को ख्याल मिल जाएगा
जिसने इन दोनों को पाया उसको हर्षोल्लास मिल जाएगा।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा