शब्द मेरे अब बेमानी हो चुके
न इनका कोई अर्थ रहा
और न किसी को रहा मतलब इनसे,
अनकहे ही रह गए
लफ्जों में छुपे जज्बात मेरे!
खामोशियों का साया है अब
दिल के एहसास पर,
पता चला है रकीब कोई
ढूंढ़ लिया अपनों ने अब मेरे!
गीतों में मेरे अब दर्द रहा नहीं शेष,
बेशक मन अपनों की
बेवफाई से है बोझिल!
चुप रहने से मिलती है
पीड़ा खुद को निश्चित,
गर वाद विवाद करे तो
बेवजह होते हैं अपने ही व्यथित!
कुछ अनकहा कुछ अधूरा,
रहता है हर इक के जीवन में
शब्दों के प्रकट किए बिना भी
जीवन पढ़ा देता है नित पाठ नए!
खामोश रहकर फिर भी
खुश हैं अनकहे शब्द मेरे,
न है इनसे किसी के
दिल टूटने का गम,
न कुछ पाने की चाहत
और न कुछ खोने का खौफ!
होशियार बेहद है शब्द भंवरे,
पता लफ्जों को भी है बेहतर
अनकहे रहने के बाद भी
अनंत कहानियां बयां कर जाएंगे
मौन हो चुके शब्दों के छंद मेरे।
-मुनीष भाटिया, मोहाली