अमूल्य निधि

भोर की लालिमा मन को उद्विग्न कर गई,
जीवन के अमूल्य क्षण
तैर कर स्मृति पटल पर आ गए।
मेरे हम सफर आज तू मेरे साथ नहीं,
आज का दिन
सात जन्मों के साथ निभाने का दिन है
हम दोनों की प्रतिज्ञा का दिन है।
प्रतीक्षा है मुझे नए जन्मों की,
न भी मिले कोई जन्म
तेरे एक जीवन का साथ
मेरी सांसों की अवधी को
सार्थक कर गया है।
जुदाई की पीड़ा को
किसी एक ने तो झेलना था
यह मेरे लिए लिखी है
नहीं पता था मुझे।
मैंने ‘श्राद्ध’ नहीं किया था तुम्हारा
जब विछोह ही नहीं हुआ
तो ‘श्राद्ध’ कैसे करती?
और क्यों करती ?
अब भी हर पल
तू साथ ही है मेरे
जीवन राग सुनाती हूं
सुनती हूं तेरी वाणी में
यही अमूल्य निधि है
मेरे शेष जीवन के लिए।
-बेला विरदी।

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