– राजेश विक्रांत
कहते हैं कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। नफरत, अफवाह और बोलबचन की सरकार चलाकर देश को गर्त में ले जाने वाले भी बर्बादी की ओर जा रहे हैं। पहले ४०० पार की धज्जियां लोकसभा चुनावों में उड़ीं। उसके बाद हाल में हुए उपचुनावों में भी करारी हार हुई और अब उच्च सदन राज्यसभा में भी हालत पतली हो गई है। थोड़ी-सी भी समझ रखने वाले जान गए होंगे, कि बात भाजपा की हो रही है। जिसकी दुर्दशा जारी है। दुर्दिन चल रहे हैं। इस दुर्दिन के कोढ़ में खाज राज्यसभा के जरिए आई है, क्योंकि भाजपा के ताबूत में राज्यसभा संख्याबल रूपी एक और कील लग गई है।
राज्यसभा में पिछले शनिवार को भाजपा के ४ मनोनीत सदस्य राकेश सिन्हा, राम सकल, सोनल मानसिंह और महेश जेठमलानी का कार्यकाल पूरा होने से पार्टी के सदस्यों की संख्या कम होकर ८६ पर आ गई है। लिहाजा, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-एनडीए के सदस्यों की संख्या १०१ रह गई है। यह संख्या २४५ सदस्यों वाले सदन में बहुमत के मौजूदा आंकड़े ११३ से एक दो नहीं बल्कि पूरे १२ कम है।
राज्यसभा में भाजपा की सीटें कम होने का मतलब है कि सरकार को उच्च सदन में कोई विधेयक पारित करने के लिए एनडीए से बाहर के दलों (तमिलनाडु की पूर्व सहयोगी एआईडीएमके और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की पार्टी पर निर्भर रहना पड़ेगा और इसके लिए उन्हें पटाना भी होगा।
इसके बाद भी राह आसान नहीं है। लेकिन भाजपा के पक्ष में एक बात यह है कि उसके फ्लोर मैनेजर पार्टी में तोड़फोड़, पटाना, धमकाना, लालच यहां तक कि जनप्रतिनिधियों के अपहरण में भी माहिर हैं। वे संबंधित सदस्य के कोई गढ़े मुर्दे या छोटा-मोटा मामला खोदकर निकालेंगे और फिर उस सदस्य को ईडी, आयकर, सीबीआई की धमकी पहुंच जाएगी। भाई, जेल के डर से बहुत चीजें संभव हो जाती हैं। भाजपा में नैतिकता तो है नहीं पिछले १० सालों से वह अनैतिकता के बल पर ही टिकी हुई है। तो राज्यसभा में भी उसी अनैतिकता का सहारा लेगी।
सहयोगी दलों के समर्थन के बाद भी किसी विधेयक को पास कराने के लिए अपने पक्ष में न्यूनतम १३ अतिरिक्त वोटों की जरूरत होगी।
बता दें कि रेड्डी की वायएसआर-कांग्रेस (११) और एआईडीएमके (४) से भाजपा की पूर्व में काफी जमती थी और ये भाजपा के दो प्रिय सहयोगी भी रहे हैं, लेकिन आज की स्थिति दूसरी है। हाल के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले दोनों ने एनडीए को राम-राम बोल दिया था। फिर भी संसद में रेड्डी की पार्टी ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को मुद्दों पर आधारित समर्थन दिया है। इसका मतलब यह है कि जरूरत पड़ने पर भाजपा को उसके ११ वोट मिल सकते हैं।
ओडिशा की सत्ता से बाहर बीजू जनता दल (९) ने भी भाजपा को इसी तरह का समर्थन दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों हुई करारी हार के बाद उसका समर्थन मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव भी लग रहा है, क्योंकि बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक ने अब भाजपा से ऐसी दूरी बना ली है कि उनका भाजपा के पाले में दुबारा जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
राज्यसभा की वर्तमान सदस्य संख्या २२६ है। इसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के ८७ सदस्य हैं। इनमें से कांग्रेस के पास २६, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के पास १३, आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु के डीएमके के पास १०-१० सीटें हैं। इसी तरह ४ सीटें तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति और बाकी निर्दलीयों के पास हैं।
किसी विधेयक पर अगर एआईडीएमके भाजपा को समर्थन नहीं देती और बीजू जनता दल की तरफ से भी इनकार हो जाता है तो ऐसी स्थिति में भाजपा को मनोनीत सदस्यों की शरण लेनी पड़ेगी। राज्यसभा में कुल १२ मनोनीत सदस्य है, लेकिन वर्तमान में ७ सदस्य ही गुटनिरपेक्ष दिखते हैं। फिर भी भाजपा को कोई चिंता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि भाजपा का अब तक रिकॉर्ड रहा है कि वह जोड़-तोड़ की राजनीति में बहुत प्रवीण है। मुद्दा कोई भी हो वह अपने लिए बहुमत जुटा ही लेती है। लोकसभा में अब तक तो ऐसा हुआ नहीं है, लेकिन अब आगे कोई स्थिति आएगी तो भाजपा निश्चित रूप से जोड़-तोड़ से अपना काम कर ही लेगी।
जहां तक राज्यसभा की बात है तो एनडीए की राज्यसभा में बहुमत से जो दूरी है वह ज्यादा दिन तक बनी रहने वाली नहीं है, क्योंकि वर्तमान स्थितियों के मुताबिक आने वाले दिनों में वह राज्यसभा में भी बहुमत के करीब पहुंचने वाली है।
आज की बात करें तो अभी सदन की २० सीटें खाली हैं। इसमें १० सीटें निर्वाचित सदस्यों की हैं, जिसके लिए चुनाव इसी साल होने वाले हैं। विधायकों की संख्या के लिहाज से ७ सीटें सहयोगी दलों को मिल सकती हैं। महाराष्ट्र की बात करें तो यदि सब कुछ ठीक रहा यानी शिंदे गुट में कोई तूफान न आया तो महाराष्ट्र से भी दो सीटें एनडीए की झोली में आ सकती हैं।
अगर हम कांग्रेस की बात करें तो राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है। उसकी २६ सीटें है और उसमें तेलंगाना की एक सीट भी जोड़ सकते हैं तो २७ सीटें हो जाएंगी। नेता प्रतिपक्ष के लिए न्यूनतम २५ सीटों की जरूरत होती है तो कांग्रेस को इसलिए कोई खतरा नहीं है।
कुल मिलाकर आज की राजनीति के बारे में हम कह सकते हैं कि भाजपा ने जैसा किया वैसा ही वह भर रही है। पहले उसे जोड़-तोड़ करके केंद्र में सरकार बनानी पड़ी। यहां तक की अयोध्या जैसी प्रतिष्ठित सीट पर भी जिसको भाजपा सरकार ने बहुत प्रचारित किया था उसको करारी हार का सामना करना पड़ा। बनारस से मोदी जी की जीत का अंतर भी कम हो गया। हाल के राज्यों में हुए विधानसभा उपचुनाव की बात करें तो उत्तराखंड के बद्रीनाथ में भी भाजपा की हार हुई है और अब राज्यसभा में उसके सिर्फ ८६ सदस्य रह गए हैं तो रास्ता बहुत कठिन हो गया है। हम यह कह सकते हैं कि भाजपा की दुर्दशा जारी हो गई है और यह दुर्दशा आगे भी चलती रहेगी अगर भाजपा और मोदी इसको रोक सकें तो रोक लें!
जय हिंद!