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पांच बार नमाज पढ़ता था कैदी  …ओडिशा हाई कोर्ट ने रद्द की मौत सजा फैसले पर उठे सवाल

सामना संवाददाता / भुवनेश्वर
ओडिशा हाई कोर्ट का एक फैसला इस समय सवालों के घेरे में आ गया है। दो जजों की खंडपीठ ने एक मुस्लिम युवक की मौत की सजा इसलिए कम कर दी क्योंकि वह पांच वक्त नमाज पढ़ता है। कोर्ट ने नमाज पढ़ने के आधार पर ही दोषी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दोषी पर एक छह वर्ष की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या करने का दोष है।
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने पैâसले में दोषी की सजा कम करते हुए कहा कि वह (दोषी) दिन में कई बार अल्लाह से दुआ करता है। वह दंड स्वीकार करने को भी तैयार है, क्योंकि उसने अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस अपराध को ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, जिसमें सिर्फ मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है। बेंच ने आगे कहा कि वह एक पारिवारिक व्यक्ति है और उसकी ६३ साल की बूढ़ी मां और दो अविवाहित बहनें हैं। वह मुंबई में पेंटर का काम करता था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि अपीलकर्ता सुधार और पुनर्वास से परे है। सभी तथ्यों और परिस्थितियों, गंभीर परिस्थितियों और कम करने वाली परिस्थितियों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता के लिए मृत्युदंड ही एकमात्र विकल्प है

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