लोकमित्र गौतम
पिछले साल अक्टूबर में कई सालों के सैन्य गतिरोध के बाद जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हुआ था तो माना जाने लगा था कि शायद अब चीन प्रौढ़ता के साथ सरहद में तनाव के मुद्दे को हल करने की कोशिश करेगा। लेकिन चीन पहले भी कई बार इस तरह की झूठी भाव-भंगिमाएं दिखाकर जल्द ही अपने असली और विश्वासघाती इरादों पर लौटता रहा है इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पिछले साल रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और शी जिनपिंग की ५ सालों बाद जो ५० मिनट तक सौहार्दपूर्ण मुलाकात हुई थी, उसके तीन महीने बाद ही फिर से चीन अपना विश्वासघाती दांव चल दिया है।
दरअसल, पिछले दिनों चीन ने अपने होतान प्रांत में दो नए जिलों (काउंटीज) की घोषणा की है और इन जिलों के भौगोलिक क्षेत्रफल में हमारे लद्दाख के भी कुछ हिस्सों को शामिल कर लिया है, जिसका भारत ने बीते ३ जनवरी २०२४ को कड़ा विरोध किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि चीन अपने होतान प्रांत के दो नए जिलों में लद्दाख के जिन कुछ हिस्सों को शामिल करने की कोशिश की है, भारत उसकी कड़ी भर्त्सना करता है, भारत चीन के ऐसे अवैध कब्जों को कभी स्वीकार नहीं करेगा। भारतीय प्रवक्ता ने यह भी कहा कि चीन के इस तरह नई काउंटीज का एलान करने से भारत की संप्रभुता पर कोई असर नहीं होगा।
स्लाइसिंग रणनीति
दरअसल, चीन ने होतान प्रांत में जो दो नए जिले हेआन और हेकांग बनाने का एलान किया है, उनमें भारत के केंद्रशासित प्रदेश के लद्दाख के कुछ हिस्सों को भी शामिल दिखाया है, साथ ही पिछले दिनों चीन ने तिब्बत से निकलनेवाली यारलुप त्यांगपो नदी जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानते हैं, उसमें एक बड़ा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस पर भी भारत ने आपत्ति जताई है, जिसके उत्तर में चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह प्रोजेक्ट बिल्कुल सेफ है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मांओ निंग ने कहा है कि दशकों के गहन अध्ययन के बाद इस हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। लेकिन चीन कहने को कुछ भी कहता रहे, वह विश्वास के योग्य नहीं है। दरअसल, १९६२ के युद्ध में विजय हासिल करने के बाद वह एक मनोवैज्ञानिक हैंगओवर से चिपका हुआ है। उसे लगता है कि वह भारत और चीन के बीच अस्पष्ट सीमांकन को अपनी मर्जी से अपने पक्ष में तय कर लेगा इसीलिए चीन बार-बार धोखे की रणनीति अपनाते हुए कभी किसी समझौते के लिए राजी हो जाता है और कभी उसे बिना किसी वजह के तोड़ देता है।
दरअसल, २०२० में गलवान घाटी में १९६२ के बाद जो भारत और चीन की सेनाओं के बीच खूनी झपड़ हुई थी, वह भी चीन के इसी विश्वासघात का नतीजा थी। १९६२ के बाद से दोनों देशों के बीच यह समझौता मौजूद था कि दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे से फिजिकल टकराव मोल नहीं लेंगी, लेकिन चीन ने २०२० में यह समझौता चुपचाप तोड़ दिया। वह भारत के साथ दरअसल स्लाइसिंग रणनीति अपना रहा है। वह धीरे से पहले भारतीय क्षेत्रों पर दावा करता है, फिर वहां बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की कोशिश करता है। चीन का यह भू-राजनीतिक विस्तारवाद है। साल २०२० में उसकी इसी ओछी हरकत के कारण दोनों देशों की सेनाओं में खूनी झड़प हुई थी, जिसमें २० भारतीय जवान शहीद हो गए थे। उस समय भी चीनी सैनिकों ने मनमाने ढंग से सीमा के उल्लंघन की कोशिश की थी। सिर्फ लेह लद्दाख की तरफ ही नहीं, चीन सालों से अरुणाचल प्रदेश को भी अपना दक्षिणी तिब्बत बताता रहा है और इस तरह वह अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करने की कोशिश करता है। पिछले कुछ सालों में उसने यहां के भी कई गांवों के नाम ऐसे ही मनमर्जी से बदले हैं, लेकिन भारत इस मामले में पूरी तरह से दृढ़ है कि इस तरह की हरकतों से चीन हमारी संप्रभुता पर हमला नहीं कर सकता।
मनोवैज्ञानिक तनाव
भारत के साथ चीन के एक नहीं करीब आधा दर्जन सीमा विवाद हैं, जो लेह लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक पैâले हुए हैं। उत्तराखंड और सिक्किम में भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। सवाल है आखिर यह सब करते हुए चीन चाहता क्या है? दरअसल, वह पूरे दक्षिण एशिया को अपना बगलबच्चा समझता है। चीन चाहता है कि दक्षिण एशिया में उसका दबदबा बने, जिससे उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट, वन रोड’ सफल हो और इसके जरिए वह इस पूरे इलाके की बड़ी अर्थव्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठ जाए, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक भारत मजबूत है इसलिए वह अपनी हरकतों से भारत को कमजोर करना चाहता है, लेकिन आज भारत चीन से कमजोर नहीं है, हाल के सालों में भारत ने चीन को ‘जैसे को तैसा’ जवाब देते हुए सीमा क्षेत्र में जो निर्माण किया है, चीन उससे परेशान है और वह भारत को मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव में रखने की कोशिश कर रहा है।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)