मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनापाठकों की रचनाएं : टूटा शहर !

पाठकों की रचनाएं : टूटा शहर !

आज-कल धुप्प छाया हुआ है,
धड़-धड़,धड़-धड़ धड़ाम
पो-पो,पो-पो…पी…की आवाज दिल और दिमाग को थका देती हैं।
चारों ओर सायरन की आवाजें आती हैं।
फिर भी लोगों में अच्छे दिनों की उम्मीदें बनी हुई हैं।
दमा के मरीज लड़खड़ा रहे हैं,
नवजात फड़फड़ा रहे हैं,
सामान्य लोग सर्दी-खांसी से परेशान हैं,
हर रोज लोगों के मुंह से सुन रहे हैं-
भाई आज-कल खांसी तो जाती ही नहीं। जाए भी कैसे ?
लोग धूल-धूंआ फांक कर शाम को घर पहुंच रहे हैं,
एकदम टूटा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।
बाहर से आनेवाले इन सबका अवलोकन कर अपने गांव, शहर,देश पहुंच रहे हैं, जोरदार चर्चा कर रहे हैं,
फिर भी उम्मीद है अपना शहर बदल रहा है। यह सच्चाई है।
शहर टूटा हुआ है और लोग भी टूटा हुआ महसूस कर रहे हैं।
यह शहर कब बदलेगा इसका पता नहीं
पर, जो लोग सौभाग्यशाली होंगे
वे ही अलौकिक शहर की अनुभूति करेंगे, क्योंकि न कोई बूढ़ा बचेगा न मरीज …… ।
-रत्नेश कुमार पांडेय

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