राजेश विक्रांत
मुंबई
मोदी मंत्र यही है कि चाहे जो हो जाए हम नहीं सुधरेंगे। हम काम कम करेंगे बोलबचन ज्यादा। बोलबचन न करें तो हमें अपच हो जाए। देश खड्डे में जाता है तो जाने दीजिए। आतंकवाद, गैंगरेप, कंगाली से देशवासियों का ध्यान हटाने के लिए उन्हें हिंदू-मुस्लिम की घुट्टी पिलाते रहो। हार को बेशर्मी से पियो। महंगाई, बेरोजगारी, आतंक, शोषण के हथियार से आम आदमी की कमर तोड़ते हुए ओलिंपिक खिलाड़ियों से अपने मुंह अपनी बड़ाई करो कि हमने आपकी सुविधा के लिए एसी लगवा दिए थे।
नरेंद्र मोदी हिंदुस्थान की राजनीति में इकलौते प्रधानमंत्री हैं जो विकास व खुशहाली की बजाय दिखावे की राजनीति करते हैं। उनका बस चले तो वे प्रकृति प्रदत्त हवा व पानी का क्रेडिट भी स्वयं ले लें। गांव-गांव में शौचालय का क्रेडिट तो उन्हें ही जाता है। इसीलिए खिलाड़ियों के कमरे में एसी लगने का क्रेडिट भी उन्होंने लिया।
पेरिस ओलिंपिक में अरबों-खरबों रुपए खर्च हुए, लेकिन ओलिंपिक गांव में खिलाड़ियों के लिए एसी की सुविधा नहीं थी। इस बात की जानकारी के बाद खेल मंत्रालय ने ४० पोर्टेबल एसी वहां भेजे। खिलाड़ियों की वापसी पर बेशर्मी से हंसते हुए मोदी ने उनसे पूछा कि इस स्थिति के लिए कौन से खिलाड़ी उनसे नाराज थे। उन्होंने कहा, ‘कौन लोग हैं जिन्हें सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा? लेकिन जब मुझे पता चला, तो कुछ ही घंटों में वह काम भी हो गया। देखिए हम आपको बेहतरीन सुविधाएं देने की कितनी कोशिश करते हैं?’ मोदी ये सब बोलबचन न करें तो बीमार पड़ जाएं।
कश्मीर में आतंकवाद बढ़ गया है तो देश के अलग-अलग हिस्सों में गैंगरेप व यौन उत्पीड़न की घटनाएं सामने आ रही हैं। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में आतंकियों की फायरिंग में सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर कुलदीप शहीद हो गए फिर भी वहां पर चुनावी चोंचले शुरू हो गए हैं। इस दौरान मोदी सरकार केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में लैटरल एंट्री स्कीम के तहत ४५ विशेषज्ञों की सीधी भर्ती करने की योजना बना रही थी। इस प्रक्रिया में एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा था। कहते हैं कि ये कदम टॉप ब्यूरोक्रेसी में आरक्षण खत्म करने की कॉरपोरेट साजिश थी। विपक्ष की जागरूकता की वजह से लैटरल एंट्री स्कीम रद्द करनी पड़ी।
हार को बेशर्मी से पीना कोई मोदी से सीखे। ४०० पार की धज्जियां उड़ने के बावजूद साहब तीसरी बार कुर्सी पर विराजमान हैं तो इसकी वजह छल, प्रपंच, षड्यंत्र, जोड़तोड़, लालच, दबाव, डर व धमकी की राजनीति में उनका भरोसा है। अब देखिए न वक्फ बिल को संयुक्त संसदीय समिति-जेपीसी में भेज दिया गया है। सरकार ने ब्रॉडकास्टिंग बिल २०२४ का मसौदा वापस ले लिया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुसार अब नए सिरे से इस बिल का मसौदा तैयार किया जाएगा। बिल के ड्राफ्ट को १० नवंबर २०२३ को सार्वजनिक किया गया था। इसके बाद विपक्ष हमलावर हो गया था। विपक्षी दलों का यहां तक कहना था कि सरकार बिल के जरिए सेंसरशिप लाने का प्रयास कर रही है। अब १५ अक्टूबर २०२४ तक नया मसौदा पेश किया जाएगा।
वक्फ, ब्रॉडकास्टिंग बिल व लैटरल एंट्री मामले को मोदी की हार के रूप में देखा जा रहा है। आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए मोदी सरकार कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है। लोकसभा चुनाव में संविधान में बदलाव और आरक्षण खत्म करने की बात को विपक्ष ने जिस तरह से मुद्दा बनाया था, उसे वह लगातार हवा दे रहा है। जम्मू- कश्मीर और हरियाणा में चुनाव का एलान हो चुका है। इस साल के आखिर तक महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार किसी भी तरह का जोखिम नहीं ले सकती है। वैसे मोदी चाहें तो काम भी कर सकते हैं, पर वे करेंगे, वे दिखावे व बोलबचन में भरोसा करते हैं। जातिवार जनगणना की घोषणा करके मोदी अपने पर लगे आरक्षण विरोधी लेबल को छुड़ा सकते हैं। वक्फ बिल को पूरी तरह से वे रद्द कर सकते हैं, पर इसे भी नहीं करेंगे। तो फिर क्या करेंगे मोदी? वही जो पिछले कई साल से लगातार कर रहे हैं- दिखावा तथा बोलबचन!!!
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)