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पाठकों की रचनाएं : अंधेरा मत भगाओ

लैंप जलाके अंधेरा मत भगाओ
ये मेरे दर्द की निशानी है
इसमें छिपी एक कहानी है
वो चेहरे है, इसमें गुमनाम
जैसे जंगल के साए में फिजाएं हो जाती है
ऐसे ही मिलेंगे वो चेहरे…
उसकी सर्गोशियां इसमें छिपी है
जब वो मिलने आती थी, चुपके-चुपके
ये अंधेरा आज भी पड़ा है
सर के बल लैंप मत जलाओ!
तुम भी जानो…किसकी नदियां बहती है
पत्थरों से ठोकरें खाकर
जो मुझे एक सदी तक रोना पड़ा!
ये जो देख रहे हो…काले- काले
अपने उजाले…
ये बड़े निराले हैं, ये आंखों से खुशियां चुराते हैं
इसे तुम मत भगाओ…लैंप मत जलाओ…!!
-मनोज कुमार, गोंडा, उत्तर प्रदेश

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