मुख्यपृष्ठस्तंभराजधानी लाइव: षड्यंत्रकारी राजनीतिक हत्या पर सुप्रीम रोक?

राजधानी लाइव: षड्यंत्रकारी राजनीतिक हत्या पर सुप्रीम रोक?

घर के बड़े बुजुर्ग हमेशा से एक किस्सा सुनाते आए हैं कि चतुर से चतुर शिकारी भी एक-न-एक दिन अपने बुने जाल में फंस ही जाता है। बस, इसके लिए उचित घड़ी का इंतजार करना होता है। घड़ी उस वक्त को जब मुकर्रर करती है, तो पांसा पलटते देर नहीं लगती? उपरोक्त कहावत कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के मामले में पिछले सप्ताह शुक्रवार दोपहर उस वक्त सटीक बैठी, जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगाने का फरमान सुनाया। फरमान जैसे ही सार्वजनिक हुआ, भाजपा ने मान लिया कि उनका बना हुआ खेल एक बार फिर बिगड़ गया। दरअसल, ये एक ऐसा निर्णय था, जिसमें राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य की हत्या का अदृश्य षड्यंत्र रचा गया था। उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म करने का मतलब था, ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’? पर, देर आए दुरुस्त आए। इतना तो सभी को विश्वास था, सुप्रीम कोर्ट में यह मामला स्टैंड नहीं करेगा, तभी मात्र तीन तारीखों में ही निर्णय हो गया।
राहुल गांधी को लेकर भाजपा कितना भी कु-प्रचार क्यों न करे, बावजूद इसके देश की जनता उन्हें संसद में चाहती है। संसद में जारी मानसून सत्र में राहुल गांधी की उपस्थिति नहीं है, जबकि साथी सांसद उनकी कमी महसूस कर रहे हैं। क्योंकि वह हर मुद्दे पर मुखर होते हैं। उनकी मौजूदगी कांग्रेस के सांसदों में ऊर्जा भरने का काम करती है। कांग्रेसियों में खुशी है कि वही ऊर्जा फिर से लौट रही है। राहुल गांधी सदन में प्रत्येक छोटे-बड़े मसलों को लेकर केंद्र सरकार के नाक में दम किए रहते थे। बीते शुक्रवार को जैसे ही उनकी सजा पर रोक लगाई गई, कांग्रेसियों ने कहा ‘शेर फिर दहाड़ेगा’ खूब जश्न मना, दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में ढोल-नगाड़े बजे, मिठार्इंयां बांटी गर्इं। पूरा देश भी चाहता है कि राहुल गांधी संसद में जनता की नुमाइंदगी करें। सभी जानते हैं कि उन पर जो निर्णय हुआ था वह कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित था। उनके मामले में सभी नियमों को ताक पर रखा गया। सबसे तेजी तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दिखाई, जैसे ही सूरत कोर्ट ने सजा सुनाई, उन्होंने बिना देर किए राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता खत्म करने का ऐलान कर दिया।
गौरतलब है, सूरत की निचली अदालत ने जब राहुल गांधी को दोषी ठहराया और उन्हें मानहानि मामले में अब तक की सर्वाधिक अवधि वाली सजा सुनाई, तो भाजपाइयों को लगा कि ‘अच्छा हुआ राहुल से पिंड छूटा’? खुदा न खास्ता अगर ये सजा बरकरार रहती तो अगले ८ वर्ष तक वो चुनाव नहीं लड़ पाते और ये आठ साल भाजपा के लिए काफी थे, क्योंकि वो मैदान में खुलकर बेटिंग करते। लेकिन, कोर्ट ने उनका रायता पैâला दिया, ऐसा रायता जिसे समेटना अब बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि इस घटना ने राहुल गांधी के प्रति देशवासियों की सहानुभूति में बड़ा इजाफा किया है। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के बाद राहुल गांधी में लोग परिपक्वता देखने लगे हैं। कांग्रेसी नेताओं का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी की छवि नेगेटिव करने में जितना पैसा बहाया है, उतने में देश की एक तिहाई गरीबी खत्म हो जाती।
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जितनी खुशी कांग्रेसियों में हैं, उससे कहीं अधिक खलबली भाजपाइयों में मची हुई है। खलबली मचना स्वाभाविक भी है। भाजपा-अदालत की संयुक्त कोशिशों ने एक ऐसे नेता को रास्ते से हटाया था, जो हर पल रोड़ा बनता था। निश्चित रूप से कोर्ट के निर्णय ने २०२४ के आगामी लोकसभा चुनाव में अभी से रंग भर दिया। यहीं से ‘एनडीए बनाम ‘इंडिया’ में मुकाबला और दिलचस्प हो जाएगा। कांग्रेस के अलावा इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दलों ने भी खुशी जाहिर की है। लालू यादव, नीतिश कुमार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी जैसे तमाम नेताओं ने ट्वीट करके केंद्र सरकार को घेरा है? सजा पर रोक के निर्णय के बाद से ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चुप है कोई सुगबुगाहट होती नहीं दिख रही। हालांकि, इस बात से अब सभी वाकिफ हैं कि जब केंद्र सरकार अपने किसी नीति-निर्णय की विफलता में फंसती है या देश के बड़े मसलों में घिरती है तो उनका कोई बड़ा जिम्मेदार नेता जवाब नहीं देता, जिसमें प्रधानमंत्री तो कतई नहीं? सभी कमरों में कुंडी मारकर बैठ जाते हैं और मुद्दा शांत होने तक बाहर नहीं निकलते।
बहरहाल, सजा पर लगाई रोक ने उन जज साहब के भविष्य के साथ भी खेला कर दिया, जिन्होंने सूरत कोर्ट में राहुल गांधी पर सजा सुनाई थी। वो भी बड़े परेशान हैं। सजा के बदले उन्हें बड़ा इनाम मिलना था, जो नहीं मिल पाया है? हालांकि उन्हें गुजरात सरकार के कानूनी विभाग में अवर सचिव व राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में सहायक निदेशक की जिम्मेदारी मिल चुकी है। पर, वह इससे बड़ा इनाम चाहते थे, उनकी इच्छा थी कि पदोन्नति कर उन्हें हाई कोर्ट में जज बनाया जाए। हांलाकि इस ओर कदम आगे बढ़े भी थे। पर, बीच में ही सुप्रीम कोर्ट ने चाबुक चला दिया। सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा समेत गुजरात की निचली अदालतों के पांच दर्जन से अधिक न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति की फाइल सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगा दी कि इसके लिए परीक्षा पास करनी होगी।
अब सुप्रीम कोर्ट को कौन समझाए, भला इनाम में मिलने वाली रेवड़ी के लिए काहे की परीक्षा देनी? सूरत के सीजेएम हसमुखभाई वर्मा ने ही मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी ठहराया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रवि कुमार की पीठ ने कहा कि गुजरात राज्य न्यायिक सेवा नियमावली-२००५ के मुताबिक, योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत और योग्यता परीक्षा पास करने पर ही पदोन्नति होनी चाहिए। जज साहब के साथ खेला हो गया, बेचारे हाथ मलते बैठे हैं, करें भी तो क्या? खुल कर बोलेंगे तो कोहराम मच जाएगा। जस्टिस लोढ़ा केस उनको भी अच्छे से याद होगा। इसलिए वो भी समझते ही होंगे कि चुप रहना ही समझदारी है।

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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