मुख्यपृष्ठस्तंभउम्मीद की किरण : आशा है तो जीवन है!

उम्मीद की किरण : आशा है तो जीवन है!

धीरेंद्र उपाध्याय

आशा और निराशा दिन-रात की तरह जीवन में आते रहते हैं। ऐसे में आशा है तो ही जीवन है। अपने आस-पास आपने बहुत से ऐसे लोगों को देखा होगा, जिनका एक हाथ या पैर या फिर दोनों हाथ या पैर काम नहीं करते हैं। उनके इन अंगों में किसी तरह की चेतना नहीं होती है। बहुत से लोग ऐसे भी देखे होंगे, जिनके हाथ या पैर ही नहीं होते हैं लेकिन वे तब भी जिंदा रहते हैं। खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं, जागते हैं। किसी दुर्घटना में वो लोग अपने हाथ या पैर खो बैठते हैं। फिर भी वो जीवित हैं। ऐसी ही एक दुर्घटना मुंबई के धारावी स्थित कोलीवाड़ा में रहनेवाली १२ वर्षीय बच्ची समीक्षा कोली के साथ घटित हुई, जिसमें बच्ची का पैर बुरी तरह से चोटिल हो गया। उसके पिता राजेंद्र कोली बताते हैं कि बेटी समीक्षा एक शाम अपनी मौसी के यहां जन्मदिन मनाकर वापस घर लौट रही थी, तभी उसका पैर फिसल गया और वह जमीन पर गिर पड़ी। उसी समय एक क्लीनअप ट्रक आ रहा था। उसका चालक बच्ची को नहीं देख पाया और ट्रक के पहिए के नीचे उसके पैर का कुछ भाग चला गया। आस-पास मौजूद लोगों ने तुरंत चालक को सतर्क किया और बच्ची की सहायता के लिए दौड़ पड़े। लेकिन तब तक उसका पैर गंभीर रूप से चोटिल हो चुका था। उसे स्थानीय डॉक्टरों के पास ले जाया गया, जिन्होंने प्राथमिक उपचार किया। हालांकि, काफी खून बहने और गंभीर घाव को देखते हुए उसे माहिम स्थित रहेजा अस्पताल रेफर कर दिया गया। अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने बच्ची में डीग्लोविंग होने की पुष्टि की। साथ ही डॉक्टरों ने तत्काल उपचार किए जाने की आवश्यकता बताई। इस तरह की चोटें गंभीर होती हैं, जहां त्वचा और आसपास के ऊतक अंदरूनी मांसपेशियों और हड्डी से अलग हो जाते हैं। अक्सर डीग्लोविंग वाले क्षेत्र में न तो खून की आपूर्ति होती है और न ही वह टिक पाता है। समीक्षा का भी मामला ऐसा ही था। चोट के कारण हुए नुकसान की सीमा का आकलन करने के लिए बच्ची का स्कैन और परीक्षण किया गया। साथ ही बच्ची की दो सर्जरियां की गर्इं। त्वचा और चमड़े के नीचे के ऊतक मांसपेशियों और हड्डी से अलग हो गए थे। उनमें खून की आपूर्ति और पोषण की कमी थी। इसका मतलब है कि उसे फिर से तैयार नहीं किया जा सकता था। बच्ची की हड्डी भी बुरी तरह से जख्मी और सूजी हुई थी। बच्ची के पिता राजेंद्र कोली बताते हैं कि सबसे राहत की बात यह थी कि समीक्षा का पैर टूटा नहीं था। हालांकि, गंभीर चोटों के चलते हम काफी चिंतित और व्याकुल हो गए थे। लेकिन इस बात से भी खुश थे कि आखिरकार, उसे वह चिकित्सा मिल जाएगी जिसकी उसे जरूरत थी। हालांकि, हम भी यह सुनकर बहुत खुश थे कि उसका जीवन प्रभावित नहीं होगा और वह फाइटर पायलट बनने के अपने सपने को पूरा कर पाएगी। आर्थोपेडिक और ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. सिद्धार्थ शाह, कंसल्टेंट पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. सचिन विलेकर और प्लास्टिक सर्जन डॉ. समीर वर्ती ने समय पर उपचार शुरू किया। पहली सर्जरी में पूरे डीग्लोविंग क्षेत्र को हटाना पड़ा, नहीं तो घाव ठीक नहीं होता। घाव का आकार उसके निचले पैर की परिधि का लगभग दो-तिहाई था और उनमें से लगभग ८० प्रतिशत तक पैर घायल हो गया था। मृत त्वचा और मांसपेशियों के अनावश्यक ऊतकों को हटाने के बाद घाव को ठीक करने के लिए विशेष वैक्यूम ड्रेसिंग लगाई गई। साथ ही उसकी दाहिनी जांघ से त्वचा को हटाकर विशेष वैक्यूम ड्रेसिंग के साथ कटे हुए क्षेत्र में प्रत्यारोपित किया गया। बच्ची के टखने के जोड़ को स्थिर करने की आवश्यकता थी, ताकि उसका घाव ठीक हो सके और इंप्लांट टिक सके। इसलिए टखने को स्थिर करने के लिए उसके आधे पैर पर प्लास्टर लगाया गया था, जिसके चलते बच्ची के पैर को बचा लिया। साथ ही दृढ़ मनोबल के चलते अब वह तेजी से ठीक हो रही है। सर्जरी के तीन हफ्ते हो चुके हैं और उसके पैर में नई त्वचा आ गई है। फिलहाल इस घटना के बाद उसकी स्कूली पढ़ाई और परीक्षा छूट गई। लेकिन उसकी स्थिति और एक मेधावी छात्र होने को देखते हुए उसे ९वीं कक्षा में पदोन्नत किया जाएगा। राजेंद्र ने कहा वायुसेना का हिस्सा बनने के उसके उत्साह और दृढ़ संकल्प के साथ ही शारीरिक रूप से फिट होने के महत्व को जानने के बाद उसने मनोबल को मजबूत किया।

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