मुख्यपृष्ठनए समाचारउम्मीद की किरण : झुलसी मासूम ने जीती जिंदगी!

उम्मीद की किरण : झुलसी मासूम ने जीती जिंदगी!

धीरेंद्र उपाध्याय

शहर में पास ही स्थित मैदान में आग लगी हुई थी। इस दहकते अंगारों के बीच दो साल के मासूम के जिंदा बचने की कहानी भी गजब है। मासूम मैदान में खेल रही थी, उस समय अबोधता के चलते उसे इसका इल्म ही नहीं था कि अंगारों में जाने से उसकी जान भी जा सकती है। दूसरी तरफ आग की लपटें मौत का तांडव मचाने का काम कर रही थीं। चारों ओर चीख-पुकार और अफरातफरी मची हुई थी। इसी बीच मासूम अपने अबोधपन के चलते आग की लपटों की चपेट में आ गई। इसी बीच मौके पर मौजूद लोगों की नजर बच्ची पर पड़ी और उन्होंने उसे आग की लपटों से बाहर निकाला। लेकिन तब तक बच्ची ६० फीसदी तक जल चुकी थी। हालांकि, आग से बाहर निकालने के बाद मददगार मासूम को नजदीकी अस्पताल में ले जाया। हालांकि, बच्ची की स्थिति बहुत बिगड़ चुकी थी। वह जलन और पीड़ा से पूरी तरह कराह रही थी। वह जुबान से कुछ कह नहीं पा रही थी। उसे देख मददगारों का दिल पसीज रहा था। लेकिन वे मजबूर थे। स्थानीय अस्पताल में बच्ची की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। इसी बीच बच्ची के माता-पिता को इस हादसे की खबर दी गई। बच्ची के इस हालत की खबर पहुंचने के बाद तो मानो मासूम के माता-पिता के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। वे रोते-बिलखते हुए अस्पताल में पहुंच गए। हालांकि, इस बीच बच्ची का इलाज कर रहे चिकित्सकों ने सटीक इलाज के लिए बच्ची को मुंबई के बाई जेरबाई वाडिया अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। इसके बाद मासूम के परिजन उसे बिना देर किए मुंबई के वाडिया अस्पताल में लेकर पहुंच गए। वाडिया अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी और बर्न विभाग के प्रमुख डॉ. शंकर श्रीनिवासन की निगरानी में मासूम का इलाज शुरू हुआ। चिकित्सा जांच में पता चला कि बच्ची का चेहरा, गर्दन, धड़ के साथ ही ऊपरी और निचला हिस्सा ६० फीसदी से अधिक जल चुका था। बच्ची की हालत काफी चिंताजनक थी। उसके ऊपरी और निचले दोनों अंगों में कंपार्टमेंट सिंड्रोम विकसित हो गया था, जिससे उसके अंगों की कार्यक्षमता में कमी आ सकती थी। मरीज को आईपीसीयू में भर्ती कराया गया था। ६० प्रतिशत जलने के बाद ठीक होना मुश्किल होता है। लेकिन इस मामले में `जाको राखे साइया मार सके ना कोय’ वाली कहावत सटीक बैठ रही है। चिकित्सकों के उचित प्रयासों की बदौलत इस बच्ची की सेहत में तेजी से सुधार दिखाई देने लगा। फिर उसे कंपार्टमेंट सिंड्रोम से राहत दिलाने के लिए उसी दिन उसका ऑपरेशन किया गया। जलने के कारण मरीज की त्वचा में लगातार संक्रमण पैâल रहा था। इसके लिए उसे गहन देख-रेख में रखा गया था। लेकिन अब बच्ची की सेहत में काफी तेजी से सुधार हो रहा है। वह अब ठीक हो रही है। उसे अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई है। हालांकि, आगे के फॉलोअप के लिए उसे अस्पताल की ओपीडी में बुलाया जा रहा है।
वाडिया अस्पताल के सीईओ डॉ. मिनी बोधनवाला ने कहा कि जली हुई त्वचा को बदलने के लिए बच्चे को अभी भी स्किन ग्राफ्टिंग की जरूरत है। अस्पताल के पास टिशू बैंक उपलब्ध होने कारण यह काफी आसान हुआ है। इस बच्ची पर इलाज अगले दो महीने तक ओपीडी मे शुरू रहेगा। उसके इलाज का पूरा खर्च वाडिया अस्पताल उठा रहा है।

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