मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनापाठकों की रचनाएं : `उल्फत का उपहार '

पाठकों की रचनाएं : `उल्फत का उपहार ‘

`कश्ती’  को  आज  सागर  में  उतार  दो
थोड़ा  सा  `प्यार’ हमको  भी  उधार  दो।

`रूठी  हुई  अदाओं’  को  आज  मनाना है़
‘शिकवे  लिखे  खत’  को  तुम  फाड़  दो।

कब तक `हालात’ से भागेगा `बेजार आदमी’
मिलने-जुलने की `तहजीब’ को तुम संवार दो।

`प्यास जिंदगी की’ बुझती नहीं, `आंसू’ पीकर
`भीगी  पलकों’  को  तुम खुद ही `निखार’ दो।

इतना ना तोड़ो, बड़ी `नाज़ुक शय’  है `fिदल’
दिल  को  ‘दिल’  होने  का  ‘करार’  दो।

जाने  किन  खयालों में  डूबी  है  `दुनिया’
`मुहब्बत’ के सिवा इन में  कुछ न शुमार हो।

चले  आते  हैं  `गम’  गमों को आना  ही  है
इक इक गम को `उलफत का उपहार’ दो।

जी रहें  हैं हम, कि `घुट रही हैं सांसें’ हमारी
जिंदगी को  `मकसद और  रफ्तार’  दो।

यूं तो  सभी  `दोस्ती  का  दंभ’  भरते  हैं
एक   मगर   मुझको  `सच्चा यार’  दो।
-त्रिलोचन सिंह `अरोरा’

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