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पाठकों की रचनाएं : क्या जताना चाहते हो

क्या जताना चाहते हो
यह हम्म से क्या जताना चाहते हो मैं व्यस्त हूं
क्या यह बताना चाहते हो
या शब्द नहीं मेरे पास
यह दिखाना चाहते हो
संसार के सभी जीव जंतुओं में
मानव का जन्म पाया है
भाषा ही हमारी ताकत है
इसी ने श्रेष्ठ बनाया है
तो यह हम्म करके क्यों
ईश्वर के वरदान को झुठलाते हो
जो भी कहना है खुलकर कहो
कहने में भी शरमाते हो
जब इतनी ही नफरत है जुबान से अपनी
अगला जन्म गूंगा बनकर आना
फिर कुछ कहने की जरूरत ही न होगी
हम्म करके इशारों में समझाना
कमाल करते हो
– श्रवण चौधरी

आओ! थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं
देखो! दुनिया कितनी
बदल गई है ना
सबको तो बस! अपनी ही पड़ी है
दूसरे की कोई सुनता ही नहीं
कोई दूसरे को पढ़ता नहीं
दूसरे को कोई जानता नहीं
आओ! हम-तुम
मन की बातें करते हैं
थोड़ा मुस्कुरा और खिलखिला लेते हैं
जब! फुर्सत मिले तो
थोड़ा मुस्कुराते जाओ
देखो! जिंदगी कितनी
आसान हो जाएगी?
मैं चाहती हूं जब तुम थक जाओ
जब तुम हार जाओ
तो मेरी तरफ देख लिया करो
मैं तुम्हारा हौसला और संकल्प हूं
मैं तुम्हारा प्रकल्प हूं
जीवन जीने की कला हूं
तुम कभी मेरी तरफ देखते ही नहीं
मैं संदेश देती हूं!
लेकिन, तुम उसे
अनसुना कर देते हो
मैं तुम्हें संभालती हूं!
तुम्हारे संकल्पों की याद दिलाती हूं
लेकिन! दीवानगी में
तुम भूल जाते हो
– प्रभुनाथ शुक्ल

वे जो बाहर वाले आए
जड़ बुनियाद हिलाने आए।।
पूंजी वाला धंधा करके।
पूंजी को हथियाने आए।।
मेरे अपनों के दिमाग को।
अपने साथ मिलाने आए।।
नेता जी की नासमझी को।
अपना मित्र बनाने आए।।
आपस में तारीफ कर रहे।
लगता हमें बनाने आए।।
अपना समझ रहे थे उनको।
लेकिन वे भरमाने आए।।
मिलीभगत है उन
दोनों की।
मिलकर हमें मिटाने आए।।
भगत सिंह की वीरभूमि पर।
अपना जाल बिछाने आए।।
भ्रमजालों में हमें फंसाकर।
सारा भ्रम फैलाने आए।।
कई बार तो न्योता पाकर।
रुपया यहां कमाने आए।।
जागरुक जितने हैं उनको।
क्रय विक्रय समझाने आए।।
भारत मां के लाल कह रहे।
बंधक हमें बनाने आए।।
वे जो बाहर वाले आए।
जड़ बुनियाद हिलाने आए।।
– अन्वेषी

माता रानी
जागु भवानी माता रानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
करु जग सुग्घर करु
जग निम्मन
रगड़ माज जग चिक्कन चिक्कन
आके एहीं रूक भवानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
जस-जस ऊगल तस तस बूड़ल
मरुआइल भउराइल गूड़ल
जान फेनु अब फूंक भवानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
भाला आ तलवार धइल बा
शेर ठाढ़ तइयार भइल बा
फिन से रण में ढूक भवानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
ठांव ठांव फिन रार मचल बा
मनबढ़ुअन से गांव ठंसल बा
करि सभनिन के टूक भवानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
मनई राछस अस लउकत बा
अगिन बैताल जस छउंकत बा
धरि ओकरा के हूंक भवानी
लिख्खू जगत क नवा कहानी
– डॉ. एम.डी. सिंह

 

सुनो सुनो सुनो

कटुता दो दिलों की आप जोड़ दीजिए
गांठ मनमुटाव का है तोड़ दीजिए
सत्ता आपकी है जिम्मेदार आप हैं
वरना मणिपुर की कुर्सी छोड़ दीजिए
-अच्छेलाल तिवारी ‘राही’,
जौनपुर, उप्र
झूमता आता है सावन
झूमता मस्त आता है सावन।
दिल में हलचल मचाता है सावन।।
शुष्क खेतों में सोना उगाने।
अब मुसलसल बरसता है सावन।।
दु:ख का अब छटेगा कुहासा।
सूर्य आशा का लाता है सावन।।
प्यार में जब बड़े तल्खियां तब।
दिल से होकर गुजरता है सावन।।
चाह में प्रियतमा से मिलन की।
मन विकल गीत गाता है सावन।।
ना रहे चेहरों पर उदासी।
फूल-सा मुस्कुराता है सावन।।
रात भर जब बरसता है पानी।
प्यार में क्यूं लजाता है सावन।।
जब चले मंद मादक हवा।
फूल-से तन पे छाता है सावन।।
फूल पर जब मधुप गुनगुनाएं।
तब नलिन खिलखिलाता है सावन।।
– नलिन खोईवाल, इंदौर

मुस्कुराना पड़ा
बहुत रोना आ रहा था मुझे
पर कनक कलेवर अल-सुबह को
हौले-हौले उनके हंसने पर
शबनम की रदनपंक्तियां देख
मुझे मुस्कुराना पड़ा
बहुत रोना आ रहा था मुझे
पर मध्यदिवस शीतोष्ण अवधि को
शांत श्वेत सरोवर की गोद पर
बाल तरंगों की अठखेलियां देख
मुझे मुस्कुराना पड़ा
बहुत रोना आ रहा था मुझे
पर रजकण मिश्रित सिंदूरी शाम को
नीड़ लौटे परिंदों के कलरव से
गूंजित हरित तरु डालियां देख
मुझे मुस्कुराना पड़ा
– टीकेश्वर सिन्हा
‘गब्दीवाला’, छत्तीसगढ़

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