मुख्यपृष्ठखबरेंउम्मीद की किरण : `धरती के भगवान' ने बचाई युवती की जान

उम्मीद की किरण : `धरती के भगवान’ ने बचाई युवती की जान

धीरेंद्र उपाध्याय
मीरा-भायंदर की रहनेवाली १७ साल की किशोरी गायत्री सुतार को तीन साल पहले आंखों की समस्या हुआ थी। हालांकि, वह बीमारी कुछ समय बाद ठीक हो गई थी। इस बीच दो साल पहले किशोरी के पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद पूरा परिवार बीकानेर में शिफ्ट हो गया था। यहां किशोरी को खाने-पीने की दिक्कत हो रही थी। उसका वजन कम हो रहा था। कई स्थानीय डॉक्टरों से इलाज करवाया गया, लेकिन उसकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। आखिरकार डॉक्टरों की सलाह से उसे मनोचिकित्सक को भी दिखाया, लेकिन रोग का पता नहीं चल सका। इस बीच दो जुलाई को अचानक किशोरी को तेज बुखार हुआ और सांस लेने में कठिनाई होने लगी। उसकी बिगड़ती सेहत को देखकर परिवारवालों ने उसे मीरा रोड के वॉक्हार्ट अस्पताल में भर्ती करा दिया। अस्पताल के हेड कंसल्टेंट क्रिटिकल केयर डॉ. अकलेश टांडेकर ने हालत को देखते हुए उसे आईसीयू में भर्ती कर दिया। सांस लेने में हो रही तकलीफ को देखते हुए उसे पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. संगीता चेकर के नेतृत्व में ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। सीटी स्वैâन में भोजन नली में पैâलाव दिखाई दिया। इसके बाद उसे आगे के इलाज के लिए न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पवन पाई के पास भेजा गया। डॉ. पाई ने कहा कि मरीज को कार्बन डाइऑक्साइड के प्रतिधारण के साथ टाइप २ श्वसन विफलता थी, जिससे वह सुस्त हो गई थी। वह अपनी गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव के कारण मुश्किल से आवाज निकाल पा रही थी। वह केवल अपना सिर हिलाकर या कागज पर लिखकर ही संवाद कर सकती थी और उसे फीडिंग ट्यूब के जरिए भोजन दिया जा रहा था। चिकित्सकीय जांच के बाद उसके इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी परीक्षण से मांसपेशियों में आसानी से थकान दिखाई दी और उसका रक्त परीक्षण एंटी-मस्क एंटीबॉडी के लिए पॉजिटिव था। इसमें मायस्थीनिया ग्रेविस नामक जटिल रोग का पता चला, जो किशोरी को जकड़े हुए थी। इससे उसकी जान आफत में पड़ गई थी। उन्होंने कहा कि यह एक दीर्घकालिक न्यूरोमस्कुलर विकार है, जिसमें मांसपेशियों की कमजोरी होती है। मायस्थीनिया ग्रेविस किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन विशेष रूप से युवा महिलाएं और वृद्ध पुरुष इससे प्रभावित होते हैं। बीमारी का एक बार पता चलने के बाद एंटीबॉडी को हटाने के लिए आईवी इम्युनोग्लोबुलिन या प्लाज्मा एक्सचेंज के रूप में इम्यूनोमॉडुलेटरी थेरेपी दी जाती है। डॉ. पवन ने आगे कहा कि किशोरी को स्टेरॉयड और इम्यूनोसप्रेसेंट्स के साथ आईवी इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी दी गई। इसके चलते तीन सप्ताह में मरीज की हालत में धीरे-धीरे सुधार हुआ। सेहत में सुधार देखकर ३० जुलाई को उसे डिस्चार्ज दे दिया गया। इलाज के बाद अब एक महीने में मरीज का वजन १.५ किलो बढ गया है। मरीज की मां सरिता सुतार ने कहा कि मेरी बच्ची को सांस लेने और खाना निगलने में कठिनाई महसूस हो रही थी। कई डॉक्टरों से इलाज करवाया, लेकिन रोग का पता नहीं चला। बच्ची की सेहत को देखकर हम काफी डर गए थे, क्योंकि दो वर्षों में उसका ३० किलो तक वजन कम हो गया था। लेकिन वॉक्हार्ट अस्पताल के डॉक्टरों ने तुरंत सटीक जांच और इलाज किया और मेरी बच्ची को नई जिंदगी दी है।

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