धीरेंद्र उपाध्याय
पुणे में रहनेवाली चार वर्षीया दिशा सहाय (बदला हुआ नाम) को करीब दो साल से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उसे इडियोपैथिक पल्मोनरी हाइपरटेंशन नाम की बीमारी थी, जो फेफड़ों और ब्लड प्रेशर से जुड़ी है। दिशा को दो साल पहले इडियोपैथिक पल्मोनरी हाइपरटेंशन का पता चला था। उसे अक्सर बेहोशी और थकान महसूस होती थी। इस बीमारी के कारण उसके फेफड़ों पर दबाव बढ़ रहा था। हालांकि, उसके दिल में कोई संरचनात्मक खराबी नहीं थी। इसी वजह से इसे `इडियोपैथिक’ कहा जाता है, जिसका मतलब होता है `अज्ञात कारण’। आमतौर पर पल्मोनरी हाइपरटेंशन दिल की जन्मजात विकृतियों या ब्लड वेसल्स में रुकावट के कारण होता है, जिससे फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है। लेकिन दिशा के मामले में इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, इसलिए यह एक जटिल मामला बन गया। इस स्थिति की वजह से बच्ची को व्यायाम के बाद थकान महसूस होती थी। इस वजह से वह न तो स्कूल में खेल पाती थी और न ही रोजमर्रा की गतिविधियों में हिस्सा ले पाती थी। ऐसी गतिविधियों से उसके फेफड़ों पर ज्यादा दबाव पड़ता था, जो उसके दाहिने वेंट्रिकल को तनाव में डाल देता था। इसके चलते वह अक्सर चक्कर खाकर बेहोश हो जाया करती थी। डॉक्टरों ने दवाइयों से दबाव कम करने की कोशिश की। लेकिन बच्ची के लक्षण बने रहे और फेफड़ों पर दबाव भी बढ़ता रहा। उसकी स्थिति गंभीर हो रही थी और जान का खतरा था। इसलिए डॉक्टरों ने पॉट्स शंट का सुझाव दिया। इस प्रोसीजर में एक ट्यूब को बार्इं पल्मोनरी आर्टरी और निचले थोरैसिक एओर्टा के बीच जोड़ा गया, ताकि फेफड़ों और शरीर के बीच दबाव संतुलित रहे और बच्ची की स्थिति में सुधार हो सके। पीडियाट्रिक कार्डियक साइंसेस की डायरेक्टर डॉ. स्नेहल कुलकर्णी ने इस प्रोसीजर के बारे में बताया कि इस प्रोसीजर में हमने बच्ची की छाती के बार्इं ओर से सर्जरी की। बार्इं पल्मोनरी आर्टरी काफी बड़ी और दबाव के कारण तनी हुई थी। इसे थोरैसिक एओर्टा (जो रीढ़ के बीच में होती है) से जोड़ा गया। हमने एक ट्यूब ग्राफ्ट का इस्तेमाल किया, जिसका एक सिरा बार्इं पल्मोनरी आर्टरी से और दूसरा एओर्टा से जोड़ा गया। सर्जरी के बाद खून का बहना रोकने के लिए क्लैम्प्स का इस्तेमाल किया गया और फिर छाती को बंद कर दिया गया। बच्ची ने सर्जरी के दौरान हौसला बनाए रखा और प्रोसीजर सफल रहा। ऑपरेशन के बाद बच्ची को एक हफ्ते तक अस्पताल में रखा गया और फिर उसे छुट्टी दे दी गई। हाल ही में किए गए फॉलो-अप में पाया गया कि बच्ची अब अच्छी तरह खा-पी रही है। उसका वजन बढ़ रहा है और उसे पहले के लक्षणों से काफी राहत मिली है। वह अब स्कूल भी जाने लगी है और अन्य बच्चों के साथ खेल भी रही है।