है आज की अहिल्या वो चुप नहीं रहेगी
अन्याय इंद्र का वो अब नहीं सहेगी
गौतम नहीं रहेंगे जीवन में उसके अब तो
श्रीराम की प्रतीक्षा सदियों नहीं करेगी
अब वो गया जमाना चुपचाप जुल्म सह लो
अब हर किसी बला का प्रतिकार वह करेगी
पत्थर की न शिला है न रास्ते का कंकर
अब अग्नि में तपेगी तलवार वो बनेगी
सदियां नहीं बितानी है राह तक के उसको
अब खुद के रास्ते का सत्कार वो बनेगी
केवट की नाव सबको है पार लेके जाए
वो आज की नारी है पतवार खुद बनेगी
– डॉ. कनक लता तिवारी
मेरी मां
खुदगर्जी का न इल्म उसे है
खुद ‘खुदा’ बसता है उसमें
‘पाकीजी’ की है वो सुंदर मूरत
मेरी ‘जन्नत’ का वही एक रास्ता
शब्दों का जाल बुनना न जाने वो
ना ही जाने वो पैसों की जुबां
समझ में आए उसे सिर्फ दिल की बोली
एहसास, जज्बात हैं जोड़े जहां
खुदगर्जी उसमें नाममात्र नहीं है
उसकी दुआ में हरदम बच्चों की सलामती
कीमत क्या कोई चुकाए उसकी
मुझे वो मुझसे बेहतर है जाने
कोई न उस सा इस जहां में
वो मेरी जन्नत की है अर्जी
कोई और नहीं है वो
जिसका मैं हरदम जिक्र करती
वो है सिर्फ और सिर्फ मेरी मां
– नैंसी कौर, नई दिल्ली
हाइकु
गुरु महान
देते नेक शिक्षा
योग्य बनाए।।
गुरु की शिक्षा
जीवन को जीने की
अद्भुत कला।।
शिक्षक होते
कुंभार के जैसे
गढ़ते शिष्य।।
निरक्षर को
बनाते हैं साक्षर
गुरु हमारे।।
कृष्ण ने भी
सीखी सोलह कला
सांदीपनी से।।
गुरु सानिध्य
बन गया अर्जुन
महान योद्धा।।
बना धनुर्धर
एकलव्य जग में
गुरु कृपा से।।
– संजय डागा, हातोद, मध्य प्रदेश
हिंदी का सम्मान करो
जिनका हिंदी में ही होता है पालन-पोषण
जिनको हिंदी बलवान बनाती है
उनकी संतानें ही गर हिंदी को नहीं अपनाती हैं
तो हिंदी संग होती नाइंसाफी है
जब गिटिर-पिटिर बतिया के बच्चा कोसों दूर हो जाता है
छोटे-बड़े सभी को भूल अपने में खो जाता है
तब हम सबको समझ मे आता है यह करियर क्या कहलाता है
अरे सोचो और विचार करो
बच्चों में संस्कार भरो
कि स्वदेशी में पनपें-परखें
नित नया अनुसंधान करें
भूल करियर के चक्कर को अपनों का सम्मान करें
खुद समझो और पहचान करो
निज भाषा का उत्थान करो
हिंदी का सम्मान करो
हिंदी का सम्मान करो
– रत्नेश कुमार पांडेय, मुंबई
पंखुड़ियों सा बिखर जाएंगे
पंखुड़ियों सा तेरे सामने बिखर जाएंगे
गजरे सा तेरे गेसुओं में संवर जाएंगे
जरा अपनी सांसों को रखिए महफूज
खुशबू सा तेरी सांसों में ठहर जाएंगे
महसूस करने की कोशिश तो कीजिए
यादों सा तेरे दिल में उतर जाएंगे
जेहन में रहकर भी क्यों इतनी दूरियां
करीब आइए थोड़ा हम भी निखर जाएंगे
जरा नजरें इनायत तो करिए हुजूर
दूर होकर भी बेहद करीब नजर आएंगे
इंतजार की अब इन्तिहां हो गई शायद
थोड़ा हम भी तेरी जुल्फों में ठहर जाएंगे
– संजीव ठाकुर,
रायपुर, छत्तीसगढ़
वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
सदा करो वृक्षों का शुक्रिया
सुबह-शाम और दिन-रात,
इनसे ही तो प्राणी पाते हैं
उम्र भर सांसों की सौगात!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि