१२ मार्च, १९९३
काला दिन और काली रात
भूल न पाए अब भी बात।
बाबरी टूटी तो आतंकी
दाऊद ने कर दी घात।
शिवसेना के गढ़ में
मुंबई में बम ब्लास्ट किया।
इतिहास के पन्नों में
दिन-रात भयानक देखा।
दहल गया था शहर मुंबई
दहशत चारों ओर मचा
देश के दुश्मन देश के भीतर
करते देश से गद्दारी।
हरकत इनकी देश को तोड़े
देश में हाहाकार मचा।
कितने निर्दोषों की जान गई
कितना देश का है नुकसान हुआ।
आरडीएक्स जहर से
१२ बम क्रमवार धमाकों से
करतूत बताती अपनी
अपराधी ने पाप जघन्य किया।
हुए सैकड़ों में घायल
और मरे हजारों में जनता
संपत्ति भी क्षतिग्रस्त हुई
कुछ को सजा हुई कुछ को फांसी।
नाम वो आतंकी दाऊद के
गुर्गे सब पले-बढ़े और
और वतन से अपने घात किया
लालच में की गद्दारी
कुछ खास मिले थे अपने।
दृश्य अभी तक आंखों में
घूम रहा वो बुरा दिवस
चोर-पुलिस का खेल हुआ
देश हमारा दहल गया।
-ममता ‘हीर’
वो काली रात
१९९३ की वो काली रात
जब हुआ था अचानक
मुंबई पर भीषण आघात।
हर तरफ ही दिख रही
घायल खून से लथपथ लाश
कुछ की हलक में
अटकी थीं सांस।
गालियों, सड़कों पर
पैâला था धुआं-धुआं
आज भी जिंदा है वो
वहशी दाऊद दरिंदा।
गुर्गों संग मिलकर वो
दहलाया सारा शहर
देशद्रोही आतंकी
मायानगरी पर बरपाया कहर।
जा छिपा है पापी
पाकिस्तान के पल्लू में
उसको जगह मिलेगी
नहीं कभी जहन्नुम में।
पाप का घड़ा एक दिन भरेगा
वो कुत्तों की मौत मरेगा
वतन पर जो हुए कुर्बान
उन हुतात्माओं को
‘शिवा’ करता है नमन।
-सुशील राय ‘शिवा’
बरसी पर अंखियां बरसीं
आज सुबह से ही वह
आपा खोये जा रही थी,
घर के कोने में बैठी,
फूट-फूटकर रोये जा रही थी
कलेजा चीर रही थीं, उसकी सिसकियां,
बहुत उदास थे झरोखे और खिड़कियां।
तीस साल का बेटा,
बैठा था मां के पास,
आंसुओं को पोंछता,
बंधा रहा था आस।
उसकी नजरें तीस सालों से,
अनवरत तरसी हैं,
जानते हो क्यों? आज,
उसके सुहाग की बरसी है।
हृदय की पीड़ा को,
कुरेद-कुरेदकर जगा देता है,
आज का दिन उस बेबस के,
घावों पर नमक लगा देता है।
भारत मां के प्रति खल के,
मन में आया था खोट,
पड़ोसी देश में बैठकर,
कराया था विस्फोट।
खून से लथपथ हो गई थी मुंबई सारी
यमराज के चेहरे पर भी दिखी थी लाचारी
बेवश-बेजार यमदूत भी तमतमा गए थे
सैकड़ों निरीह मौत के मुंह में समा गए थे
मांगें सूनी हुर्इं, छूटी भाई की कलाई
मां राह जोहती रही, लाश तक न आई
दाऊद की शैतानी में ,
न हिंदू मरा न मुसलमान मरा था
सच पूछिए तो सिसक-सिसक कर
मेरा हिंदुस्तान मरा था।
-सुरेश मिश्र
आंखों में सपने
भूख से तड़पकर मर गया कोई
अखबार की खबर बन गया कोई।।
लूटा इतना कि चला नहीं जाए
लादकर कंधों पर ले गया कोई।।
मेरे दरवाजे से जाते हुए
थमी नजरें क्यों ठिठक गया कोई।।
घना अंधेरा भीतर बाहर था
देहरी पर दीप धर गया कोई।।
अब शहर के बाशिंदे डरे से हैं
कोई बिखरा संवर गया कोई।।
खड़े सड़क पर सभी देखते रहे
आंखों में सपने बो गया कोई।।
यारों गजब का शोर-शराबा है
अब पूरा शहर निगल गया कोई।।
चांदी की चमक से घायल `उमेश’
मूल्यों को जीकर मर गया कोई।।
-डॉ. उमेश चंद्र शुक्ल
तेरी अदा
महफिल में हर निगाह को तेरी तलाश है
पर कौन है जो तेरी निगाहों में खास है
मैं भी तुम्हारे चाहने वालों में हूं शरीक
हो जाए मुझ पर नजर-ए-करम, लगी आस है
मिल जाओ तो गुलजार हो जाए मेरा चमन
बिन तेरे यहां चांदनी लगती उदास है
क्या खूब मिला है उसे किस्मत का खजाना
हर वक्त जिसकी याद तेरे दिल के पास है
