आते हैं निहत्थे आंसू
बेवजह…
लगता है दुश्मन है मेरे
मैं फिर भी ताउम्र तैयार हूं
इससे जूझने का!
ऐसे इश्क में साजिश कुछ भी हो
ये कभी इकतरफा नहीं हो सकता है
चाहे वो मुझे अधूरी दास्तां
में ठुकरा दें,
मैं उसके लिए बेजुबां बनकर
वार करते रहेंगे
कुछ दर्द तो कम होगा
नीले जख्म के हल्के- हल्के दर्द से
क्यों उसे भूल जाऊं…
उसकी नजर जो दिल पर हुकूमत
कर बैठी है
यकीन वो साजिश है
जो ख्वाब खैरात में जल
रहें है यूं ही…
मैं जब गम बेचने बाजार गया तो
खुदा मेरा व्यापारी ठहरा
वो तो नेकी के तराजू पे खुद तोल दिया!
-मनोज कुमार, गोण्डा