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पाठकों की रचनाएं : चाहता हूं

मैं कहां चांद तारा चाहता हूं
मैं तो बस तेरा सहारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दोबारा चाहता हूं
मौन अधरों से कहा जाए तो क्या
मन तो किंचित हो चला भयभीत है
वक्त! ही जब वक्त पर न साथ हो
फिर भला इस जग में कौन मनमीत हो
अब सुलगती उम्मीदों पर अपने
नई उम्मीदों का फुहारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दोबारा चाहता हूं
मेरे हिस्से की खुशी अब दे मुझे
सह लिया है जितना मुझसे बन पड़ा है
शब्द अपने तुम रखो अब पास अपने
कह चुके हो के सारा जीवन पड़ा है
मैं तो बस अपने हिस्से में से थोड़ी
खुशियों का छोटा खुदारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दुबारा चाहता हूं
खुद से खुद की जंग हर पल हो रही है
विचार अब हथियार बनकर पल रहें हैं
भावनाओं के शजर पर पतझड़ है आया
जो भाव के पत्ते गिरे हैं जल रहे हैं
मैं तो खुद के रूबरू खुद ही खड़ा हूं
और खुदसे भी बंटवारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दोबारा चाहता हूं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी, गोरखपुर, उ. प्र.

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