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मुंबई की रेल सुरक्षा को लेकर उठे सवाल, ट्रैक मेन्टेनेंस में ‘दक्ष’ कर्मचारियों के अभाव से कभी भी हो सकता है हादसा!

रामदिनेश यादव / मुंबई
ओडिशा के बालासोर में भीषण ट्रेन दुर्घटना ने हर किसी को द्रवित कर दिया है। इस हृदय विदारक घटना के बाद से रेलवे यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल उठने लगे हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के लोगों का दिल भी इस घटना से दहल गया है। मुंबई से देशभर के अलग अलग हिस्सों में ट्रेन जाती है और अन्य राज्यों से ट्रेनें यहां आती हैं। इसके अलावा मुंबई की लाइफलाइन कही जानेवाली लोकल ट्रेन भी रोजाना तीन हजार से अधिक सेवाएं देती हैं। ऐसे में आधुनिक तकनीकी और डिवाइस के अभाव में यहां भी दुर्घटना होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। रेल तकनीकी से जुड़े जानकारों की मानें तो यहां लोकल ट्रेनों में संभवत: आधुनिक तकनीकी का उपयोग हो रहा है। लेकिन मुंबई को आधुनिक सेंसर सिग्नलिंग सिस्टम की जरूरत है। इसके साथ ही एक्सप्रेस ट्रेनों में ऐसी कई गाड़ियां हैं, जिनमें ऐसी अत्याधुनिक तकनीकी का अभाव है। एंटी कोलेजन सिस्टम, सेंसर सिग्नलिंग सिस्टम, ट्रैक मेंटेनेंस के अभाव के साथ कर्मचारियों पर काम के दबाव के चलते यहां भी दुर्घटना की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
मुंबई में सेंट्रल रेलवे और पश्चिम रेलवे मंडल से रोजाना लगभग ५०० एक्सप्रेस गाड़ियों की आवाजाही और तीन हजार से अधिक लोकल ट्रेन छोड़ी जाती हैं। दुर्घटना से पहले सचेत करनेवाला डिवाइस एंटी कोलेजन सिस्टम सभी गाड़ियों में नहीं लगा होता है। मुंबई से जानेवाली कुछ ट्रेनों में लगा है, लेकिन अन्य राज्यों से आनेवाली ट्रेनों में तो न के बराबर यह सिस्टम है। इससे कभी सामने से आनेवाली गाड़ी टकरा सकती है।
दूसरी सबसे बड़ी गड़बड़ी आधुनिक सेंसर सिग्नलिंग सिस्टम का अभाव है। मुंबई में लोकल ट्रेन के लिए यह सिस्टम है। लेकिन एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए कम है। यहां सिग्नलिंग सिस्टम को और पुख्ता करने की जरूरत है। तीसरी समस्या एक्सप्रेस गाड़ियों के लेट होने पर मैन्युअल सिग्नलिंग सिस्टम का उपयोग होता है। ऐसे में यह भी रिस्की ही होता है। सिंग्नलिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ घातक होता है।

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