मुख्यपृष्ठनए समाचारराज की बात : बढ़ती आबादी पर बंटती दुनिया

राज की बात : बढ़ती आबादी पर बंटती दुनिया

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई

पिछले दिनों जनसंख्या को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान की भारत में खूब चर्चा रही, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एलन मस्क के ट्वीट्स की काफी चर्चा रहती है। पिछले दिनों सिंगापुर को लेकर उनका ट्वीट जनसंख्या को लेकर उनके विचारों को और अधिक स्पष्ट करता है। उनका ट्वीट है- ‘सिंगापुर (और कई अन्य देश) विलुप्त हो रहे हैं।’
कुछ दशक पहले जनसंख्या वृद्धि को अक्सर एक टाइम बम के रूप में देखा जाता रहा है। नीति निर्माताओं और पर्यावरणविदों ने बढ़ती जनसंख्या के भयानक परिणामों के बारे में समय-समय पर चेतावनी दी। संसाधनों की कमी, बेरोजगारी और पर्यावरण का क्षरण इसके प्रमुख मुद्दे रहे, लेकिन जनसंख्या का यह पेंडुलम बहुत दूर तक जा चुका है और आज, दुनिया एक नए संकट का सामना कर रही है- कुछ देशों में प्रजनन दर में गिरावट और घटती आबादी।
अभिशाप या वरदान!
मस्क की ही तरह एक और अमीर अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने भी इस बात से सहमति जताई है कि अधिक जनसंख्या अभिशाप के बजाय वरदान हो सकती है। उन्हें लगता है – ‘मैं सौरमंडल में एक ट्रिलियन मनुष्यों को देखना पसंद करूंगा। अगर हमारे पास एक ट्रिलियन मनुष्य होते तो हमारे पास किसी भी समय एक हजार मोजार्ट और एक हजार आइंस्टीन होते… हमारा सौरमंडल जीवन, बुद्धिमत्ता और ऊर्जा से भरा होता।’
भारत की कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट-टीएफआर) २.० है, जो वैश्विक मानक स्तर २.१ से थोड़ा कम है। दक्षिण कोरिया (०.७८) और जापान (१.३४) जैसे कम-टीएफआर वाले देशों में बढ़ती उम्र की आबादी और श्रम की कमी आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बनकर उभर रही है।
तो दूसरी तरफ नाइजर (६.८२) और चाड (५.९३) जैसे उच्च-टीएफआर वाले देश गरीबी और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, जो जनसंख्या विस्फोट का दूसरा पहलू दिखाते हैं।
स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रतिस्थापन प्रजनन दर के रूप में प्रचारित ‘२.१ औसत सूत्र’ अब अधिकांश विकसित और कई विकासशील देशों में पूरा नहीं हो रहा है। चीन को अपनी दशकों पुरानी एक-बच्चा नीति के भयानक परिणामों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या तेजी से बुजुर्ग होती जा रही है और श्रम वर्ग सिकुड़ रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए चीन सरकार ने अब बच्चों के जन्म पर प्रतिबंधों में ढील दी है और परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भाजपा असफल
अधिक जनसंख्या का मतलब है अधिक सैनिक, कर्मचारी, श्रमिक और बौद्धिक पूंजी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक प्रभाव के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत, अपनी युवा और बढ़ती आबादी के साथ, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ चुका है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश भारत को भविष्य की वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है, बशर्ते वह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास में निवेश करे, लेकिन भारत में यह काम केंद्र की भाजपा सरकार समुचित ढंग से नहीं कर पा रही है।
जनसंख्या वृद्धि और इसके बेहतर नियोजन को लेकर विशेषज्ञों ने बार-बार तर्क दिया है कि जनसंख्या में गिरावट मानव सभ्यता के लिए अधिक जोखिम पैदा करती है। उनका तर्क है कि घटती जन्म दर से समाज बूढ़ा होता जाएगा, उत्पादकता कम होगी और नवाचार कम होंगे- जो मानवता की प्रगति और अस्तित्व के लिए खतरा है। उनका दृष्टिकोण जनसंख्या वृद्धि को एक परिसंपत्ति के रूप में अपनाने की आवश्यकता पर बल देता है, न कि एक बोझ और समस्या के रूप में।
बेहतर नियोजन
जनसंख्या वृद्धि सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक संरचनाओं को संरक्षित करने में मदद करती है। घटती आबादी डेमोग्राफिक संतुलन को बिगाड़ती है और सांस्कृतिक पहचान के विनाश का कारण बनती है। मुंबई में इसका उदाहरण पारसी समाज है। एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, २०७० तक जनसंख्या में लगातार कमी के कारण पारसी समाज लगभग शून्य प्रजनन दर के साथ विलुप्त हो जाएगा। बढ़ती जनसंख्या के फायदों को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इससे जुड़ी चुनौतियों को नजरअंदाज करना नासमझी होगी। इन कठिनाइयों को बेहतर नीतियों और उपायों के जरिए कम किया जा सकता है। जनसंख्या वृद्धि के आलोचक अक्सर संसाधनों की कमी को एक बड़ी चिंता के रूप में उजागर करते हैं। यह सच है कि बड़ी आबादी को ज्यादा भोजन, पानी, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है, लेकिन इसके लिए बेहतर नियोजन की जरूरत है। पृथ्वी पर खाद्य पदार्थों की कमी नहीं है। जनसंख्या वृद्धि अक्सर पर्यावरण क्षरण के बारे में चिंताएं पैदा करती है, लेकिन यह भी सच है कि विकसित देशों के कारण सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, क्योंकि वहां उपभोक्ता वस्तुओं का उपयोग और उत्पादन बहुत ज्यादा है इसलिए इन समस्याओं को सिर्फ जनसंख्या वृद्धि से जोड़ना अनुचित होगा।
भारत की जनसंख्या नीति ने ऐतिहासिक रूप से नियंत्रण पर जोर दिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि मनुष्यबल के सशक्तीकरण और वृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पितृ संगठन के मुखिया की सलाह पर गौर करना चाहिए। युवा आबादी की हमेशा जरूरत रहेगी, लेकिन उसके लिए सरकार को भी नीतियों के साथ तैयार रहना चाहिए।
बढ़ती आबादी, अपार संभावना
बहरहाल, दुनिया एक विरोधाभास का सामना कर रही है, जबकि अधिक जनसंख्या का डर बना हुआ है, असली चुनौती घटती प्रजनन दर और घटती आबादी में है। जनसंख्या वृद्धि को अपनाकर और इसकी चुनौतियों का समाधान करके, राष्ट्र आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति के अवसरों का खजाना खोल सकते हैं।
भारत अपनी विशाल मानव पूंजी और सांस्कृतिक लचीलेपन के साथ इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए अद्वितीय स्थिति में है। अब समय आ गया है कि हम पुरानी आशंकाओं से आगे बढ़ें और बढ़ती आबादी की अपार संभावनाओं को पहचानें।

(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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