योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
देश में चुनावी खुमार चरम पर है। स्टार प्रचारक रैलियों और भाषणों में व्यस्त हैं, तो कार्यकर्ता गली मोहल्लों के नुक्कड़-नुक्कड़ पर चाय की चुस्कियों के साथ अपने-अपने नेताओं का गुणगान करने में लगे हैं। हालांकि, इस बार चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की असली जंग तो सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है। फेसबुक, एक्स, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्मों पर वीडियो, मीम्स और कार्टून को हथियार बनाकर राजनीतिक वार-पलटवार के जरिए छवि चमकाने और बिगाड़ने की होड़ लगी है। लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को जागरूक करने के लिए इस बार डिजिटल प्लेटफॉर्म का दायरा बढ़ा है। इस बदलते ट्रेंड का प्रभाव परंपरागत तरीकों से प्रचार के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रिंटिंग कारोबार पर पड़ा। प्रचार के लिए बाजार में झंडा, सीटी, बैनर और बिल्ला सहित अन्य प्रचार सामग्री की मांग तेजी से घटी है। यदि चुनाव सामग्री के थोक कारोबारी की मानें तो इस बार मांग ही नहीं आ रही है। प्रचार सामग्री का व्यापार करने वाले लोग कहते हैं कि उम्मीदवार प्रचार सामग्री पर पहले के मुकाबले अब आधा भी खर्च नहीं कर रहे हैं। इस बार के चुनाव में प्रिंटिंग कारोबार पर मंदी छाई हुई है। इस लोकसभा चुनाव में डिजिटलीकृत प्रणाली ने चुनावी प्रचार पर अपना गहरा प्रभाव डाला है। इससे सियासी प्रचार के बदले चलन से प्रिंटिंग कारोबार चौपट हो गया है।
४० प्रतिशत भी कम रह गया कारोबार
प्रचार सामग्रियों को बेचने वाले दुकानदारों का कारोबार चालीस फीसदी से भी कम रह गया है। दुकानदार आरबी सिंह कहते हैं कि चुनाव सामग्री की घटती मांग के बाद तो कई लोगों ने कारोबार ही बदल दिया और कई समेटने में लगे हैं। सोशल मीडिया पर लगातार बढ़ रहे चुनाव प्रचार के चलन ने प्रचार सामग्रियों की दुकानों में सन्नाटा कर दिया है।
पोस्टर नहीं रील्स की बढ़ी मांग
चुनाव में प्रत्याशी डिजिटल कैंपेनिंग पर काम कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि प्रचार का तरीका पूरी तरह बदल गया है। पहले चुनाव के दौरान पोस्टरों को दीवारों पर चस्पा किया जाता था। इसमें चुनाव आयोग ने कई नियम लागू कर दिए हैं। प्रत्याशी अब इससे किनारा कर रहे हैं। वैसे भी अब मीम्स और डिजिटल पोस्टर का जमाना है। इसी की मांग बाजार में है। प्रत्याशियों की ओर से रील्स की सबसे ज्यादा डिमांड है। ऐसे में चुनावी सभा और रैलियों की रील्स में नए प्रयोग कर तैयार किया जा रहा है। राजनीतिक दल भी मतदाताओं को रिझाने के लिए सोशल मीडिया को हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।