राजेश विक्रांत
मुंबई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अब ५६ इंच का सीना कहां गया? क्या वह अब सिकुड़ गया है? २०१९ में उन्होंने पाकिस्तान को घुसकर मारने का दावा किया था और जीतकर पांच साल सत्ता में रहे भी। उनके बाद भी कुर्सी पर आसीन हुए हैं, पर कश्मीर में आतंकी हमले रुक नहीं रहे हैं। उनके तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक आतंकी हमलों में कम से कम १२ सैनिकों की शहादत हुई है। धारा ३७० के तहत विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद से कश्मीर में २०२१ से अब तक अकेले जम्मू क्षेत्र में तकरीबन ५४ सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं।
इसका मतलब यह है कि तीसरी बार मोदी सरकार बनने और उनकी डबल इंजन की सरकार होने से आतंकवाद पर कोई नियंत्रण नहीं हुआ है। उल्टे आतंकियों का हौसला बहुत बढ़ गया है। दरअसल, पाकिस्तान पोषित आतंकियों को साफ-साफ पता है कि मोदी सिर्फ बोलबचन करते हैं। उन्हें कड़े पैâसले लेना नहीं है। उन्हें बड़ी-बड़ी फेंकना आता है। ज्यादा से ज्यादा वे जनता को उल्लू बनाने के लिए फर्जीकल स्ट्राइक कर देंगे, इससे ज्यादा उनकी कोई औकात नहीं है। इस वजह से आतंकी जब चाहें तब हमले कर देते हैं। मोदी के तीसरी बार शपथ लेने के बाद से आतंकियों का क्रूर कर्म और ज्यादा बढ़ गया है।
सोमवार की सुबह ४ बजे जम्मू- कश्मीर के राजौरी जिले के गुंधा इलाके में आतंकियों ने सेना के शिविर पर हमला कर दिया। इस आतंकी हमले में एक जवान घायल हुआ। आतंकियों ने दूसरा हमला शौर्यचक्र विजेता नागरिक पुरुषोत्तम कुमार के घर पर किया। कुमार ने पिछले साल ६ अगस्त को एक पाकिस्तानी आतंकी को यमपुरी पहुंचा दिया था इसलिए आतंकी उन पर घात लगाए थे। लेकिन हमले के दौरान कुमार घर पर नहीं थे, लिहाजा उनके चाचा विजय कुमार घायल हो गए। मंगलवार को पुंछ में सीमा पर घुसपैठ रोकने की कोशिश में सेना का एक जवान घायल हो गया। इस माह में यह १० वां घायल सैनिक है। आतंकवादी वारदातों में अचानक बढोतरी का कारण विशेषज्ञों के अनुसार सैनिकों के साथ खुफिया नेटवर्क में कमी है। जो नेटवर्क है भी वह पर्याप्त नहीं है। सेना का परिचालन जमीन पर चुनौतियों के नए समूह से है, ये चुनौतियां-जम्मू क्षेत्र में बढ़े आतंकी हैं। इस क्षेत्र में सटीक खुफिया जानकारी न होना सबसे बड़ी कमी है। इसलिए पिछले दो महीने में १२ जवान शहीद हुए हैं। ४ मई के हमले में एक वायुसेना कर्मी शहीद हुआ था।
मोदी ने ९ जून को तीसरी बार शपथ ली थी। उसके बाद आतंकी हमलों में इजाफा हो गया। हरेक हमले के बाद कहा जाता है कि सेना व सुरक्षा बल जम्मू-कश्मीर में आतंक को कुचलने के लिए कृत संकल्पित हैं और आतंकियों की तलाशी के लिए सघन अभियान चलाया जा रहा है, पर ऐसे सघन अभियानों का फायदा शून्य रहता है।
सोमवार को राजौरी की वारदात के २४ घंटे पहले ही सेनाप्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी जम्मू में दौरे पर आए थे। जनरल के दौरे को २४ घंटे भी नहीं बीते थे कि आतंकियों ने दो जगह हमले कर दिए। तो वो ५६ इंच का सीना कहां चला गया? पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने के दावे कहां चले गए। एक अखबार के मुताबिक, ‘कार्रवाई योग्य मानव खुफिया जानकारी’ की कमी और चीन का मुकाबला करने के लिए पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनाती के लिए जम्मू से सेना की कंपनियों की वापसी के कारण जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी हमलों की बाढ़ आ गई है। जम्मू में आतंकवादी हमलों में अचानक वृद्धि स्पष्ट रूप से पूरी तरह से खुफिया विफलता का संकेत देती है।
इसके अलावा, इस क्षेत्र में सेना की कम संख्या में तैनाती को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, क्योंकि मई २०२० में सीमा पर भिड़ंत के बाद से कई कंपनियों को पूर्वी लद्दाख में चीन सीमा पर तैनात करने के लिए वापस बुलाया लिया गया था। इस रीलोकेशन ने जम्मू के प्रमुख क्षेत्रों को बेहद असुरक्षित बना दिया है। जबकि कहते हैं कि इन दिनों जम्मू कश्मीर में ७० से ८० खूंखार पाकिस्तानी आतंकी सक्रिय हैं, जिसमें से ५५ से ६० तो जम्मू क्षेत्र में ही हैं। ऐसी सूचनाओं के होने के बावजूद हमारे सुरक्षाबल यदि लापरवाही करते हैं तो इसे हम क्या कहें? क्या ५६ इंची सीने ने सुरक्षा बलों को सोते रहने को कहा है? जम्मू क्षेत्र में १० जिले हैं और २०२१ तक दो दशकों से अधिक समय से यह अपेक्षाकृत आतंक मुक्त था। लेकिन अब अचानक आतंकी हमलों में आई वृद्धि को क्या केंद्र सरकार नहीं देख पा रही है? धारा ३७० के तहत विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद से कश्मीर में २०२१ से अब तक अकेले जम्मू क्षेत्र में लगभग ५४ जवानों ने जान गंवाई है। दुख तो ये है कि सेना व सुरक्षाबलों पर बार-बार हो रहे हमलों के बावजूद, अधिकारी आवश्यक कदम उठाने में नाकामयाब रहे हैं। दूसरी तरफ आतंकियों ने अपना फोकस कश्मीर से जम्मू कर दिया है, जहां ‘आतंकवाद विरोधी उपाय पर्याप्त नहीं हैं’। तो इसका हल क्या है? विशेषज्ञ कहते हैं कि जम्मू क्षेत्र में खुफिया नेटवर्क मजबूत किया जाए, इस क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती बढ़ाई जाए और सबसे बड़ा उपाय ये होगा कि ५६ इंची महोदय अपनी जबान पर लगाम लगाएं। अगर उन्हें करना ही है तो वे अपना २०१९ का बयान याद कर पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर तबाह कर दें। अगर ये नहीं कर सकते तो सेना व सुरक्षाबलों को आतंकियों से अपने हिसाब से निपटने की खुली छूट दें।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)