आदमी
आज के दौर की ये प्रगति देखिए
कितना बदला हुआ आज है आदमी।
कब कहाँ कैसे अपना दिखाए चरित,
हो गया रंग गिरगिट सा आदमी ।।
झूठे वादे रहे , झूठी कसमें रही ,
कथनी-करनी में है गिर रहा आदमी ।
कल तक कैद था जो अपराध में ,
है मसीहा बना आज वह आदमी ।।
गांधी, नेहरू, भगत, बाला साहब कहाँ,
अब तो नजरों से भी गिर रहा आदमी ।
देशभक्ति का जलवा सजाए हुए ,
चंद सिक्कों में भी बिक रहा आदमी ।
यज्ञ कविता की ना अधूरी रहे ,
कोई एक तो बने व्याकरण आदमी ।
हो सके तो कृपा इतनी कर दीजिए ,
मेरी कविता को दे दीजिए आदमी ।
-सुरेश चंद्र मिश्र जौनपुरी