मुख्यपृष्ठस्तंभराजधानी लाइव: केंद्र चाहे तो निकल जाएगा, ‘कावेरी जल विवाद’ का हल?

राजधानी लाइव: केंद्र चाहे तो निकल जाएगा, ‘कावेरी जल विवाद’ का हल?

एक बात पल्ले नहीं पड़ती कि आखिर केंद्र सरकार क्यों कावेरी जल विवाद के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती? अगर केंद्र चाहे तो मसले का हल किसी न किसी रूप में निकल सकता है। विवाद को १४१ वर्ष हो गए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई कोशिशें की, पर नतीजा नहीं निकला। इस बार भी ‘कावेरी जल विवाद’ सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचकर भी नहीं सुलझ पाया? हल नहीं निकलने के बाद कर्नाटक-तमिलनाडु में रार और बढ़ गई है। निश्चित रूप से पानी का ये झगड़ा हमें चेताता है कि अब भी समय है, पानी की गंभीरता को समझें। वरना, आने वाले समय में पानी को लेकर हालात भारतवर्ष के कोने-कोने में भयानक होने वाले हैं? दो राज्यों के मध्य कावेरी जल विवाद दशकों से नासूर बना हुआ है। उस नासूर का जिन्न एक दफे फिर बोतल से बाहर निकल आया है। कमोबेश, इस बार विवाद नए सिरे से शुरू हुआ है। कर्नाटक हमेशा के लिए पानी नहीं देने को लेकर लकीर खींचना चाहता है।
दरअसल, नया विवाद ये है कि ‘कावेरी जल विनिमयन समिति’ ने कर्नाटक सरकार को जब से तमिलनाडु को रोजाना पांच हजार क्यूसेक पानी देने को कहा है। तभी से दोनों राज्यों में तगड़ा विवाद छिड़ा है। दोनों तरफ जमकर राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं हो रही है। कर्नाटक अपने रूख पर अडिग है। साफ कह दिया है कि हम एक बूंद भी पानी नहीं छोड़ेंगे। कावेरी जल विवाद नया नहीं, वर्षों पुराना है। सभी जानते हैं कि कावेरी एक अंतरराज्यीय नदी है जो कर्नाटक-तमिलनाडु के समीप से बहती है। नदी का एक भाग केरल राज्य से टच करता है। पड़ोसी राज्य पूरी तरह से उसी के जल पर निर्भर हैं। चाहे खेतों की सिंचाई हो या व्यक्तिगत इस्तेमाल में प्रयोग करना हो। सभी की पूर्ति इसी नदी के पानी से होती है। यह नदी महासागर में मिलने से पहले कराइकल से होकर गुजरती है, जो पुडुचेरी का हिस्सा है, इसलिए इस नदी के जल बंटवारे को लेकर हमेशा बवाल रहता है। बीते कुछ दशकों से नदी का पानी भी कम हुआ है। कम होने का सिलसिला लगातार जारी भी है।
बहरहाल, पानी का विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच है, क्योंकि दोनों राज्यों की सीमाएं आपस में मिलती हैं। सूखे के कारण तमिलनाडु पानी की कमी से जूझ रहा है। तभी तमिलनाडु ने इस बावत कावेरी जल विनिमयन समिति से मांग की कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक उसे प्रतिदिन की जरूरत के हिसाब से २४ क्यूसेक पानी दे। उसकी अर्जी सुनने के बाद कावेरी जल विनियमन समिति ने कर्नाटक सरकार को सिफारिश की कि पानी मुहैया कराएं। लेकिन कर्नाटक की हुकूमत ने पानी देने से साफ इंकार कर दिया। इंकार करने का लॉजिक भी सरकार ने दिया और कहा, ‘उनके पास खुद के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। उनका प्रदेश भी कम बारिश के चलते सूखे की मार झेल रहा है। इसके बाद दोनों राज्यों में रार और बढ़ गई। कर्नाटक ने इस मसले को लेकर दिल्ली में अपने शीर्ष नेताओं को अवगत कराकर, हस्तक्षेप की मांग की है। कर्नाटक सरकार की एक टीम दिल्ली पहुंची हुई है। जो अपने नेताओं और कानूनी विशेषज्ञों से रायशुमारी कर रही है।
कावेरी जल विवाद आजादी से पहले का है। चाहे केंद्र सरकारें रही हों, या राज्य की हुकूमतें किसी ने भी इसका मुकम्मल हल नहीं सोचा। अंग्रेजी हुकूमत के समय यानी १९वीं शताब्दी में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज के बीच सन् १९२४ में समझौता हुआ था। तब, इस समझौते में केरल और पुडुचेरी भी शामिल थे। आजादी के करीब दो-तीन दशकों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन जैसे से पर्यावरण में बदलाव हुआ। बारिश कम होने लगी और पानी की मांग बढ़ती गई। उसके साथ ही ये विवाद भी गहराता गया। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, लेकिन फिर भी मसले का हल नहीं निकला। इससे पहले भी तमिलनाडु सरकार दो मर्तबा कर्नाटक के जलाशयों से प्रतिदिन २४,००० क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। प्रत्येक बार कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु की याचिका का जमकर विरोध किया। बाकायदा अपना हलफनामा पेश किया, जिसमें दलीलें दीं कि उनके यहां भी पानी की बहुत कमी है।
इस विवाद के निस्तारण के लिए केंद्र सरकार को आगे आना होगा। उन्हें कोई ऐसी जल नीति बनानी होगी, जिससे विवाद का हल निकल सके। वरना, ये झगड़ा कभी बड़ा रूप धारण कर सकता है। हालांकि, केंद्र ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी के बीच उनकी जल-बंटवारे क्षमताओं के संबंध में विवादों पर मध्यस्थता करने के लिए बीते २ जून, १९९० को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया था। लेकिन वह विवाद निपटाने में असफल रहा। केंद्र को इसके आगे सोचना होगा। ये ऐसा विवाद बन गया है, जो चुनावों में राजनीतिक दल अपने मेनिफेस्टो में भी अंकित करने लगे हैं। कहते हैं कि इस बार कावेरी जल का पानी लेकर रहेंगे, वहीं दूसरी ओर ये कहा जाता है कि कावेरी नदी का जल किसी सूरत में नहीं देंगे। कर्नाटक प्रदेश पिछले कुछ महीनों में सूखे का सामना कर रहा है। इसलिए मुश्किल लगता है कि उनकी सरकार ‘कावेरी जल विनियमन समिति’ की सिफारिश माने। न मानने का एक कारण ये भी है। चुनावों में उन्होंने कावेरी का मुद्दा उठाया था, प्रदेश की जनता से भरपूर पानी देने का वादा किया था। इस लिहाज से वह तमिलनाडु को शायद ही पानी दें।

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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