नजरें मिला के मुस्कुरा के फेरना नजर
‘शिब्बू’ तेरी अदा ही बढ़ा देती प्यास है।
-‘शिब्बू’ गाजीपुरी
वृक्ष बचाओ विश्व बचाओ
बड़े-बड़े महापुरुष, ज्ञानी
समझाते हमको बारंबार,
नहीं बचाए अगर वृक्ष तो
झेलेंगे हम प्रकृति की मार!!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि
मां
जिंदगी तब ये जिंदगी होगी
गर खुशी मां को तूने दी होगी
तुझको देखा जो मां ने हंसते हुए
खिल गई दिल की हर कली होगी
तुझको बिनाई दे दी तो वैâसे
मां की आंखों में रोशनी होगी
हर सितम सह के भी तेरी खातिर
बस खुशी तेरी मांगती होगी
आफतें हों जो सामने तेरे
ढाल बनकर मां खड़ी होगी
तुझको भूखा कभी नहीं रखा
चाहे भूखे वो सो गई होगी
दिल दुखाता है मां का जो `प्रीतम’
उसके चेहरे पे मुर्दनी होगी
-प्रीतम श्रावस्तवी
इस बार शरारत होगी
नाम लिया उस शम्मा का तो आज शिकायत होगी।
जाने कितने परवानों की खाक मुहब्बत होगी।
निकले हैं वो बेपर्दा अब रब ही खैर करेगा
पैâली ये अफवाह शहर में आज कयामत होगी।
राह जफा की चुनकर हमसे रुख क्यों फेर लिया है
पूछेंगे गर उनसे तो बेकार नदामत होगी।
दिल लेना-देना इतना आसान नहीं दुनिया में
उल्फत से पहले यारों हर बार तिजारत होगी।
नखरा भी उन पर सजता है सच है बात ये बिल्कुल
हुस्न जहां भी होगा उसके साथ नजाकत होगी।
इतना भी नादान न समझो सारी बात समझते
देखेंगे मशकूक अगर पुरजोर खिलाफत होगी।
आया है रंगों का मौसम शोख ‘नयन’ हैं सबके
हमको होली में लगता इस बार शरारत होगी।
-सीमा ‘नयन’
अजनबी
मिली एक अजनबी से,
न जाने क्यों उम्मीदें छोड़ गया।
कुछ न कहकर भी मानो सब कुछ कह गया।
सहमी सी थी मैं, थोड़ी परेशान सी भी,
पर उम्मीदों के सहारे वह अपनी कहानी कह गया।
मेरी इन आंखों में अपनी हंसी छोड़ गया।
मांगी एक झलक थी, अपनी पूरी तस्वीर दिखा गया।
मेरे उलझे हुए सवालों के सारे जवाब दे गया।
जनाब खुद से मुझे जोड़कर अलविदा कह गया।
उनसे मिलना इतना आसान होगा इसकी मुझे खबर थी,
पर जवाब मिलने में इतनी देरी होगी इससे मैं बेखबर थी।
मिली एक अजनबी से न जाने क्यों उम्मीदें छोड़ गया।
-शेजल यादव
साए में है
जिंदगी बरसात की बौछार के साए में है।
हंस रहा है फूल भी तो खार के साए में है।।
शाम ढलते ही तुम्हारी याद आती है हमें।
दिल हमारा तो सनम एतबार के साए में है।।
आजकल दिल में भी बढ़ रही हैं दूरियां।
सच छुपा है झूठ तो बाजार के साए में है।।
काम अपना बन गया फिर याद करता क्या कोई।
हर जुबां झूठी यहां व्यवहार के साए में है।।
मर मिटे थे हम कभी तुम पर मगर तुम बेवफा।
अब तुम्हारी जिंदगी परिवार के साए में है।।
कर अदा कर थक गया है आदमी भी क्या करे।
आदमी की हर खबर अखबार के साए में है।।
देश में अब चल रहा है नफरतों का दौर है।
हर किसी की जिंदगी तलवार के साए में है।।
अब सियासत देश में नफरतों की हो रही।
आमजन की जिंदगी तकरार के साए में है।
मुफलिसी में जी रहा ईमान वाला आदमी।
नाव अब ईमान की मझधार के साए में है।।
गैर से अब क्या गिला है दोस्त भी अपने नहीं। हर खुशी अब तो ‘कनक’ दिलदार के साए में है।।
-नूतन सिंह ‘कनक’
बेखबर मैं
तोड़ बंदिश सभी गया होगा
जब बगावत सतत किया होगा।।
मिलने की इस खुशी में वो हमदम
रात भर याद में जगा होगा।।
दिल्लगी इस कदर हुई है अब।
खुद को बेखुद सनम किया होगा।।
जो मिला ना उसे जमाने से।
बेकरारी में दिल किया होगा।।
बेखबर मैं ‘प्रबल’ मुहब्बत में।
जाम नजरों का तो पिया होगा।।
-दिवाकर सिंह ‘प्रबल’