द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई
फेसबुक, व्हॉट्सऐप, ट्विटर, आर्टिफाशियल इंटेलिजेंस, इंस्टाग्राम जैसे क्रांतिकारी आविष्कार अमेरिका या यूरोपीय देशों में ही क्यों हुए? कार, रेल और हवाई जहाज का आविष्कार वहीं क्यों हुआ? ज्यादातर दवाइयां वहीं क्यों बनाई जाती हैं? ये सवाल हमेशा से उठते रहे हैं और इसका जवाब भी हमारे पास है, पर उससे हमारी सरकार सीख नहीं लेती।
उन देशों में बिजनेस, उद्योग-व्यापार से शिक्षा का सीधा संबंध है। वहां ज्ञान प्राप्त करके विद्वान बनने के लिए शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि शिक्षा का सीधा संबंध बिजनेस से होता है।
प्राथमिक शिक्षा के बाद विज्ञान विषयों में सीधा उद्योग से संबंध रहता है। हमारे भारत देश की तरह वहां यूंही नहीं कोई बीएससी, एमएससी कर लेता। अगर कोई बीएससी, एमएससी करता है तो भी उसके पास इतना कौशल होता है कि कोई भी उद्योग उसे काम दे। आर्ट्स के विषयों तक में भी ऐसी ही रोजगार की स्पष्टता है। हम शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने के लिए लेते हैं और नौकरी मिलने के बाद कौशल प्राप्त करते हैं इसलिए जिन्हें नौकरी नहीं मिलती, उनका ज्ञान व्यर्थ चला जाता है क्योंकि उसका कोई उपयोग नहीं होता। भारत विशाल जनसंख्या वाला देश है, जहां बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। कहने को तो मोदी सरकार ने इसे हल करने के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी की समस्या अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
२०१३ से २०२३ तक भारत में बेरोजगारी दर में कई परिवर्तन आए। २०१३ में बेरोजगारी दर लगभग ४.९ज्ञ् थी, जो २०१५ में घटकर ४.७ज्ञ् पर आ गई। लेकिन २०१८ में यह दर बढ़कर ६.१ज्ञ् हो गई। २०१९ में यह दर ५.८ज्ञ् थी और २०२० में कोविड-१९ महामारी के कारण यह ७.१ज्ञ् तक बढ़ गई। २०२१ में महामारी के प्रभाव के बावजूद बेरोजगारी दर में कुछ सुधार देखा गया और यह ६.८ज्ञ् पर आ गई। २०२३ तक, यह दर बढ़कर लगभग ७.२ज्ञ् रही। ये सरकारी आंकड़े हैं, जिन पर पूरी तरह भरोसा करना कठिन है। पर ये आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं कि भारत में बेरोजगारी एक गंभीर और निरंतर समस्या है।
भारत की शिक्षा प्रणाली में अभी भी कौशल विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। कॉलेज और विश्वविद्यालयों से निकलने वाले कई स्नातक व्यावहारिक कौशलों में पिछड़ जाते हैं, जो उन्हें रोजगार बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक हैं। सरकार की औद्योगिक नीतियां और योजनाएं अक्सर व्यावहारिकता में कमज़ोर साबित होती हैं। कई उद्योग अपनी आवश्यकताओं के अनुसार योग्य कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे हैं।
लघु और मध्यम उद्यमों को सरकार से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलता है। ये उद्यम रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन पूंजी की कमी और जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाएं इनके विकास में बाधा डालती हैं। इसमें जीएसटी सबसे बड़ा कारण बनकर उभरा है। दूसरा प्रमुख कारण यह है कि कई उत्पाद अब कालबाह्य हो चुके हैं और उन पर शोध और विकास नहीं हुआ। बड़ी कंपनियां पहले प्री प्रोडक्शन के लिए छोटे उद्यमों पर काफी निर्भर रहती थीं, अब यह निर्भरता काफी कम हो चुकी है। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रोजगार सृजन के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जो उन्हें भारत से अलग बनाते हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों में शिक्षा प्रणाली में कौशल विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। वे नियमित रूप से अपने शैक्षिक पाठ्यक्रमों को रोजगार क्षेत्रों और बाजार की मांगों के अनुरूप बदलते और ढालते रहते हैं। इन देशों में उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच मजबूत सहयोग होता है, जिससे छात्रों को उद्योग की वास्तविक आवश्यकताओं के बारे में जानकारी मिलती है और वे उचित प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।
अनुसंधान पर वहां बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे नए व्यवसाय और रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र मिलकर अनुसंधान एवं विकास में निवेश करते हैं। हमारे यहां प्राइवेट कंपनियां अनुसंधान पर बिलकुल खर्च नहीं करतीं।
जरूरी है कि शैक्षिक पाठ्यक्रमों को रोजगार व बाजार की मांगों के अनुसार अद्यतन किया जाए और व्यावहारिक कौशलों पर अधिक जोर दिया जाए। इसे सिर्फ चुनावी फायदे, लुभावने नारे की तरह इस्तेमाल न किया जाए। उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच मजबूत साझेदारी स्थापित की जाए, ताकि छात्रों को उचित प्रशिक्षण और उद्योग की आवश्यकताओं की जानकारी मिल सके।
भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या लगभग ४२.३ करोड़ है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों में कृषि श्रमिक, निर्माण श्रमिक, घरेलू कामगार, छोटे व्यापारी और स्व-रोजगार वाले लोग शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल श्रम शक्ति का लगभग ८१ज्ञ् असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।
इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या बहुत बड़ी है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के लिए रोजगार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और बेहतर कामकाजी परिस्थितियां सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नीतियों और योजनाओं पर कोई काम नहीं हो रहा है। यह वर्ग दो वक्त के भोजन के लिए संघर्ष में अपना जीवन खपा देता है। उसके स्वास्थ्य और उसके बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी उपाय नाकाफी हैं। वह गरीब पैदा होता है और विरासत में गरीबी छोड़ जाता है। इन सभी कारणों के समन्वित प्रभाव से भारत में बेरोजगारी की समस्या गंभीर बनी हुई है। इसका समाधान करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार, कौशल विकास, औद्योगिक विकास और प्रभावी सरकारी नीतियों का कार्यान्वयन आवश्यक है। इसके साथ ही प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बिठाने और क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के प्रयास भी महत्वपूर्ण हैं। केवल एक समग्र दृष्टिकोण और ठोस नीतियों के माध्यम से ही इस समस्या को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है।
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)