मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : गुजरात में बढ़ता विदेशी निवेश!

राज की बात : गुजरात में बढ़ता विदेशी निवेश!

द्विजेंद्र तिवारी मुंबई

कुछ दिन पहले भारत में विदेशी निवेश को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वे बहुत चौंकानेवाले हैं। भारत सरकार के डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआई टी) यानी उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा दिसंबर २०२४ में जारी रिपोर्ट ने गुजरात में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के तेजी से बढ़ने की कहानी को सामने रखा। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल २००० से सितंबर २०२४ तक गुजरात में आए कुल एफडीआई का ८६ प्रतिशत केवल पिछले एक दशक (अप्रैल २०१४ से सितंबर २०२४) में आया है। यह एक ओर गुजरात के आर्थिक विकास को दर्शाता है, लेकिन दूसरी ओर अन्य राज्यों, विशेषकर महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक रूप से मजबूत राज्यों की हिस्सेदारी में गिरावट का संकेत भी देता है। इस अवधि में महाराष्ट्र में कुल एफडीआई का लगभग २९ प्रतिशत, कर्नाटक में २४ प्रतिशत और गुजरात में १७ प्रतिशत आया। केंद्र में मोदी सरकार आने के मात्र दो वर्ष पहले के आंकड़ों पर गौर करें तो यह विशाल अंतर स्पष्ट हो जाएगा। अप्रैल २००० से नवंबर २०१२ तक महाराष्ट्र में एफडीआई ३३ प्रतिशत आया, जबकि इसी अवधि में गुजरात का आंकड़ा लगभग ४.५ प्रतिशत रहा। २०१४ के बाद से मोदीजी का गुजरात एफडीआई में कुलांचे मार रहा है।
आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल २००० से मार्च २०१४ तक गुजरात ने मात्र ९.५१ बिलियन डॉलर का एफडीआई आकर्षित किया था, जबकि अप्रैल २०१४ से सितंबर २०२४ तक यह ५७.६५ बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस अभूतपूर्व वृद्धि ने गुजरात को भारत के एफडीआई मानचित्र पर सबसे प्रमुख स्थान पर ला दिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह वृद्धि अन्य राज्यों की कीमत पर हासिल की गई है?
महाराष्ट्र बनाम गुजरात : प्रतिस्पर्धा या पक्षपात?
लंबे समय से महाराष्ट्र भारत के आर्थिक विकास और एफडीआई आकर्षण का केंद्र रहा है। मुंबई जैसे वैश्विक आर्थिक केंद्र की एफडीआई हिस्सेदारी में गिरावट यह सवाल खड़ा करती है कि क्या केंद्र सरकार की नीतियों ने गुजरात को अनुचित लाभ पहुंचाया है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य होने के कारण गुजरात को निवेशकों के लिए ‘अत्यधिक प्राथमिकता’ दी गई, जिससे महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों के अवसर घट गए?
गुजरात में भारी निवेश आकर्षित करने के लिए ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ जैसे बड़े आयोजन किए गए, जबकि महाराष्ट्र जैसे राज्यों को इस तरह की व्यापक नीतिगत और प्रचारात्मक मदद नहीं मिली। कई आलोचकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने गुजरात को निवेशकों के लिए एक ‘विशेष प्राथमिकता क्षेत्र’ बना दिया, जिससे अन्य राज्यों की आर्थिक प्रगति धीमी पड़ गई।
गुजरात की एफडीआई सफलता का राज
गुजरात की एफडीआई वृद्धि को राज्य की नीतिगत स्थिरता, औद्योगिक बुनियादी ढांचे और व्यापारिक सुगमता के प्रयासों का नतीजा बताया जा रहा है। हालांकि, इसके आलोचक यह तर्क देते हैं कि ये उपलब्धियां कई बार अन्य राज्यों के विकास को रोकने की कीमत पर हासिल हुई हैं। उदाहरण के लिए कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां, जो पहले महाराष्ट्र या अन्य राज्यों में निवेश करने की योजना बना रही थीं, उन्हें गुजरात में आकर्षित किया गया। गुजरात को बंदरगाहों, राजमार्गों और औद्योगिक गलियारों जैसे बुनियादी ढांचे के विकास में केंद्र से अधिक वित्तीय और नीतिगत समर्थन मिला।
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य, जो पारंपरिक रूप से निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र थे, हाल के वर्षों में एफडीआई आंकड़ों में पिछड़ गए हैं।
राष्ट्रीय औसत की तुलना में गुजरात की प्रगति
डीपीआईआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष २०२४-२५ की पहली छमाही में गुजरात ने ३.९५ बिलियन डॉलर का एफडीआई प्राप्त किया, जो पिछले वर्ष २.२९ बिलियन डॉलर था। यह ७२.५ प्रतिशत की बढ़त को दर्शाता है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर एफडीआई में ४५.४ प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो २०.४९ बिलियन डॉलर से बढ़कर २९.७९ बिलियन डॉलर हो गया।
यह स्पष्ट है कि गुजरात का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर था, लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह विकास वास्तव में पूरे भारत के लिए लाभकारी है? यदि एक राज्य के लिए निवेश को आकर्षित करने की प्रक्रिया अन्य राज्यों के विकास को प्रभावित करती है तो क्या इसे समावेशी विकास कहा जा सकता है?
‘फाइनेंशियल कैपिटल ऑफ इंडिया’ मुंबई ने २०१४ से पहले के वर्षों में गुजरात की तुलना में ज्यादा एफडीआई आकर्षित किया, लेकिन २०१४ के बाद से यह रुझान बदल गया। कई उद्योगों और निवेशकों ने गुजरात को अपनी प्राथमिकता दी।
क्या यह समावेशी विकास है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात का एफडीआई प्रदर्शन भले ही रिकॉर्ड तोड़ रहा हो, लेकिन यह समावेशी विकास के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा करता है। भारत जैसे विशाल देश में जहां हर राज्य के पास अपनी विशेषताएं और क्षमताएं हैं, केवल एक राज्य का प्रमुखता से विकास बाकी राज्यों के विकास को कमजोर कर सकता है।
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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