मुख्यपृष्ठनमस्ते सामना12 नवंबर के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

12 नवंबर के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

इस दिवाली खुशियां लुटाओ
भूलकर गम, हंस के बस खुशियां लुटाओ इस दिवाली।
उजड़ी सी बगिया को रिश्तों से सजाओ इस दिवाली।।
नेह की बाती बनों, जोड़ो सभी को नेह से।
हर घरों में रोशनी बरसे, मनाओ इस दिवाली।।
भूख से कोई भी बच्चा अब न तड़पे रात भर।
दाल-रोटी चार बच्चों को, खिलाओ इस दिवाली।।
मिट्टी के बर्तन लिए वो आस में बैठे हुए हैं।
बस उसी दियली से घर को जगमगाओ इस दिवाली ।।
सांस दम घोंटू हुई है, है प्रदूषण टूट कर।
आतिशबाजी को धरा से ही हटाओ इस दिवाली।।
लक्ष्मी पूजन हो घरों में, मां का आशीर्वाद हो।
लीप कर गोबर से ही घर को सजाओ इस दिवाली।।
– पंकज तिवारी,
नई दिल्ली

आई दीपावली
कड़वी यादों का मलबा हटाओ
दिल को फिर साफ बनाओ
दीपावली आई है
दीप खुशियों के जलाओ
संग यादों के मुस्कुराओ
दीपावली आई है
जो पल आज है, बस वही खास है
भूली बिसरी बातें तुम भी बिसराओ
दीपावली आई है
रूप चौदस पे चांद को मात दे
अपने चेहरे से वो नूर बरसाओ
दीपावली आई है
बात मीठी करो संग नमकीन शरारतें भी हों
रूठे प्रीतम को फिर ऐसे मनाओ
दीपावली आई है
गूंज उठेगी फिर शहनाई मन आंगन में
तुम गजल प्यार की फिर गुनगुनाओ
दीपावली आई है
– प्रज्ञा पांडेय मनु

दिव्य दीप जले
तन-मन खुशी के फूल खिले
जगमग जग दिव्य दीप जले
खुशियों से घर-आंगन सजाएं
दीपोत्सव का त्योहार मनाएं
आओ जगमग दीपक जलाएं
मिल-जुल कर दीपावली मनाएं
स्वच्छ सफाई हो कोना-कोना
भूलकर सब दुख रोना-धोना
कहीं न हो आज काला अंधेरा
रहे प्रकाश‌ का संपूर्ण बसेरा
मिटाकर हर मन का अंधकार
जलाएं मन का लालच विकार
सजाएं प्रभु श्रीराम का दरबार
मनाएं दीपावली पावन त्योहार
– घूरण राय ‘गौतम’,
मधुबनी, बिहार

दिवाली बनी खुशहाली
सुने पड़े गांव में
खुशहाली लौट आई
लगता है सालों बाद
दिवाली लौट आई
गलियों और बाजारों में
अनदेखे अनजाने
चेहरे दिखने लगे
खामोश पड़े घरों में
लोग हंसने लगे
लगता है शहर से
परदेशी आ गए
यह जंगल झाड़ियां
नदियां तालाब उन्हें भा गए
काश यह दिवाली
पूरे साल होती
बूढ़े मां-बाप की आंखें
बच्चों के इंतजार में न रोती…
– श्रवण चौधरी

दीप जलाएं
आओ दीपावली का उत्सव मनाएं
खुशी, उल्लास, उमंग के दीप जलाएं
गहन तामसिक कुरीतियों को दूर भगाएं
माटी के दीपों से उजियारा पैâलाएं
पवित्र दीपों से प्रकाश की ज्योति जलाएं
दीप मालाओं से जग का अंधियारा मिटाएं
तेरी-मेरी उसकी बात न हो कहीं
प्रकाश से सामाजिक समरसता लाएं
यह खुशियों का पावन त्योहार है
आओ अपनी खुशियों में चार चांद लगाएं
बुराई पर अच्छाई की जीत का पावन पर्व है
आओ शुभ मिलन के अनंत दीप जलाएं
– संजीव ठाकुर, रायपुर, छत्तीसगढ़

इस दिवाली खुशियां लुटाओ
भूलकर गम, हंस के बस खुशियां लुटाओ इस दिवाली।
उजड़ी सी बगिया को रिश्तों से सजाओ इस दिवाली।।
नेह की बाती बनों, जोड़ो सभी को नेह से।
हर घरों में रोशनी बरसे, मनाओ इस दिवाली।।
भूख से कोई भी बच्चा अब न तड़पे रात भर।
दाल-रोटी चार बच्चों को, खिलाओ इस दिवाली।।
मिट्टी के बर्तन लिए वो आस में बैठे हुए हैं।
बस उसी दियली से घर को जगमगाओ इस दिवाली ।।
सांस दम घोंटू हुई है, है प्रदूषण टूट कर।
आतिशबाजी को धरा से ही हटाओ इस दिवाली।।
लक्ष्मी पूजन हो घरों में, मां का आशीर्वाद हो।
लीप कर गोबर से ही घर को सजाओ इस दिवाली।।
– पंकज तिवारी,
नई दिल्ली

दिल का हाल
दुख एक नहीं, कई चीजों का है
किस-किस का शोक मनाऊं
तू तो बैठा कोसों दूर
दिल का हाल किसे सुनाऊं।
बांध दिया इस पिंजरे में
खुद को वैâसे आजाद कराऊं
कर दिया नजरों से दूर
दिल का हाल किसे सुनाऊं।
जज्बात तुम्हारे सूख चुके हैं
अपने हालत किसे बताऊं
तुम अपनी दुनिया में मशरूफ
दिल का हाल किसे सुनाऊं।।
– पूजा पांडेय,
मुंबई

आईना
आईना सच छिपा नहीं सकता
देखता पर बता नहीं सकता
गलतियां हर किसी से होती हैं
कोई गिनती गिना नहीं सकता
जिसने खुद पर किया भरोसा है,
उसको कोई हरा नहीं सकता।
दूरियां दूर हो, भला होगा,
दूरियां को घटा नहीं सकता।
लोग सच्चे तमाम होते हैं,
कोई सच आजमा नहीं सकता।
मत कहानी कोई बनाओ तुम,
व्यर्थ में सिर हिला नहीं सकता।
करके वादे निभाए जाते हैं,
झूठे दावे निभा नहीं सकता।
हम करेंगे, भलाई की बातें,
झूठ को सच बना नहीं सकता।
– नागेंद्र नाथ गुप्ता, ठाणे (मुंबई)
स्कूल का जमाना
सूरज का ‘चांद’ को सहलाकर सुलाना
हम तक ‘रोशनी’ को पहुंचाना
याद दिलाता है
मुझे वह स्कूल का जमाना
चिड़ियों का चहचहाना और हमारा घर से
सुबह-सुबह स्कूल तक चलकर जाना
याद दिलाता है मुझे वह स्कूल का जमाना
राहों का हमें स्कूल तक पहुंचाना
और राहों में दोस्तों का एक-दूसरे को सताना
याद दिलाता है
मुझे वह स्कूल का जमाना
– अजय सोनकर, प्रभादेवी

वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
हर प्राणी का दु:ख हरते ये
हरते सबका ही क्रंदन हैं,
सबकी सांसों के आधार बने
हे वृक्ष आपका अभिनंदन है!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि

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