`कश्ती’ को आज सागर में उतार दो
थोड़ा सा `प्यार’ हमको भी उधार दो।
`रूठी हुई अदाओं’ को आज मनाना है़
‘शिकवे लिखे खत’ को तुम फाड़ दो।
कब तक `हालात’ से भागेगा `बेजार आदमी’
मिलने-जुलने की `तहजीब’ को तुम संवार दो।
`प्यास जिंदगी की’ बुझती नहीं, `आंसू’ पीकर
`भीगी पलकों’ को तुम खुद ही `निखार’ दो।
इतना ना तोड़ो, बड़ी `नाज़ुक शय’ है `fिदल’
दिल को ‘दिल’ होने का ‘करार’ दो।
जाने किन खयालों में डूबी है `दुनिया’
`मुहब्बत’ के सिवा इन में कुछ न शुमार हो।
चले आते हैं `गम’ गमों को आना ही है
इक इक गम को `उलफत का उपहार’ दो।
जी रहें हैं हम, कि `घुट रही हैं सांसें’ हमारी
जिंदगी को `मकसद और रफ्तार’ दो।
यूं तो सभी `दोस्ती का दंभ’ भरते हैं
एक मगर मुझको `सच्चा यार’ दो।
-त्रिलोचन सिंह `अरोरा’