मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : सच का सामना करना ही होगा

राज की बात : सच का सामना करना ही होगा

राजेश विक्रांत मुंबई

सच्चाई बहुत कड़वी होती है लेकिन सच्चाई तो सच्चाई ही होती है, उसे झूठ, बोलबचन, लुभावने सपने यहां तक कि तानाशाही से भी दबाया नहीं जा सकता। केंद्र में मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बन तो गई है, लेकिन उसे इस सच का सामना करना ही होगा कि लोकतंत्र का मतलब जनता का शासन है और जो जनता को हल्के में लेगा, वह मुंह की खाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के ताजा अंक में लिखा गया है कि लोकसभा चुनावों के नतीजे भाजपा के अति आत्मविश्वासी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं को सच से सामना कराने वाले हैं। नेता व कार्यकर्ता मोदी के आभामंडल में डूबे रह गए और उन्होंने आम जनता की आवाज को अनदेखा कर दिया। यहां तक कि भाजपा ने चुनावी काम में संघ से कोई सहयोग नहीं लिया। इसकी बजाय सोशल मीडिया और सेल्फी संस्कृति में भरोसा करने वाले कार्यकर्ताओं को महत्व दिया गया।
ऊपर से देखा जाए तो एनडीए मंत्रिमंडल में सब कुछ साफ नजर आता है। मंत्रिमंडल के बंटवारे के बाद लगता है कि जीतनराम मांझी को छोड़ किसी भी गठबंधन के साथी की बार्गेनिंग पावर चली नहीं। जेडीयू तो छोड़ ही दीजिए, तेलुगू देशम को भी वही मंत्रालय मिला है जो २०१४ की बहुमत वाली सरकार में मिला था और अब स्पीकर तथा उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर सबकी नजर है, लेकिन सच्चाई दूसरी है। क्योंकि कभी-कभी सच्चाई को दबा दिया जाता है और मोदी ये सब करने में माहिर हैं। सच्चाई ये है कि अजीत पवार गुट और खोकेसेना में बहुत बड़ा असंतोष है। दूसरी ओर जेडीयू के सुप्रीमो की छवि पलटू राम की है और तेलुगू देशम के बॉस तो नॉर्मली अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं हैं।
ये ध्यान रहे कि एनडीए सरकार की नींव बदहाल शेयर बाजार पर रखी गई है। सरकार का स्वागत जम्मू में आतंकी हमले की एक दुखद वारदात ने किया है, जिसमें ९ लोग मारे गए और ४१ घायल हुए। मेडिकल में दाखिले की अखिल भारतीय परीक्षा नीट की इज्जत लुट चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी व केंद्र सरकार को नोटिस दे दिया है। पिछले एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले १० साल शांत रहा भी था। लेकिन अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। यह भी एक बड़ा मुद्दा है। मराठा आरक्षण का मुद्दा है। इसके साथ मुसीबत अभी खत्म नहीं होती। नीतिश कुमार ने संकेत दे दिया है कि वे एनडीए गठबंधन में बने रहने की भारी कीमत वसूलने के मूड में हैं।
साथ ही एनडीए सरकार को कुछ और चुनौतियों का सामना भी करना है। अग्निपथ व अग्निवीर का मामला है, किसानों की समस्याएं हैं जिस मुद्दे पर मंडी की नवनिर्वाचित सांसद कंगना रनौत थप्पड़ भी खा चुकी हैं। वित्तीय वर्ष २०२४ में अर्थव्यवस्था ८.२ फीसदी की रफ्तार से बढ़ी, लेकिन कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर सिर्फ १.४ फीसदी ही रही, जबकि इस क्षेत्र से ४६ फीसदी को रोजगार मिलता है। कह सकते हैं कि खेती-बाड़ी से लेकर एमएसएमई और निर्यात के मोर्चे पर चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। मौसम से लेकर वैश्विक हालात जैसे कांटे भी बिछे हुए हैं राह में। २०२४ में गुड्स एक्सपोर्ट साल भर पहले के ४५१ बिलियन डॉलर से घट कर ४३७ बिलियन डॉलर हो गया है।
हिंदुस्थान- चीन सीमा विवाद है। जलवायु व पर्यावरण की स्वच्छता का मुद्दा है। आतंकी घटनाएं हैं। सीएए, एनआरसी, जनसंख्या नियंत्रण कानून है। १० करोड़ घुसपैठियों की समस्या है।
इंसान की मूलभूत जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान के मोर्चे पर भी मोदी सरकार विफल रही है। महंगाई व बेरोजगारी का पारा तेजी से चढ़ गया है। जहां तक सबके लिए मकान की बात है तो जुलाई २०२० में मोदी ने कहा था कि २०२२ तक हर हिंदुस्थानी के सिर पर छत होगी। उधर प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद वे ३ करोड़ घरों का फिर शिगूफा छोड़ते हैं, जबकि उनके १० सालों के कार्यकाल में सिर्फ ३.३ करोड़ घर ही बन पाए थे।
मोदी साहब सच ये है कि आम जनता, किसान, मजदूर, मेहनतकश लोगों को हल्के से मत लीजिए। माना कि आप जोड़तोड़ में एक्सपर्ट हैं। बोलबचन ज्यादा करते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इस बार वाराणसी से आपकी जीत का अंतर ६८ फीसदी कम हुआ है। आपने जिन ४३ भ्रष्टाचारी दल-बदलुओं का पार्टी में स्वागत किया था, उनमें से केवल १४ ही जीते हैं। जहां आपने २ पार्टियों को तोड़ा था, वहां ४८ सीटों में से ३० पर इंडिया ब्लॉक का कब्जा हुआ है। १९८ ग्रामीण सीटों में से आपने ४९ खो दी हैं। आप एक मिली-जुली सरकार के मजबूर प्रधानमंत्री हैं इसलिए सच का सामना कीजिए। गलत हरकतें बंद कीजिए। बोलबचन व तोड़-फोड़ से निजात पाइए। हमारे लोकतंत्र व संविधान की रक्षा कीजिए।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

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