मुख्यपृष्ठस्तंभराजधानी लाइव : ‘नोट' बदल दिया, जनता ने ‘वोट' बदल दिया तो?

राजधानी लाइव : ‘नोट’ बदल दिया, जनता ने ‘वोट’ बदल दिया तो?

डॉ. रमेश ठाकुर

दिल्ली से एक और चौंकानेवाला फैसला पिछले सप्ताह हुआ। जो देखते ही देखते समूचे देश में आग की तरह फैला। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अचानक दो हजार रुपए के नोटों को बंद करने का निर्णय लेकर आमजन में खलबली मचा दी। फैसले के बाद लोग फिर से बैंकों की लाइनों में लगे दिखे। ये ‘छोटी नोटबंदी,’ है। दरअसल, इस बार देशवासी भौचक्के हैं कि अक्सर ऐसे फैसले खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात में आठ बजे टीवी पर अवतरित होकर सुनाते आए हैं, लेकिन इस दफे उन्होंने ये जिम्मा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को क्यों सौंपा? इसको लेकर भी खूब कानाफूसी हो रही है। हो सकता है, प्रधानमंत्री ने शायद अपने से ये घोषणा इसलिए न की हो, क्योंकि वह जी-७ शिखर सम्मेलन में जाने के लिए व्यस्त थे। क्योंकि अगले ही दिन उनको जापान के हिरोशिमा निकलना था।
बहरहाल, इस बार उनका कोई तर्क लोग सुनने को राजी नहीं हैं। साल २०१६ में जब ढोल-नगाड़े के साथ नोटबंदी का एलान किया था। तब केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि दो हजार के नोटों के चलन से न सिर्फ कालाधन रुकेगा, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। पर वैसा हुआ कतई नहीं? बल्कि दोनों कदम और तेजी से आगे बढ़े। कालेधन में भी इजाफा हुआ और भ्रष्टाचार भी खूब फला-फूला। किस्तों में लगातार नोटबंदी प्रकरण से देशवासी खासे गुस्से में हैं। अंदरखाने एक मुहिम भी चल पड़ी है कि अगर सरकार बार-बार नोट बदल सकती है तो जनता वोट क्यों नहीं बदल सकती है? अगर ऐसा हुआ तो २०२४ में प्रधानमंत्री को लेने के देने पड़ जाएंगे। देश की जनता को २०१६ का दर्द अच्छे से याद है। जब प्रधानमंत्री से लेकर केंद्र सरकार के मंत्रियों और भाजपाइयों ने नोटबंदी करने और बड़े नोट दो हजार को चलाने के एक नहीं, हजारों फायदे गिनाए थे, जो धीरे-धीरे सब धराशायी हुए।
गौरतलब हो कि दो हजार के नोटों को बंद करने का निर्णय जबसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सुनाया है, तभी से प्रधानमंत्री और उनकी पूरी जमात शांत है। टीवी डिबेट्स पर भाजपा प्रवक्ताओं से जब एंकर इस निर्णय पर सवाल पूछते हैं तो वह भी शब्दहीन होते दिखते हैं और इधर-उधर बगले झांकने लगते हैं। जब तक खुद प्रधानमंत्री पब्लिक डोमेन में आकर छोटी नोटबंदी के फायदे नहीं गिनाते, तब तक अन्य भाजपाई तर्कहीन ही रहेंगे। विपक्षी दल इस नोटबंदी को कर्नाटक विधानसभा रिजल्ट से जोड़कर देख रहे हैं। कांग्रेसी नेता बोल रहे हैं। कर्नाटक हार का बदला भाजपा देश की जनता से ऐसे ही लेगी। चुनावी कैंपेन में गृहमंत्री ने कह भी दिया था कि अगर भाजपा कर्नाटक में नहीं जीती तो दंगे भी भड़क सकते हैं। हालांकि, उनके इस बयान के कई मायने सियासी दलों ने निकाले हैं, पर इतना तय है कि दो हजार नोट को चलाने और बदलने का फैसला निश्चित रूप से बचकाना और जल्दबाजी वाला रहा। ये दोनों निर्णय देश के अर्थशास्त्रियों के भी पल्ले नही पड़े।
अर्थजगत के एक्सपर्ट्स ने २०१६ की नोटबंदी के दौरान सुझाव दिए थे कि जब एक हजार के नोट से भ्रष्टाचार और कालाधन बढ़ सकता है तो २००० हजार का नोट तो उससे डबल है, यानी बड़ा है। इससे भ्रष्टाचार और कालेधन में और बढ़ोतरी हो सकती है, तब केंद्र सरकार ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया था। लेकिन उनके दुष्परिणाम बीते सात-आठ वर्षों में जो निकले, उसने केंद्र सरकार को हिला दिया। केंद्र सरकार बेशक लच्छेदार और मीठी-मीठी बातें करके जनता को गुमराह करने की कोशिश करे, पर ये सच्चाई है कि उनका निर्णय सरासर गलत था। हालांकि, आरबीआई ने दो हजार के नोटों को २३ मई से लेकर ३० सितंबर तक बैंक खातों में जमा कराकर बदलने की इजाजत दी है। लेकिन इससे आम जनता की तो परेशानी बढ़ी ही है। फिलहाल, दो हजार के नोट आम इंसानों के पास तो सीमित ही हैं, लेकिन धन्नासेठों की तिजोरियां में लबालब भरे हैं। बंदी के निर्णय के बाद ही वह बैंकों के मैनेजरों के सामने गिड़गिड़ाने लगे हैं।
बड़ी नोटबंदी हो या छोटी दोनों निर्णय प्रधानमंत्री के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं, क्योंकि अगले कुछ महीनों में पांच-छह राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव का बिगुल बज जाएगा। अगर जनमानस में वोट बदलने की मुहिम गति पकड़ गई तो भाजपा के लिए भविष्य में चुनावी डगर अप्रत्याशित रूप से कठिन होगी। हालांकि, इस सच्चाई से केंद्र सरकार वाकिफ भी है। इस बार भाजपा भक्त भी खासे परेशान हैं कि वो कब तक उनका साथ दें। फिलहाल, प्रधानमंत्री नई ऊर्जा के साथ जापान से तीन दिन की यात्रा करके लौट आए हैं। थोड़ा आराम करेंगे, फिर कोई नया टास्क भक्तों को देंगे, जिससे उन्हें विपक्षियों से मुकाबला करने की शक्ति मिलेगी और पिछली सभी बातें भूलकर आने वाले चुनावों में एकजुटता से जुटेंगे, पर इतना तय है कि भाजपा को ‘छोटी नोटबंदी’ के दुष्परिणामों को झेलना जरूर पड़ेगा।
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

 

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