राजेश विक्रांत
मुंबई
सुप्रीम कोर्ट की जय हो। सुप्रीम कोर्ट की जागरूकता ने बुलडोजर वालों का मुंह काला कर दिया है। बुलडोजर युग में जीने वालों को न्यायिक युग में पहुंचा दिया है। बुलडोजर के जरिए जो लोग तोड़-फोड़ में यकीन रखते हैं, उन्हें उनकी औकात बता दी है। बुलडोजर वालों को उनकी औकात बताना जरूरी था भी।
देश के कुछ राज्यों में बढ़ती बुलडोजर संस्कृति से सुप्रीम कोर्ट काफी चिंतित था। इसलिए उसने डिमोलिशन यानी बुलडोजर एक्शन पर मंगलवार को रोक लगा दी है। यह रोक एक अक्टूबर तक के लिए लगाई गई है। कोर्ट का कहना है कि सार्वजनिक अतिक्रमण पर ही बुलडोजर एक्शन होगा। सड़कों, गलियों, फुटपाथ या सार्वजनिक जगहों पर किए अवैध निर्माण को समुचित प्रक्रिया के साथ ढहाने की छूट रहेगी। कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर राज्यों को निर्देश देते हुए कहा है कि बुलडोजर न्याय का महिमामंडन बंद होना चाहिए। कानूनी प्रक्रिया के तहत ही अतिक्रमण हटाएं।
बुलडोजर संस्कृति का दुखद पहलू ये है कि इसे सिर्फ एक खास धर्म के खिलाफ ही लागू किया जा रहा था। इसमें पक्षपात एकदम साफ- साफ दिखता था। असम हो या उत्तर प्रदेश, राजस्थान हो या मध्य प्रदेश, बुलडोजर का सबसे ज्यादा उपयोग मुस्लिम आरोपियों के घर, दुकान या मकान गिराने के लिए ही किया गया है। अनेक मामलों में प्रथम दृष्टया यह देखा गया कि बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के ही बुलडोजर को इंसाफ का तथाकथित जरिया समझकर कार्रवाई कर दी गई। एक पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में पिछले २ साल में करीब १.५ लाख घर बुलडोजर से गिराए गए हैं। इनमें से अधिकांश घर मुस्लिम और हाशिए पर पड़े लोगों के थे।
कहा जाता है कि बुलडोजर का सबसे ज्यादा उपयोग (दुरुपयोग, अन्याय) उत्तर प्रदेश में किया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीति का मूल केंद्र बुलडोजर बन गया था।
एक लंबे समय से देश में योगी की पहचान बुलडोजर की राजनीति करने वाले नेता की रही है इसलिए उत्तर प्रदेश में ही सबसे अधिक बुलडोजर कार्रवाई देखी गई। वह अपने इस एक्शन के जरिए राज्य में कानून का रुतबा बुलंद होने का संदेश दिया करते थे। वह अपराधियों में बुलडोजर कार्रवाइयों के माध्यम से कानून का भय पैदा करना चाहते थे। वैसे यह भी सही है कि कई बार योगी की बुलडोजर नीति पर सवाल उठाए गए और वे सवाल उचित भी थे। क्योंकि हकीकत में उन्होंने अति कर दी थी।
इसके बाद देश में बुलडोजर के खिलाफ एक तगड़ा माहौल बनना शुरू हुआ। फरवरी २०२४ में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि हिंदुस्थान में जान-बूझकर मुस्लिमों के घर व व्यापारिक
प्रतिष्ठान आदि बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं। संस्था के मुताबिक, पिछले वर्षों में जिन घरों को सरकार ने बुलडोजर से गिराए, उन्हें गिराने में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर वालों को जबरदस्त कानूनी थप्पड़ मारा है। उनके मुंह पर कालिख पोत दी है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में बुलडोजर से डिमोलिशन कार्रवाई के खिलाफ दाखिल जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बुलडोजर, कहीं का भी हो, उसको पंद्रह दिनों तक पार्किंग में खड़े कर देने का आदेश जारी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक मामले पर सुनवाई करते हुए कुछ समय पहले भी बुलडोजर जस्टिस पर लानत बरसाई थी। तब कोर्ट ने कहा था कि किसी शख्स के किसी केस में सिर्फ आरोपी होने के चलते उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। आरोपी का दोष बनता है या नहीं, यानी क्या उसने यह अपराध किया है, यह तय करना कोर्ट का काम है सरकार का नहीं। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, कानून के शासन वाले इस देश में किसी शख्स की गलती की सजा उसके परिजनों को ऐसी कार्रवाई करके या उसके घर को ढहाकर नहीं दी जा सकती। कोर्ट इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को नजरंदाज नहीं कर सकता। ऐसी कार्रवाई को होने देना कानून के शासन पर ही बुलडोजर चलाने जैसा होगा। अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव हों या कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह, इन सभी का कहना है कि भाजपा तुष्टीकरण की राजनीति को साधने के लिए बुलडोजर चलवाती है। ये और मामलों में तर्कसंगत हो या न हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के मामले में सही माना जा सकता है। और ये भी सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने सबसे ज्यादा हाथ योगी आदित्यनाथ के ही बांधे हैं।
इसलिए अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम रोक के बाद योगी आदित्यनाथ प्रदेश में कानून का डंडा किस माध्यम से चलाते हैं? वैसे, सुप्रीम कोर्ट ने उनके हाथ तो कसकर बांध ही दिए हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ कौन सी तरकीब अपनाते हैं, यह आने वाला समय बताएगा।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)