मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाशनिवार को प्रकाशित नमस्ते सामना में पाठकों की रचनाएं

शनिवार को प्रकाशित नमस्ते सामना में पाठकों की रचनाएं

मेरी माता रानी!
जब माता रानी है मेरी निगाहों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
जब माता रानी है मेरी आहों में
फिर क्या टिकेगा दुख मेरी राहों में
सबको मैं समझा दूंगा
दुनिया को बता दूंगा
जय माता दी बोलोगे तो सारा दुख भगा दूंगा
जब माता रानी है मेरी सोचों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
दुख-सुख क्या होता है मुझे कुछ मालूम नहीं
जो भी मैया देती है मुझको है स्वीकार सभी
जब माता रानी है मेरी आंखों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
माता सरस्वती, माता लक्ष्मी, माता दुर्गा मेरी दुनिया है
वैष्णो मैया की कृपा से खिलती घर की सब कलियां हैं
जब माता रानी है मेरी सांसों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
तेरे दम से ही मैया मेरा घर परिवार है
तू ही मेरी कश्ती तू ही पतवार है
जब माता रानी है मेरे सोच विचारों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
जब माता रानी है मेरी निगाहों में
फिर क्या टिकेगा कोई मेरी राहों में
संजीव कुमार पांडेय, नालंदा

नवरूपों की सौगात
सिंह पर सवार होकर रंगों की फुहार लेकर।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।
भक्ति की भावना भरके आस्था सहज सजग करके।
पावन संदेश लेकर नवरात्रि की बहार लेकर।।
सोलह शृंगार लेकर खुशियां जीवन में भरके।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।
सुख का वरदान देकर विश्वास अपार देकर।
स्वादिष्ट प्रसाद बनकर जीवन में मिठास भरकर।।
अमृत कलश लेकर दीप चमत्कृत लेकर।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।
भक्तों को आशीष देकर चहुं दिश प्रेम भरकर।
कामनाएं पूर्ण करके समस्त सिद्धियों को लेकर।।
मन में विश्वास बनकर हर कदम पर ढाल बनकर।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।
दुष्टों का संहार करके शांति का प्रसार करके।
कष्टों में धैर्य देकर संयम अथाह देकर।।
सागर सम जीवन में प्रेरणा की पतवार देकर।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।
सिंह पर सवार होकर रंगों की फुहार लेकर।
आई मां दुर्गा नवरूपों की सौगात लेकर।।

मुरारीलाल ‘मुरारी’

माता कूष्मांडा
माता कुष्मांडा, रत्नजटित स्वर्ण मुकुट वाली,
सूर्यलोक निवासिनी मैया अष्टभुजा धारी।
माता करें जीवन प्रकाशित सुवाषित मां,
कर में कमंडल शोभित सिंह की सवारी।
बाण, धनुष, चक्र, गदा से सुशोभित मां,
कमल पुष्प, माला से सुंदरता निराली है।
सूर्य सम तेज माता कूष्मांडा का,
आदिशक्ति भक्तों पर कृपा करनेवाली हैं।
सिद्धियां और शक्तियां मिलें माता की उपासना से,
भक्तों के समस्त रोगों का होता विनाश है।
असीमित भक्ति है प्रिय माता रानी को,
सच्चा हृदय जिसका माता के पास है।
चंद्रकांत पांडेय, मुंबई

नवदुर्गा रूप
नवरात्रि में नवदुर्गा नौ-नौ रूप दिखाती हैं।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
कभी शैलपुत्री रूप में अनेक नामों से जानी जाती है।
कभी भक्तों पर कृपा कर धन धान्यपूर्ण बनाती हैं।।
ब्रह्मचारिणी देवी दूसरे रूप में जो कहलाती है।
तप, त्याग, सदाचार व संयम गुणों को देने आती हैं।।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
कभी चंद्रघंटा रूप में शक्तिप्रदायक बन आती हैं।
सुख शांति आनंद से जीवन सफल कर जाती हैं।।
कुष्मांडा रूप में चौथे दिन जो पूजी जाती हैं।
सद्बुद्धि, उन्नति, वैभव के सोपान चढाती हैं।।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
स्कंदमाता रूप में पांचवें दिन की शोभा बढ़ाती हैं।
समस्त कामनाएं पूर्ण कर मानव जीवन को सवारती हैं।।
कल्याणकारी, मंगलकारी स्वरूप धारण कर आती हैं।
कात्यायनी रूप में आलौकिक तेज जो पैâलाती हैं।।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
शुभदायिनी रूप में कालरात्रि सप्तम दिन आती हैं।
समस्त कलुष, क्लेश संकट हरण कर जाती है।।
संतति वरदान प्रदायिनी महागौरी की शुभतिथि आती है।
श्वेत वर्ण व श्वेत वस्त्र से धवल सृष्टि सज जाती है।।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
नवरात्रि की नवमी तिथि की बेला जो महकाती हैं।
सिद्धिदात्री मां सर्व सिद्धियां निछावर कर जाती हैं।।
श्रद्धा, भक्ति, आस्था से मन में जो सदा बसती हैं।
हर रूप में नव वरदान ले सृष्टि उसमें संवरती है।।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
नवरात्रि में नवदुर्गा नौ-नौ रूप दिखाती हैं।
नौ रूपों की नव महिमा को वाणी कह नहीं पाती है।।
अमित त्रिपाठी, टिटवाला

वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
बढ़ता प्रदूषण प्रतिदिन
ले लेता है हजारों जान,
वृक्ष संरक्षण-संवर्धन से
बची रहेगी हमारी मुस्कान!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि

वैष्णव देवी
का बुलावा!
वैष्णव देवी का बुलावा
माता का जगराता आया
सबने कीर्तन-भजन गाया
मां के मन को रिझाया
वैष्णव माता के दर्शन को
जाए बाण गंगा में नहाएं
नंगे पांव पोढ़ी-पोढ़ी चढ़ते जाएं
शेरोंवाली पहाड़ोंवाली अर्धकुंवारी कहलाए।
टीका चूड़ी-चुनरी चढ़ाएं
पूजा-अर्चना की थाली भर लाएं
नव दिन रखते हैं उपवास
माता नहीं करती किसी को उदास
कोई करता मौन तपस्या कोई
अन्न नीर का त्याग करता
हर कोई मन चाहा वरदान प्राप्त करता
दुष्टों से दुनिया भरी पड़ी है।
माता से उम्मीद खड़ी है
विपदा कठिनता दूर भगाए
जीवन में प्रेम खुशी की ज्योत जगाए
एक ही चटान की गुफा में आश्रय बनाया
भैरव को जैसे उसने खटकाया
ब्रह्मांड में हलचल मचाया
नव रूप धारण करती दुष्टों का अभिमान भस्म
कर्महीन कुकर्मों पर सुकर्मों का जीत मनाया।
अन्नपूर्णा कौल, नोएड़ा

शक्ति पूजन
घर-घर घटस्थापना देख मां अंबे हो रही हर्षित
नौ दिन, नव रूप लिए दुर्गा होती शोभित
सज गए मंदिर देवी के लगे नए पंडाल
हवन, कीर्तन, रामायण, सजे पूजा के थाल
जिस घर ज्योति जले माता की रोशन हो गए जीवन
अन्न, धन, मां की कृपा से बरसे-बरसे ममता का सावन
नव दुर्गा के दरस की खातिर कर रहे बड़े आयोजन
मनुज की ओछी सोच देख मां का भी अकुलाया मन।
क्यूं स्वार्थ में होकर अंधा तू कर रहा है घोर पाप
बेटे की झूठी आस लिए क्यूं बेटी बनी अभिशाप
नारी भी मेरा ही स्वरूप, मूरत की करते पूजा
उसकी गर तुम करो कदर घर स्वर्ग बने समूचा
कन्या, कंजक, नारी, दुर्गा, सहनशील धरा सी
बोझ बढ़े धरती पर जो फट प्रलय दिखाए वो भी
उसको न अपमानित कर देवी को दुर्गा रहने दो।
असुरों का संहार करे दुर्गा ‘काली’ बन जाए तो
कर सम्मान दे दूं वरदान हो जाऊं गर प्रसन्न
मान बढ़े तेरा भी निस दिन सुख, समृद्धि, बसे कण-कण।
-रोचिका शर्मा

मां तू दु:ख हरिणी
ए अंबे तू दु:ख हरिणी
सब संकट करती दूर
विंध्याचल मइया तेरी
कृपा हो जिस पर माता
वो होता न मजबूर,
कलेश सभी मिट जाएं
खुशियों की आए बहार
तेरा दर लागे मुझे प्यारा
झूठा सारा संसार।
जग की रक्षा की खातिर
कई राक्षस तूने मारे
उन पर है कृपा की तूने
जो भक्त हैं तेरे प्यारे,
क्या कोई उसका बिगाड़े
बने जिसकी तू पालनहार
तेलियानी, हरिश्चंद्र के
वंशजों का सदा रखो माता तू ख्याल
तेरा दर लागे मुझे प्यारा
झूठा सारा संसार।
विकास पाठक, मिर्जापुर

सच्चे मन से नवरात्रि मनाएं
नवरात्रि की धूम मच गई।
देवी मां के द्वार सज गए।।
हर घर कलश स्थापना हो गई।
हर घर शंख नाद ध्वनि गूंजी।।
हर दिन देवी गीत ध्वनित हुए।
हर दिल आस्था विश्वास सजग हुए।।
क्या देवी मंदिर में रहती?
जो समाज में छल बल सहती।
पूजा रह गई आज अधूरी,
मां ने जब समाज में आंखें खोलीं।।
कर मन पावन कलुष मिटा,
सच्चे मन से नवरात्रि मना।।
अंकित कुमार

मां ज्ञानदायनी
पंतनगर वाली माता
संपूर्ण जगत हो देख रहीं
स्वागत में तेरी माता
चरन संजय की आस है बढ़ी।
प्रथम रूप शैलपुत्री तुम्हारा
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
मिटाओ अंधकार धरा का
तुम ही जगत उद्धारिणी।
तृतीय रूप चंद्रघंटा तुम्हारा
चतुर्थ रूप कूष्मांडा देवी
पाप मिटाया तुमने धरा से
स्थापित की धर्म की वेदी।
पंचम रूप सुहावे स्कंदमाता
षष्ठम तुम कात्यायनी
दूर करो अंधकार धरा का
हे मां ज्ञानदायनी
सप्तम रूप कालरात्रि माता
अष्टमी भोग स्वीकार करो जननी।
चरन सिंह, मुंबई

 

अन्य समाचार