मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : क्या मोदी पूरे तानाशाह बनना चाहते हैं?

राज की बात : क्या मोदी पूरे तानाशाह बनना चाहते हैं?

राजेश विक्रांत मुंबई

लोकतंत्र के लिए तानाशाही घातक होती है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तानाशाही को लोकतंत्र से ऊपर रखना चाहते हैं। आप उनके कोई भी बड़े फैसले देख लीजिए तो आपको उसमें से तानाशाही की बू आएगी ही। चाहे इलेक्टोरल बॉन्ड की बात हो, ब्रॉडकास्ट बिल हो, वक्फ बोर्ड बिल या फिर एक देश, एक चुनाव का ताजातरीन शगूफा, इसके पीछे तानाशाही का शुरुआती चेहरा ही दिखता है। मोदी जी के बारे में कहा जाता है कि उनका एजेंडा एकदम फिक्स रहता है, लेकिन वे शुरुआत बड़े ही सौम्य तरीके से करते हैं, ताकि किसी को मालूम न पड़े कि एजेंडे के पीछे आखिर है क्या?
वे पिछले कुछ समय से अपने भाषणों में प्रेस की आजादी की बड़ी-बड़ी बात करते थे, तभी समझने वाले समझ गए कि मोदी जी कोई नया कांड करने वाले हैं। उनका नया कांड था ब्रॉडकास्ट बिल। उसके जरिए उनकी इच्छा डिजिटल मीडिया पर शिकंजा कसने की थी, लेकिन भला हो मुंबई हाई कोर्ट का कि उसने मोदी जी के मंसूबों पर पानी फेर दिया। मुंबई हाई कोर्ट ने संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियम, २०२३ को रद्द कर दिया है। इसमें केंद्र सरकार को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके प्रतिष्ठानों के बारे में तथाकथित फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिए तथ्य जांच इकाई-फैक्ट चेकिंग इकाई- एफसीयू स्थापित करने का अधिकार दिया गया था।
दरअसल, अप्रैल २०२३ में, केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने आईटी नियम, २०२१ में संशोधन करके एफसीयू की स्थापना की। इसके बाद स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडिया मैगजीन (एआईएम) ने इंटरनेट प्रâीडम फाउंडेशन के माध्यम से आईटी संशोधन नियम, २०२३ के खिलाफ मुंबई हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें नए नियमों को मनमाना, भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला और अस्पष्ट कहा गया। इसके बाद मोदी की मंशा पूरी होने में सुप्रीम कोर्ट ने पहला रोड़ा डाला और मार्च २०२४ में प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत एफसीयू की स्थापना संबंधी सरकारी अधिसूचना पर रोक लगा दी। इसके बाद जुलाई २०२४ में एफसीयू का बचाव करते हुए केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एफसीयू लोगों को गलत सूचना फैलाने से रोकेगा। मेहता ने कहा, ‘यह दृष्टिकोण फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए सबसे कम प्रतिबंधात्मक तरीका है।’
नए आईटी नियमों के अनुसार, सरकार फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को एफसीयू की मदद से केंद्र सरकार के व्यवसाय से संबंधित किसी भी सामग्री/समाचार को हटाने के लिए कह सकती है, जिसे फर्जी, झूठा या भ्रामक के रूप में पहचाना गया हो। सरकार द्वारा नियुक्त एक संगठन ऐसी सामग्री का मध्यस्थ होगा और यदि मध्यस्थ संगठन के निर्णय का पालन नहीं करते हैं, तो वे आईटी अधिनियम, २००० की धारा ७९ के तहत दोषी माने जा सकते हैं।
आपको समझ में आया सारा खेल? जबकि आज का समय सोशल मीडिया का ही है। मजे की बात ये है कि मोदी सरकार आज से नहीं, बल्कि २०१९ से ही सोशल मीडिया को कंट्रोल करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन सफल नहीं हुई थी। इसलिए काफी सोच-विचार कर संशोधित नया आईटी नियम २०२३ लाया गया। ऊपर से देखने में नियम भले ही सौम्य दिखता हो लेकिन अंदर से काफी खतरनाक है। ये नियम पूरे के पूरे सोशल मीडिया को अपने शिकंजे में कसने वाले हैं। ये तो अच्छा हुआ कि मुंबई हाई कोर्ट को इन नियमों के पीछे का मूल मकसद समझ में आ गया और कोर्ट ने इन्हें रद्द कर दिया, अन्यथा आने वाले दिनों में सोशल मीडिया के काफी बुरे दिन आने वाले थे।
गोदी मीडिया, भक्त मीडिया के नशे में चूर मोदी को सोशल मीडिया की बादशाहत कैसे पचती? आज २१वीं सदीं का यह नया दौर इसी न्यू मीडिया का है। इस न्यू मीडिया की जन-जन तक इतनी सस्ती और आसान पहुंच हो गई है कि नए ‘हाइपर-लोकल मीडिया’ का उदय हो गया है और यही मोदी की तानाशाही प्रवृति को पच नहीं रहा है।
ब्लॉगर से लेकर वाया पोर्टल संचालक व यूट्यूबर तक। फेसबुक व इंस्टाग्राम यूजर से लेकर पॉडकास्टर और वेबकास्टर तक। ट्वीट-ट्वीट, एक्स-एक्स, इंस्टा-इंस्टा, आदि-आदि की नई जमात ने मोदी के तानाशाही सपने में जबसे पलीता लगाना शुरू कर दिया, तब से मोदी जी इसी उधेड़बुन में थे कि वैâसे सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया जाए। कैसे ‘फ्री सोसाइटी’ पर गुलामी का शिकंजा कसा जाए। कैसे ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ को गुलामी गान में बदला जाए, इसीलिए नए आईटी नियम लाने की तैयारी हुई। तानाशाही न करें तो मोदी जी की सांस रुक जाए। गोदी मीडिया की लल्लो-चप्पो से उनका पेट नहीं भरता।
कॉर्पोरेट ने नफरत फैलाने, झूठ बोलने और मोदी के गुणगान के लिए टीवी मीडिया लगा रखा है फिर भी सरकार दिन-रात इसी फिक्र में रहती है कि डिजिटल मीडिया पर कैसे अंकुश लगाया जाए। कभी ब्रॉडकास्ट बिल तो कभी सरकारी एजेंसी से फैक्ट चेक की कोशिश करके, इन सब पर मुंबई हाई कोर्ट ने पानी फेर दिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी जी तानाशाही लाने के लिए आगे क्या गुल खिलाते हैं?
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

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