द्विजेंद्र तिवारी, मुंबई
दो दिन पहले एग्जिट पोल के हास्य प्रहसन का पूरे देश ने आनंद लिया। आज दोपहर तक देश में नई सरकार बनने का रास्ता खुल जाएगा। लोकसभा चुनाव के परिणाम जो भी हों, महाराष्ट्र में चुनावों का सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है। चार महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके लगभग चार महीने बाद मुंबई महानगरपालिका सहित राज्य के सभी स्थानीय निकायों के चुनाव अपेक्षित हैं। एक मतप्रवाह यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट में पैâसले के बाद अगले चार महीनों में ही स्थानीय निकाय के चुनाव कराए जा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इसी वर्ष अक्टूबर से दिसंबर के बीच मुंबई महानगरपालिका व अन्य स्थानीय निकायों के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी संपन्न कराए जा सकते हैं। पिछले चार वर्षों से राज्य के स्थानीय निकायों के चुनाव लंबित हैं। उन्हें ज्यादा समय तक टाला नहीं जा सकता।
मुंबई महानगरपालिका पूरी तरह से सरकारी अफसरों के भरोसे चल रही है। आम जनता के लिए वहां कोई भी सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं है। लगभग यही स्थिति राज्य की हर महानगरपालिका, नगरपालिका, जिला परिषद और जिला पंचायतों में है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इतना लंबा ठहराव होने से राज्य की प्रगति प्रभावित हो रही है। कई इलाकों में सरकारी बाबुओं की स्वाभाविक निष्क्रियता से विकास के काम ठप पड़े हैं। कई इलाकों में समस्याओं का अंबार लग गया है। ऐसे में विधानसभा के साथ ही जल्द से जल्द स्थानीय निकायों के चुनावों का रास्ता साफ किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर वर्ष २०२४ चुनाव वर्ष हो गया है। ऐसे में यह उत्सुकता पैदा होती है कि क्या एक चुनाव के नतीजों का असर अगले चुनाव पर पड़ता है। खासकर, तब जब दोनों के बीच अंतराल छह महीने से कम हो। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव आमतौर पर लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद होते हैं। पिछले ३० वर्षों में दोनों में मतदान पैटर्न में काफी समानता रही है इसलिए राज्य के चुनावों पर लोकसभा चुनाव के नतीजों के असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
१९९० से लोकसभा और विधानसभा चुनाव नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की दशा और दिशा तय करते रहे हैं। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि किसी एक चुनाव का मतदान पैटर्न दूसरे से काफी हद तक जुड़ा हुआ रहा है।
२००४, २००९, २०१४ और २०१९ में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद हुए थे, जबकि १९९९ में ये एक साथ हुए थे। इन सभी राज्य चुनावों में मतदान पैटर्न उसी साल हुए लोकसभा चुनावों के लगभग समान थे। उसका प्रमुख कारण यह भी था कि उन चुनावों में सभी दलों के पार्टनर लगभग वही रहे, जबकि २०२४ के लोकसभा चुनाव में सभी दलों के गठबंधन अलग-अलग हो गए हैं। पार्टियों में टूट-फूट के बाद ओरिजिनल सिंबल के साथ डुप्लीकेट पार्टियां मैदान में हैं। राज्य में मूल शिवसेना और मूल राष्ट्रवादी कांग्रेस को तोड़कर राजनीतिक माहौल खराब कर दिया गया है। लोकसभा चुनाव के पहले शुरू हुआ यह राजनीतिक तमाशा विधानसभा चुनाव तक भी जारी रह सकता है। फिर से कोई उल्टी चाल चलने की कोशिश हो सकती है। महाराष्ट्र की राजनीति की बिसात पर, जहां खेल बिजली की गति से आगे बढ़ रहा है, वहां अब लोकसभा चुनाव सेमी फाइनल की तरह है।
भाजपा ने महाराष्ट्र की ४८ में से ४५ सीटें जीतने का आह्वान किया था, जिसे सभी मानते हैं कि यह वास्तविकता से बहुत दूर है। पिछले लोकसभा चुनाव से आधी से भी कम सीटें जीतने की उनकी संभावना है। ऐसी स्थिति में राज्य में विधानसभा चुनाव के पहले ही बहुत बड़ा तूफान आ सकता है। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी और उनके आला कमान महाराष्ट्र में तलवारबाजी करने लगेंगे, जिसके शिकार उनके ही कई सहयोगी होंगे।
भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव से पहले ही कोई नया मुख्यमंत्री बिठाने की कोशिश कर सकती है और उसके नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर सकती है, ताकि आसन्न पराजय को टाला जा सके।
जब विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने और साथ लड़ने की बात चलेगी, तो भाजपा को इस दुविधा का सामना करना पड़ सकता है। यदि उनका महागठबंधन इस आम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है, जिसकी संभावना सबसे ज्यादा है तो अकेले लड़ने और चुनाव के बाद गठबंधन करने का पैâसला उन्हें करना पड़ सकता है। महायुति में २८८ विधानसभा सीटों को आपस में बांटना एक दु:स्वप्न होगा।
रुझान बताते हैं कि चुनावी लड़ाई दो प्रमुख मोर्चों के बीच ध्रुवीकृत है, जिसमें वंचित बहुजन आघाड़ी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और बहुजन समाज पार्टी जैसी छोटी पार्टियां इस लोकसभा चुनाव में प्रभाव छोड़ने में विफल रही हैं। भारतीय जनता पार्टी अपने इन डमी विरोधियों के बल पर कई सीटों पर खेल बिगाड़ने का सपना देख रही थी, लेकिन आम जनता ने समझ लिया कि ये छोटे-छोटे दल सिर्फ दिखावे के लिए भाजपा का विरोध करते हैं। दरअसल, विरोध की आड़ में ये वोटों का बंटवारा करते हैं ताकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को फायदा पहुंचे। इन दलों की लोकसभा चुनाव परिणाम से पोल खुलने के बाद ज्यादा संभावना यही बनती है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव या स्थानीय निकाय चुनाव में इन्हें लेकर आम जनता जरा भी गंभीर नहीं होगी। ऐसे में इन दलों की प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी, तब भाजपा को अपने लिए डमी विरोधियों को खड़ा करना मुश्किल हो जाएगा।
बहरहाल, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राज्य की राजनीति किस करवट लेती है, यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा। लोकसभा का ट्रेंड विधानसभा चुनाव तक जारी रहता है या नहीं, इसकी उत्सुकता बनी रहेगी। कौन दोस्त है और कौन दुश्मन है, यह भी तय हो जाएगा। मशहूर शायर शकील बदायूनी सियासत की इसी बात पर लिख गए हैं-
कांटों से गुजर जाता हूं दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूं
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)