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महायुति सरकार में न्यायिक प्रणाली पर उठे सवाल … सत्ता की हनक में दब गया युवती की मौत का मामला!

सामना संवाददाता / मुंबई
पुणे की एक युवती की मौत के मामले में जो न्यायिक प्रक्रिया हुई है वह केवल उस युवती का नहीं, बल्कि पूरे महिला समाज का अपमान है। इस मामले में मंत्री संजय राठौड़ को राहत मिली, लेकिन यह राहत समाज के लिए धक्का है। यह मामला फिर से दिखाता है कि सत्ता और पैसा कितने भी गंभीर मामलों की सच्चाई को दबा सकते हैं।
न्याय का संघर्ष
इस घटना ने समाज की गंभीर सच्चाई को उजागर किया। एक उच्च पदस्थ नेता का नाम इस मामले में बार-बार सामने आया। आरोपों के बावजूद उचित जांच के अभाव में सभी संदेश ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। यह मामला न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करता है। पीड़ित परिवार को न्याय देने की बजाय उनकी उम्मीदों का गला घोंट दिया गया। यह स्थिति पूरे समाज के लिए शर्मनाक है।
चित्रा वाघ का संघर्ष और समाज की उदासीनता
इस मामले में चित्रा वाघ ने आवाज उठाई, लेकिन क्या उन्हें उचित समर्थन मिला, नहीं? समाज का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ मूकदर्शक बना रहा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने वालों को राजनीतिक निशाने पर लिया जाता है और मामले को दबाने की कोशिश होती है। यह युवती की मौत सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक शर्मनाक घटना है, जिसे हम नजरअंदाज कर रहे हैं।
जब संजय राठौड़ को राहत दी गई, तो एक सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में सत्य की जीत है या सत्ता और धन का खेल? अगर एक उच्च पदस्थ व्यक्ति को बिना पूरी जांच के बरी कर दिया जाए, तो आम नागरिकों का न्यायिक प्रणाली पर विश्वास वैâसे रहेगा? क्या पीड़िता के जीवन की कोई कीमत नहीं थी? इन सवालों के जवाब मिलने चाहिए, वरना समाज का विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
व्यवस्था को बदलने की जरूरत
यह मामला समाज के सामने एक आईना है कि अन्याय का विरोध करने वालों को निशाना बनाया जाता है पीड़ित परिवार को चुप करा दिया जाता है और सत्ता अपनी ताकत का खुला प्रदर्शन करती है। हमें इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। न्याय प्रणाली पर विश्वास बनाए रखना है तो ऐसी घटनाओं में पारदर्शिता और कठोर कार्रवाई जरूरी है।

सत्ता और महिला सुरक्षा का विरोधाभास
यह मामला स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए कानून का सख्त रवैया महज दिखावा है। आम नागरिकों के लिए कानून जितना कठोर होता है, सत्ता धारकों के लिए उतना ही कमजोर। जांच धीमी पड़ जाती है, सबूत गायब हो जाते हैं और अंत में `केस बंद’ हो जाता है। इसका मतलब यह है कि सरकार केवल महिला सुरक्षा पर भाषण देती है, लेकिन असल में महिलाओं की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है।

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