देवर्षि नारद मुनि
ब्रह्मदेव के मानस पुत्र
ब्रह्मचारी विचरण करते सर्वत्र
वेदों के संदेशवाहक
ब्रह्मांड के प्रथम पत्रकार देवर्षि नारद।।
ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष में
देवर्षि नारद का जन्म हुआ
सांसारिक मोहमाया त्याग कर
ऋषि-मुनियों का मार्ग चुना।।
कुपित दक्ष के श्राप के कारण
एक स्थान पर टिक नहीं पाते
अभिशाप वरदान सा सिद्ध हुआ
भटके सुर-असुरों को राह दिखाते।।
स्वर्ग लोक हो या पाताल लोक
हर लोक में नारद मुनि का सम्मान था
असुरों के संहार में
इनका महत्वपूर्ण योगदान था।।
लोक कल्याण हेतु घूम-घूम
धर्म का प्रचार-प्रसार किया
लोक-परलोक में देवदूत बन
संदेशवाहक का काम किया।।
-पूजा पांडे `गार्गी’
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका
उत्तरदायित्वों के बोझ तले
क्षीण होती अभिलाषाएं
मृतप्राय निस्तेजित कुंठित हो
संकुचित प्रतिबद्धताओं के नीचे
कब देख पाती हैं प्रतीक्षारत आंखें
प्रियतम के आगमन की राहें
नहीं देख पाती सारी रात
प्रेमी के सम्मोहक मुखड़े को
सम्मोहना मरीचिका के उस पार
विद्रूप स्वरों में कलपती मौन हो
धड़कनें समेटे अपलक निहारती
पति के सोते ही लेती है गहरी सांस
अनचाही निद्रा अनिद्रा में निढाल
प्रेम रस धधक कर हिमकणों सा
प्रवाहित होता है रक्त नलिकाओं में
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका…
मृत होकर भी मृत नहीं हो पाता प्रेम
अंक़ुरण के संभावना की नमी
कुलबुलाती सिर उठाने लगती हैं
गीली मिट्टी से केंचुए की भांति
कुचले जाने का भय पुन: सिमट
विलीन नम होती आंखों की कोर
संयमित जीवन की जटिल गुत्थियां
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका…
बांहों के घेरे में धड़कनों के बगान
नासिकाएं इनकार करती हैं देह गंध
आलिंगनबद्ध हो उच्छृंखलता की परिधि
नहीं लांघ पातीं प्रेम की कोमलता
समयबद्धता मार देती है घड़ी की सुइयां
भविष्य के सेतु बनाते पति-पत्नी
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका…
भौतिक प्रतिस्पर्धी आविष्कारों में
कठोरतम खुश्क राहों से फिसल
हथेली की हस्तरेखाओं की तितलियां
फड़फड़ाती कुनमुनाती उड़ जाती हैं
और उनके स्थान पर गहरा उठता भंवर
जिसमें डूब प्रेम कर्तव्य बन
रह जाता है एक पवित्र बंधन
मर जाते हैं प्रेमी-प्रेमिका…
-प्रतिमा `पुष्प’
बताया नहीं जाएगा
वो मुड़ के नहीं देखते हमारी पुकार सुनकर,
हमसे और अब बुलाया नहीं जाएगा।
अपनी हद तक प्यार का इजहार किया मैंने,
हमसे और अब प्यार जताया नहीं जाएगा।
मनाने की कितनी कोशिशें नाकाम हो गर्इं,
हमसे और अब मनाया नहीं जाएगा।
भुलाते रहे उनकी हर गुस्ताखियां,
हमसे और अब कुछ भुलाया नहीं जाएगा।
बताते रहे अपने दिल की बातें सदा,
हमसे और अब कुछ बताया नहीं जाएगा।
-अनिल `अंकित’
गए छोड़ के तुम
तेरी प्यारी सूरत भुलाऊं तो वैâसे।
भला याद दिल से मिटाऊं तो वैâसे।।
अकेले ही आगे गए छोड़ के तुम।
नहीं राह मालूम आऊं तो वैâसे।।
तेरे बिन मैं हर वक्त रहता हूं घायल।
हुए जख्म दिल पे दिखाऊं तो कैसे।।
ये आंखें भी सूखीं तेरी राह तकते।
इन आंखों से आंसू बहाऊं तो वैâसे।।
अलग ही जो दुनिया है उसमें गया तू।
वहां का पता गर मैं पाऊं तो कैसे।।
-शिब्बू `गाजीपुरी’
बेतरतीबी में तरतीब
वो बेतरतीबी में जो मजा था शायद तरतीब में नहीं है।
वो गुरबत के दिन थे पर खुशी से लबालब हर किसी के दिल थे
