बुलाकी शर्मा राजस्थान
भूमिका लेखक अर मंच रै खास मिजमान सारू शुभ-शुभ लिखण अर बोलण री अघोसित सरत मानण री बाध्यता हुया करै। इण नै बाध्यता री ठौड़ नैतिक फरज कैवणो सही रैयसी।
लेखक कित्ता कष्ट झेल’र किताब छपावै। स्सैं सूं पहला बीं नै कीं नी कीं लिखण री खैचळ करणी पड़ै। पछै कम्प्यूटर सूं टाइप करावण रो खरचो करणो पड़ै। लेखक हुवण रो मतलब ई स्वाभिमानी हुवणो है। बो आपरी औलादां बिचाळै भेदभाव कर सकै पण आपरै साहित्य री औलादां मतलब कै आपरी रचनावां बिचाळै दुभांत कदैई कोनी करै। बां सगळ्यां नै बो सर्वश्रेष्ठ मानै। दूजा लेखकां री साहित्यिक औलादां बीं नै आपरी औलादां साम्हीं साव मरकल लागै।
दूजा लेखकां री किताबां रा लोकार्पण हुवतै देख’र अफसोस करै कै इसा अैरा-गैरां री किताबां लोकार्पित हुवण लाग रैई है जिकां नै साहित्य रो क्को ई लिखणो कोनी आवै। बीं रो स्वाभिमान चेतन हुवै कै जे म्हारो सर्वश्रेष्ठ सिरजण साम्हीं नीं आयो तो इसा लिक्खाड़ मां सुरसत रै भंडार नै आपरी सूगळी किताबां सूं खराब कर देवैला। मां सुरसत रै भंडार में सांतरी किताबां भरण सारू इसा स्वाभिमानी लेखक छपावण रो फैसलो करै। पैला रुपियां रो जुगाड़ बैठावै पछै प्रकाशक कनै जावै क्यूंकै बे जाणै कै प्रकाशक लिछमी मईया रो साचो सपूत है। मां सुरसती रै सपूतां री किताबां बीं रै बैंक अकाउंट में लिछमी जी रै पूग्यां ई छपणी है।
जेब ढीली कर’र पैला किताब पछावै, पछै आपरै खरचै सूं ई लोकार्पण कार्यक्रम तैवड़ै। आपरै औलाद जलमै जणै बो जीमण करणो टाळ सकै पण किताब रै लोकार्पण जळसै में नाश्तै री ठौड़ जीमण जरूर राखै। बो जाणै कै बीं री औलादां आपरी गलतियां सूं बीं री साख रै बट्टो लगा सकै पण अे साहित्यिक औलादां साख नै सवाई करती बीं नै अमर बणा’र रैयी।
आपरै साहित्य सिरजण रै मारफत अमर हुवण री अमर उम्मैद में बो पुस्तक लोकार्पण जळसो राखै। भायला-भापेलां, भाई-गिनायतां, साहित्य-संसार री मौजीज शख्सियतां सगळां नै प्रेम सूं बुलावै। भूमिका लिखावण सूं पैला सौ बार सोचा-बिचारी करै, नफै-नुकसाण री बेलैंस सीट मिलावै। जिको फायदैमंद लागै, बीं सूं लिखावण रो फैसलो लेवै। शुभ-शुभ अर तारीफ करण में अगाड़ी लेखकां नै भूमिका लिखण रा गोल्डन चांस मिलता रैवै। बीं साथै ई इसा भला लेखक ई लोकार्पण जळसै कै दूजै साहित्यिक कार्यक्रमां रै मंचां री सौभा बणै अर अे बीं लेखक नै साहित्य में अमर करियां बिना नीं रैवै।