भीगी बरसात है
तेरा मेरा साथ है भीगी बरसात है
हमारी तुम्हारी पहली मुलाकात है
प्यार का एहसास करूं आंखें मूंदें
मन में आग लगाए सावन की बूंदें
दिल में हिलोरे लेती जज्बात है
तरसता है दिल बरसता है बादल
हम दोनों कहीं हो जाए न पागल
बिजली से क्यों डरूं हाथों में हाथ है
पूरा कर दो अरमां मेरी कसम है
आग बुझा दो बारिश का मौसम है
प्यार से नहीं बड़ी कोई सौगात है
तेरे संग बीता पल भूल नहीं पाऊं
तेरे बांहों के सिवा और कहां जाऊं
सोने न देती तेरी यादें दिन-रात हैं
तेरा प्यार दिल में मचाता उत्पात है
– घूरण राय ‘गौतम’,मधुबनी, बिहार
बूंदों का वरदान
इंद्रदेव हुए प्रसन्न स्वर्गलोक से नीर बरसाया
भीगी धरती गूंज उठी सावन आया, सावन आया
हरी-हरी चुनरिया ओढ़े हरी-भरी ये वादियां
प्रकृति के वैâनवास पर सब्ज रंग लुभावना छाया
उमड़-घुमड़ मौज में अपनी थिरक रहे मस्तमौला बादल
कभी गरजे हैं, कभी बरसे हैं, भिगोने वसुंधरा का आंचल
हर्षित हो पेड़, पौधे, कलियां झूम, नाच, सरसरा रहे
नभ से टिप-टिप टपक रहा जो बूंदों का वरदान है
खेतों में खेतिहरों में ताल-तलैया पोखरों में
नई उमंगे भरने आया बारिश का मौसम है आया
मधुर गान चंपा है गावे चमेली हिल-डुल रास रचावे
देख धरा का निखरा यौवन नन्ही दूब खिलखिल शरमावे
पाकर स्पर्श बरखा रानी का, सोंधी मिट्टी गर्वित हुई
लाज का घूंघट तनिक सरकाए छुईमुई आनंदित हुई
छोटू नहाया बड़कू भीग गया झमझम बरसी धारा का
सबने मिलकर पर्व मनाया सावन आया सावन आया
जीव-जंतु की तपिश और प्यास हरने बारिश ने खूब रंग जमाया
वैकुंठ से निहार ये अद्भुत दृश्य देवलोक मंद-मंद मुस्काया
सृष्टि सारी पुलकित हो उठी सावन आया सावन आया
इंद्रदेव हुए प्रसन्न स्वर्गलोक से नीर बरसाया
पाकर स्पर्श जल की धारा का सबने अपना भाग्य सराहा
सावन आया सावन आया
– त्रिलोचन सिंह ‘अरोरा’
शब्द अनोखे
कैसे हैं ये शब्द अनोखे, सोच समझकर बोले
शब्दों के इस फेर से होते, क्षण भर में काम सभी के
गूंगा व्यक्ति शब्दों को इशारे में समझाए
शातिर व्यक्ति भी शब्दों को इशारे में समझाए
केवल यह निश्चित करता है शब्द समझनेवाला
किसके शब्दों में गुही जा रही है षड्यंत्र की माला
मीठे बोल मीठे शब्दों के
कड़वे बोल कटु शब्दों के
ज्ञानी बोले ज्ञान के शब्दों से
अज्ञानी बोले अज्ञान के शब्दों से
एक शब्द ही है जो इन सबकी बदलती है विचारधारा
केवल यह निश्चित करता है शब्द समझनेवाला।
– मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’, मुंबई
तुम तो
जो उसने परोसा
खा लिए
पूरा मजा पा लिए
और चल दिए
आदेशपालक की तरह
आंख मूंदकर
न सोचे न समझे
न व्याख्या किए
किसी बात की
अब लो खाली जगह भरो
जो नहीं था
तुम्हारे दिमाग में
पहले जब तुम
पढ़ रहे थे ककहरा
परोसे जाने का
हाथ मिलाने का
– अन्वेषी
सूरज बने हो
तुम नए सूरज बने हो
बांटते हो हर घर उजाला
मैं तो ठहरा एक जुगनू
फिर भी मेरा घर छोड़ देना
है चमक चेहरे पर तेरे
जो कर रही हैं मुझको औंधा
गर कहीं मैं दिख जो जाऊं
मुंह तुम अपना मोड़ लेना
क्या कभी सोचा है तुमने
कि रात में क्या होगा तुम्हारा
हर कोई जो है तुम्हारा
चांद से रिश्ता जोड़ लेगा
सूरज सी तपिश जेहन में लेकर
जो फिर रहे हो इधर-उधर
गर तपिश ज्यादा सताए
तो छांव में रुख मोड़ लेना
गलतफहमियों की अमरबेल
जकड़ लेती है रोम-रोम
गर ये दिलो-दिमाग तक आए
तो कस के इसको मरोड़ देना
– सिद्धार्थ गोरखपुरी, गोरखपुर, उ.प्र.
तुमसे ना हो सका
ए जिंदगी किसी एक को तो
अपने दिल में बसा लेते
किंतु खुद्दारी के झांसे में आकर
किसी एक को लोगों की भीड़ में
अपना तक बना नहीं सकी ये जिंदगी
समझाया खुद को बहुत कि
हार में अश्क ना बहाएं खुद के
लेकिन हर हताशा पर
आंखों से आंसू रुक पाए हों
ये तक तुमसे हो न सका ए जिंदगी
विश्वास गर दिल में घुलता है तो
एहसास प्रेम का बनता है किंतु
विश्वास किसी के दिल में जगा रहे
ये तुमसे हो सका नहीं ए जिंदगी
हालात से भयभीत होकर नहीं
अपितु दुनियादारी में मुश्किलों से
सीखने की होती है जरूरत
किंतु मुश्किलों से कुछ सीख पाते
ये तक तुमसे हुआ नहीं ए जिंदगी
मतलब के रिश्ते हैं सब यहां
उम्मीदें किसी से की नहीं जाती
आज के खुदगर्ज दौर में
किंतु मतलब के रिश्ते तक भी
निभा नहीं पाई ताउम्र ये जिंदगी
– मुनीष भाटिया, कुरुक्षेत्र