मुख्यपृष्ठअपराधअपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, रिहा आरोपी पर लटकी तलवार!...

अपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, रिहा आरोपी पर लटकी तलवार! बिलकिस मामले में दिए आदेश पर सवाल

बिलकिस बानो मामले में ११ दोषियों के समय पूर्व रिहाई का मामला एक नया मोड़ लेता दिख रहा है। यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। मई २०२२ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद ११ दोषियों ने समय से पहले रिहाई की मांग की और गुजरात सरकार ने उन सभी को रिहा कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने गत मंगलवार को मई, २०२२ के अपने ही आदेश पर संदेह जताया है, जिसमें इस मामले में एक दोषी की समय पूर्व रिहाई याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि क्या दोषी की याचिका कानूनी रूप से उचित थी? ऐसे में अपने ही पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद रिहा आरोपी पर तलवार लटक रही है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इस बात पर तीखे सवाल उठाए कि दोषी राधेश्याम भगवानदास शाह के कहने पर सुप्रीम कोर्ट ने उसकी क्षमा याचिका पर वैâसे विचार किया? पीठ के अनुसार, जुलाई २०१९ में गुजरात हाई कोर्ट के इनकार के बाद, शाह को कानून के तहत रिट याचिका दायर करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में चुनौती देने की आवश्यकता थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने न केवल उसकी रिट याचिका स्वीकार की, बल्कि गुजरात सरकार को उसकी माफी याचिका पर पैâसला करने का भी निर्देश दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि क्या गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को कोई चुनौती दी गई? यदि नहीं, तो इस अदालत को जुलाई २०१९ के आदेश को रद्द करने का अधिकार वैâसे मिल गया?’ अदालत ने ऐसा इसलिए पूछा, क्योंकि उसने पिछले साल अगस्त में गुजरात सरकार द्वारा ११ दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो की याचिका पर सुनवाई की थी।
मौजूदा छूट नीति में शीघ्र रिहाई पर रोक
पीठ ने इस बात पर गौर किया कि इससे पहले कि महाराष्ट्र सरकार इस पर कोई पैâसला लेती, शाह ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करके एक आदेश प्राप्त किया कि गुजरात सरकार १९९२ की नीति के तहत उनकी माफी याचिका पर पैâसला कर सकती है। हालांकि, गुजरात सरकार की २०१४ की मौजूदा छूट नीति बलात्कार के दोषियों की शीघ्र रिहाई पर रोक लगाती है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एएसजी एसवी राजू के सामने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा कि ‘क्या आपने इस रिट याचिका का विरोध किया? क्या गुजरात सरकार ने यह नहीं बताया कि उनकी रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है? गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ रिव्यू पिटीशन क्यों नहीं दायर किया? बिलकिस बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने अदालत से सहमति जताते हुए कहा कि कानून के तहत शाह के लिए एकमात्र उपाय गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करना था।

क्या था बिलकिस बानो केस?
२००२ के गुजरात दंगे के वक्त पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो जान बचाकर भाग रही थी, जब उसके साथ गैंगरेप हुआ था। उस दौरान बिलकिस के परिवार के कई सदस्यों को मार दिया गया था। इस केस में ११ दोषियों को २००८ में आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट को नहीं मिला जवाब
मई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद, शाह और १० अन्य दोषियों ने समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन किया और गुजरात सरकार ने दोषी ११ लोगों को रिहा कर दिया। पीठ को हैरानी इस बात से पैदा हुई कि मई २०२२ का आदेश गुजरात सरकार के लिए सभी ११ दोषियों को रिहा करने का आधार बन गया, लेकिन इस बात का कोई जवाब सामने नहीं आया कि हाई कोर्ट के आदेश को स्पष्ट रूप से चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वैâसे विचार किया? इसके बाद शीर्ष अदालत ने प्वाइंट उठाया कि शाह ने जुलाई २०१९ में गुजरात हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अपनी माफी की याचिका के साथ महाराष्ट्र सरकार से भी संपर्क किया क्योंकि केस की सुनवाई मुंबई में हुई थी। इस संवेदनशील मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की अदालत में स्थानांतरित कर दी थी, जिसने जनवरी २००८ में सभी ११ लोगों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

अन्य समाचार