चलो यादों का शहर बसाएं।
दुख-दर्दों का साथ निभाएं।
अब तक जो कुछ बीत चुका है।
पल भर उसके भीतर जाएं।।
जिन लोगों ने कष्ट दिया है।
आओ उनका नाम गिनाएं।।
कैसे दर्द उदासी आई।
उस पल की हम कथा सुनाएं।।
अपनों ने जो दर्द दिया है।
उन पर रोएं आंसू गिराएं।।
दिल मन को जो घाव लगे हैं ।
कितना मरहम आज लगाएं।।
कुछ दुख तो भगवान दिए हैं।
उनको कैसे दोष लगाएं।
बेईमान जो मिले राह में।
उनकी गिनती किसे गिनाएं।।
जीवन के इस कठिन सफर में।
कितना रोएं कितना गाएं।।
अनुभव का जो मिला खजाना।
आओ उससे काम चलाएं।।
पीछे वाली बात भूलकर।
वर्तमान पर नजर गड़ाएं।
आगे राह बड़ी लंबी है।
आओ उस पर पांव बढ़ाएं।।
वर्तमान से बातें करके।
खुद भविष्य को पास बुलाएं।।
जितनी भी सुविधा है उसमें।
आजादी का जश्न मनाएं।।
अपने मन मंदिर में बैठें।
मन को ही संगीत सुनाएं।।
अपने अंदर खुद को देखें।
परमानंद वहीं पर पाएं।
बाहर इस फैली दुनिया में।
थोड़ा अपना फर्ज निभाएं।।
इसी राह पर चलते-चलते।
मंजिल पर हम पांव जमाएं।।
एक नया इतिहास बनाकर।
इस दुनिया में नाम कमाएं।।
– अन्वेषी
कमसिन हवाएं
ऐ कमसिन हवाओं क्यों
परेशान कर रखा है इन बादलों को
अपनी उंगलियों के इशारे पर
इनसे जो चाहो करवा लेती हो
कहीं तूफान कहीं बर्फबारी
मानो यह सब हमारा गुनाह है
तेरी नजर में हम सब गुनहगार हैं
सारी दुनिया पस्त हो गई है
मानो अस्त-व्यस्त हो गई है
ऐ पवन हमने तुमसे ही तो सीखा था
गगन में उड़ना बेखौफ पहाड़ों से भिड़ना
पर आज इसका मायना बदल सा गया है
आज दिल में एक डर है
हर तरफ हर ओर है
ऐ कमसिन हवाओं क्यों
परेशान कर रखा है इन बादलों को...
– डॉ. अंजना मुकुंद कुलकर्णी
चाहता हूं
मैं कहां चांद तारा चाहता हूं
मैं तो बस तेरा सहारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दुबारा चाहता हूं
मौन अधरों से कहा जाए तो क्या
मन तो किंचित हो चला भयभीत है
वक्त ही जब वक्त पर ना साथ हो
फिर भला इस जग में कौन मनमीत हो
अब सुलगती उम्मीदों पर अपने
नई उम्मीदों का फुहारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दुबारा चाहता हूं
मेरे हिस्से की खुशी अब दे मुझे
सह लिया है जितना मुझसे बन पड़ा है
शब्द अपने तुम रखो अब पास अपने
कह चुके हो के सारा जीवन पड़ा है
मैं तो बस अपने हिस्से में से थोड़ी
खुशियों का छोटा खुदारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दुबारा चाहता हूं
खुद से खुद की जंग हर पल हो रही है
विचार अब हथियार बनकर पल रहे हैं
भावनाओं के शजर पर पतझड़ है आया
जो भाव के पत्ते गिरे हैं जल रहे हैं
मैं तो खुद के रूबरू खुद ही खड़ा हूं
और खुद से भी बंटवारा चाहता हूं
चल सकूं विश्वास लेकर दो कदम बस
मैं वही भरोसा दुबारा चाहता हूं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी, गोरखपुर, उ.प्र.
तू हारना मत…
तू सुन मत क्योंकि, तुझे ये दुनिया सुनाएगी।
तू रुक मत क्योंकि, तुझे ये दुनिया रुकाएगी।
तू भयभीत मत हो क्योंकि, तुझे ये दुनिया डराएगी।
तू संयम रख क्योंकि, संयम ही तुझे सक्षम बनाएगी।
बस तू हारना मत क्योंकि, तुझे ये दुनिया जीतने नहीं देगी।
तू मोम बन क्योंकि, तुझे ये दुनिया पत्थर बनाएगी।
तू हंस क्योंकि, तुझे ये दुनिया रुलायेगी।
तू बोल कुछ ऐसा, जो तू लोगों को सुनाएगी।
तू चल कुछ ऐसे, जो रास्ता तू खुद बनाएगी।
बस तू हारना मत क्योंकि, तुझे यह दुनिया जीतने नहीं देगी।
तू सोच मत क्योंकि, दुनिया की सोच में तू ना समाएगी।
तू जितना ऊंचा उड़ेगी, दुनिया तुझे उतना नीचे गिराएगी।
तुझ पर टीका-टिप्पणी कर, दुनिया अपनी लाज बचाएगी।
इन सबके बाद भी, तू सत्य और शांति बन दुनिया को राह दिखाएगी।
बस तू हारना मत क्योंकि, तुझे ये दुनिया जीतने नहीं देगी।
– मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’
कुछ अनकहा
कुछ अनकहा, कुछ अधूरा,
रहता है हर इक के जीवन में,
बिन किताबों के जीवन भी
पढ़ा देता है नित पाठ नए,
अनवरत है जीवन का सफर,
यहां हर क्षण हर श्वास होता,
एक नवीन अध्याय का प्रारंभ है!
कुछ सुना, कुछ अनसुना,
रह जाता है इश्क की दास्तान में,
शख्स हर इक यहां जल्दी में है,
अपनी चाहतों की परवानगी और
ख्वाहिशों की रौनक की खातिर,
अक्सर दिल का अफसाना,
अनकहा रह सा जाता है!
कुछ ख्वाब, कुछ हकीकत,
यादों में जगह बना जाते हैं,
खुश रहते अक्सर वही हैं,
जो फैसले जीवन के अपने,
हालात खुद के देखकर लेते हैं,
लोगों की खातिर बदले गए रास्ते
अक्सर दु:ख की वजह बनते हैं!
– मुनीष भाटिया, कुरुक्षेत्र
शबे-फित्ना
बिखरने दो धूप को
आसमां को नंगे पांव चलने दो
गलने दो ये दाग दिल के
मता-ए-नफस हमें नहीं चाहिए
सो गई जमीं तो, तारे नींद उगलने दो
पांव हैं बहुरंगी सर तक
उस नजर पर बार है, तो क्या हुआ?
रात के खामोशी में, मुझको सजाएं है तो क्या
ढूंढ लाओ महताब मेरा रोशनी है तो क्या
जवाब रखके चलो तुम
शबे-फित्ना है मेरी
रात के दूधिया-सा आंचल
खूब नहाया हब्स-सा होकर
नहीं है इश्क अब… जाने दो उसे, जाने दो!
वो चीज पराई क्या?
जो रूठ जाएं हमेशा ही
खामोश जंजीर में बंधकर ही, न जाओ तुम यारा
कैसे जिएगा ये दिल जो नाम याद करता है तुम्हारा
– मनोज कुमार, गोंडा, उत्तर प्रदेश