राजेश विक्रांत
इसे क्रूरता और अमानवीयता के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता है। आर्थिक कंगाली और धार्मिक कट्टरता के वैश्विक केंद्र पाकिस्तान की रग-रग में वहशियाना रंग भरा है। लेकिन इसे ईशनिंदा के बहाने निकाला जाता है और इस तरह की घटनाएं थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर होती ही रहती हैं। जनरल जिया उल हक के जमाने से ऐसा ही चल रहा है।
मजहबी कट्टरता की ताजातरीन घटना पंजाब प्रांत के सरगोधा में घटी है। २५ मई को सरगोधा में गुस्साई भीड़ ने ईसाइयों पर हमला कर दिया। उनके घरों को आग के हवाले कर दिया और माल-असबाब लूट लिया गया। पुलिस के अनुसार धार्मिक भावना आहत करने के इल्जाम में मुसलमानों की भीड़ ने ईसाई धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोगों की बस्ती पर हमला किया। भीड़ ने पुलिस को भी नहीं बख्शा है और ईसाइयों को बचाने आई पुलिस पार्टी पर पत्थर और ईंटें भी फेंकीं। भीड़ ने एक घर और जूता बनाने वाली एक पैâक्ट्री को आग के हवाले कर दिया। इल्जाम लगाए गए थे कि ईसाई समूह ने मुस्लिम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान का अपमान किया और कथित रूप से एक ७० साल के ईसाई ने कुरान जला दिया, जिसके बाद गुस्साई भीड़ ने ईसाइयों पर हमला कर दिया। फिर पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी ने ईसाई बस्ती को चारों ओर से घेर कर भीड़ को पीछे हटने पर मजबूर किया। हमले के जिम्मेदार २५ लोगों को हिरासत में भी ले लिया गया है।
मजहबी कट्टरता की असलियत के लिए हमें २५ मई की घटना को विस्तार से जानना होगा। सरगोधा की मजाहिद कॉलोनी में एक ईसाई परिवार पर मजहबी उन्मादियों ने तब हमला बोल दिया, जब किसी ने अफवाह उड़ा दी कि जूता पैâक्ट्री के मालिक नजीर मसीह और उनके बेटे सुल्तान मसीह ने कुरान की बेअदबी की है। इस बारे में अफवाहें इतनी गर्म हो गईं कि एक कट्टरपंथी मौलवी ने मुसलमानों की भीड़ को ऐसा उकसाया कि भीड़ नजीर के घर पर टूट पड़ी और वहां आग लगा दी। हिंसक भीड़ में उन्मादी युवा भी बड़ी संख्या में शामिल थे। सभी के हाथों में ईंट, पत्थर, डंडे, बोतलें व कांच के टुकड़े थे। कहते हैं कि कुछ लोगों के हाथ में पेट्रोल की केन व छोटे-मोटे आग्नेयास्त्र भी थे।
ये भीड़ इतना बवाल इसलिए मचा रही थी क्योंकि उसको पता था कि वे ईशनिंदा नाम पर कुछ भी कर सकते हैं। चाहे जितनी तोड़-फोड़ व आगजनी करेंगे या किसी को मार भी डालेंगे तो भी उनका बाल बांका नहीं होगा। इसलिए भीड़ का उन्माद चरम पर था और इसीलिए भीड़ ने मौके पर पहुंची पुलिस टीम पर भी हमला बोल दिया था। पुलिस भी मौके पर काफी बाद में पहुंची थी। इसलिए पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अकबाल खान सहित अन्य ने ईशनिंदा के कानून में बदलाव की मांग की है। भीड़ को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। इस तरह के आरोपों की सही से जांच क्यों नहीं की जाती? भीड़ को हिंसा करने का मौका क्यों मिल जाता है?
इस मामले में पीड़ित मसीह परिवार का कहना है कि किसी ने कुरान के पन्ने फाड़कर योजनाबद्ध तरीके से उनकी जूता पैâक्ट्री के सामने डाल दिए थे। बस इसी की आड़ लेकर कुछ लोगों ने भीड़ जुटा ली और उन पर हमला बोल दिया। उन्मादियों ने नजीर मसीह, सुल्तान मसीह तथा अन्य परिजनों को बेरहमी से पीटा। उन्हें अस्पताल ले जाने के वक्त भीड़ एंबुलेंस पर भी टूट पड़ी। इससे एक बार फिर साबित हो गया है कि पाकिस्तान में मजहबी कट्टरपंथियों की ज्यादा चलती है। वे ईशनिंदा के सहारे लेकर जब तब बवाल करते रहते हैं।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून दुनिया में सबसे कठोर हैं और देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। पाकिस्तान दंड संहिता में शामिल इस कानून में विभिन्न तरह की ईशनिंदा के लिए मृत्युदंड सहित गंभीर दंड का प्रावधान है, जिसमें इस्लाम, पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपमान और कुरान का अपमान शामिल है। ये काफी पुराना कानून है। लेकिन १९७० के दशक तक इसका कम ही इस्तेमाल किया जाता था। १९८० के दशक में जनरल जिया उल हक के शासन में कानून में संशोधन कर इसे और ज्यादा मजबूत कर दिया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इस कानून का समर्थन किया था।
इसी की आड़ लेकर कट्टरपंथी अपना खेल कर जाते हैं। हालांकि, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गृह मामलों के सचिव नूर-उल-अमीन मेंगल ने राग अलापा है कि पाकिस्तान हम सभी का है, धर्म की आड़ में कोई अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पूरी जांच के बाद कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। लेकिन सभी जानते हैं कि हालात सुधरने वाले नहीं हैं, क्योंकि पैसे और बुद्धि से कंगाल पाकिस्तान में यदि कट्टरता न रहे तो फिर क्या बचेगा? ईशनिंदा कानून के खतरनाक प्रावधानों से पता चलता है कि इसकी आड़ लेकर पाकिस्तान में हिंदुओं और ईसाइयों सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को हद से ज्यादा प्रताड़ित किया जाता रहा है। किसी पर भी ईशनिंदा का आरोप लगा भर देने से वहां की पुलिस हरकत में अा जाती है और ८ साल के बच्चे तक को हवालात में बंद करने की जुर्रत करती है। लोग भी जब चाहें तब ईशनिंदा के बहाने किसी भी अल्पसंख्यक को परेशान कर सकते हैं। इस मामले में पुलिस भी कुछ नहीं कहती है। पुलिस तो जानबूझकर आंख मूंद लेती है। मौजूदा सरकार भी कट्टरता का दामन पकड़े हुए है। सरगोधा कांड के पहले भी इस कानून को लेकर मुस्लिम भीड़ ने देश के पूर्वी हिस्से में ईसाई चर्चों और घरों को जला दिया था।
ईशनिंदा के ऐसे अमानवीय कानून के विरुद्ध पाकिस्तान के लिए मानवाधिकार आयोग ने आवाज उठाई है। आयोग ने कानून और नीति में बदलाव की मांग की है। लेकिन देखना ये है कि पाकिस्तान सरकार का इस बारे में अगला कदम क्या होता है?
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)