सूखी रोटी नमक से खाई थी
वो दिन भी कितनी मुश्किल के थे
फिर भाग रहा इंसान इक अंजान
तलाश में, क्या ये अजीब नहीं है।
वो बेतरतीबी…
दरो दीवार में आज वैâद हैं अकेले
वो भी क्या दिन थे छोटी-छोटी खुशियों में,
लोगों से होते थे घर में रोशनियों के मेले
दूर की बात छोड़िए जनाब
करीब होके भी आज फासले हैं
इससे बड़ी कोई सलीब नहीं है।
वो बेतरतीबी…
वो कच्चा-पक्का सा मकां था
वो एक-दो कमरे थे,
पूरा का पूरा कुनबा उसी में समाता था वहीं से शुरू होकर
वहीं से जिंदगी में संवरे थे,
वो वक्त कोई लौटा दे मुझे
क्या ऐसी कोई तरकीब नहीं है।
वो बेतरतीब…
वो जो धूल भरे पैरों से झूलते थे मेरे कंधों पे,
बहती नाक कितनी ही दफा पोंछी मेरी कमीजों से,
आज गुजरने पे उनकी गली से सोचा जरा
खैरियत ले लूं,
परदे की ओट से जो गुफ्तगू सुनी जैसे
दिल में कुछ दरक सा गया,
बिना इत्तला चले आए देखो
जरा भी इन्हें तहजीब नहीं है।
वो बेतरतीबी…
-मीनाक्षी शर्मा `पंकज’
कर लिया क्या
बिछड़ना फिर गंवारा कर लिया क्या
किसी से कोई वादा कर लिया क्या।
बहुत कमजोर सी इंसान हूं मैं
भरोसा कुछ ज्यादा कर लिया क्या।
नहीं अब गीबतों में दिल लगाते
गुनाहों का अजाला कर लिया क्या।
नहीं करते सुना अब जिक्र मेरा
भुलाने का इरादा कर लिया क्या।
नहीं रखते खबर अब दोस्तों की
कहो सबसे किनारा कर लिया क्या।
किसी मुफलिस का टूटा घर बसा के
अंधेरों में उजाला कर लिया क्या।
बड़ी उम्दा गजल लिखने लगे हो
परी-वश का नजारा कर लिया क्या।
बड़ी रौनक दिखी रुख पे तुम्हारे
जहन से दिल अलहदा कर लिया क्या।
`नयन’ का पूछना अब लाजिमी है
बिना उसके गुजारा कर लिया क्या।
-सीमा `नयन’
बंदिशें
बंदिशें बहुत हैं मगर
आस अभी बाकी है
यूं तो गुजर जाएगी जिंदगी
अरमां अभी बाकी हैं
पहरा दर पहरा बेड़ियां
टूट ही जाएंगी
जज्बा मजबूत हो तो
राह आसान हो ही जाएगी
मिलन की घड़ियां कुछ दूर नहीं
बेपनाह मोहब्बत का सफर
अभी बाकी है
तुम्हारा इकरार ही काफी है
मंजिलें मिल ही जाएंगी
मोहब्बत की कहानी अभी बाकी है
जो होगा अच्छा ही होगा
खुदा पर विश्वास अभी बाकी है
दिल की गहराइयों में उतर
मन की ख्वाहिश अभी बाकी है
न तुम, तुम रहो न मैं, मैं रहूं
राधा-कृष्ण का मिलन अभी बाकी है
मीरा दीवानी हो गई
कृष्ण का आशीर्वाद अभी बाकी है
नया इतिहास अभी बाकी है
बंदिशों का दफन अभी बाकी है।
-अनिल महेंद्रू
अब हीर से तू मिलवा दे
जय श्री राधे धुन राधे।
बालमुकुंदं संग प्यारे।।
भाव समर्पण प्रेम लिए
चलती है संग-संग आगे।।
प्रीति अनोखा है तेरा
शब्द-शब्द से नाम गढ़े।
गीत-गजल तू कविता में
हर पल ही तुमको साधे।।
प्रीत अमर है जग में यूं
सबके होंठों पर सजती।
बातें मुरली जैसी है
मन मंदिर में है बाजे।।
लगन लगी है तुझसे तो
मैं किसको और पुकारूं।
साथ निभाना प्रियवर तू
दुनिया चाहे जो सोचे।।
छवि मनमोहक उसकी तो
रोम-रोम में है बसता।
धरती अंबर बोल रहा
अब `हीर’ से तू मिलवा दे।।
-ममता `हीर’
जुदाई का सबब
जख्म बेवफाई का पुराना लगने लगा है।
मौसम उदासी का सुहाना लगने लगा है।।
लोग समझते हैं पागल उस लड़के को।
मुझे तो वो आशिक दीवाना लगने लगा है।।
वो क्या जाने जुदाई का सबब यारों।
हिङ्का भी जिन्हें फसाना लगने लगा है।।
अच्छा लगता है यादों में रहना जिनको।
दिल ये उनको अब ठिकाना लगने लगा है।।
इश्क को समझ रहे कोई सौदा `वासिफ’।
इसमें भी अब तो बयाना लगने लगा है।।
-डॉ. वासिफ काजी