मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनापाठकों की रचनाएं : `मैं कवि, तुम वैज्ञानिक'

पाठकों की रचनाएं : `मैं कवि, तुम वैज्ञानिक’

मन हमारा, हमारे पास है,
हमारे शरीर में ही उसका वास है।
चांद हमसे बहुत दूर है,
३८४,४०० किमी. दूर है।
फिर भी मन के पास है,
एक पल में पहुंचता उसके पास है।
कवि हो या फिर तुम कोई लेखक,
मन में उठती है एक अजीब-सी कसक।
चांद को पा लेने की ललक,
उनकी कलमों की अभिव्यक्तियों में दिखती है वह प्यासी झलक।
बखान की अपनी रचनाओं में चांद की इतनी अद्भुत खूबसूरती,
वैज्ञानिकों में भी नहीं रह पाई `चांद पाने’ की इच्छा अछूती।
मची खलबली जोर की,
योजना बनी फिर `चरखा चलाती बुढ़िया’ से मिलने की।
पंहुच गए चांद पर,
अपने `चंद्रयान’ पर।
कवि लेखक और वैज्ञानिक में यही तो प्राकृतिक फर्क है,
एक दिल की सुनता है और एक दिमाग की सुनता है।
-पंकज गुप्ता मुंबई

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