वर्षा रानी
मां वर्षा रानी आई,
गर्म हवा में शीतलता छाई
पेड़ लगे लहराने
पंछी ने मधुर ध्वनि सुनाई
मां मैं मोर बन जाऊं
नाचूं मोर की तरह
बादल चाचा देख रहे हैं
बच्चों का मन मोह रहे हैं
मां क्या परिंदे गा रहे हैं
या नहा रहे हैं
बिजली रानी तेवर दिखलाई
कड़क-कड़क कर बच्चों को डराई
मां मैं पेड़ बन जाऊं
सबको शीतलता पहुंचाऊं
धरती मां के बच्चे हैं हम
उनकी गोद में प्यार लुटाऊं
मां वर्षा रानी आई
– डॉ. अमरबहादुर यादव
दिल की दास्तां
चलो खुद से मुलाकात करते हैं
दिल से मिलके दिल की बात करते हैं
सुनो क्या जज्बात कहते हैं
सरल भी लाजवाब भी
सवाब भी शबाब भी
अच्छा भी ख़राब भी
जुबान भी जबाब भी
दुआ सलाम आदाब भी
दास्तां और भी है
बिंदास भी अंदाज भी
बंदूक भी तीरंदाज भी
गुगली भी गेंदबाज भी
सादा भी रंगबाज भी
नम्र भी जांबाज भी
दास्तां और भी है
बहती हवा की गहराई नाप लेता हूं
हर बाजार का रुख भांप लेता हूं
ना मिलने की खुशी ना बिछड़ने का गम
जैसे को तैसा करने का पाप लेता हूं
– अनिल ‘अंकित’
शर्म-शर्म-शर्म!
सरेआम फिर मानवता
चरित्र हत्या कर डाली
दरिंदों की एक टोली की
बहनें बनीं शिकारी
देश की उन बहनों की
ऐसे वैâसी लुटी अस्मिता
सोच-सोच रो रहा देश
और भाई, माता-पिता
उनके दुष्कृत्यों से
लज्जित हुई कौम हमारी
दरिंदों की एक टोली की
बहनें हुईं शिकारी
संवेदना की इस घड़ी में
फिर हो रही सियासत
कभी तो बनो मर्मशील तुम
उनकी करो हिफाजत
चीख-चीख चिल्ला रही बेबस
पीड़ित अबला नारी
दरिंदों की एक टोली की
बहनें बनीं शिकारी
– पूरन ठाकुर ‘जबलपुरी’, कल्याण
बरसात जरा थम के
नीले अंबर पर घनघोर घटा छाई
मौसम ने अपनी रुख बदलती दिखलाई
पक्षी चहक उठे खिले हैं उपवन वन के
जैसे प्रकृति कह रही हो
ऐ बरसात जरा थम के
जब आई तब लाई है कई सौगात
श्रावण मास संग भोलेनाथ का प्यार
भाद्रपद में गूंज उठे अंबार
जब भी आई तब आऊ झूम-झूम के
ऐ बरसात जरा थम के
नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी आस में बैठे थे
जब आओ तुम तब भीगने की उल्लास में बैठे थे
आते ही तेरे खिल उठे उनके चेहरे उदासी से
समय ने कहा दूर करो पल इंतजार के
ऐ बरसात जरा थम के
आने का संकेत देती हो बरसने के पहले
संग लाती हो आशाओं की हवाई ठंडी ठंडी
लोगों की कामना है रहती आओ तुम संभल के
समय से आना समय से जाना
ऐ बरसात जरा थम के
– मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’, मुंबई
मिट्टी का तन
मिट्टी का तन है ये मिट्टी हो जाएगा
यादों में मानुष तन धूं-धूं खो जाएगा
कुछ तो लकड़ियां होंगी, आग और घी होगा
अस्थियां बचेंगी कुछ शेष सब हवन होगा
मित्र कुछ हंसेंगे और कुछ तो गालियां देंगे
मुक्ति मिल गई इससे कुछ तो तालियां देंगे
आदमी तो अच्छा था, था वो गलत संगत में
बामन था पर वो नहीं बैठा किसी पंगत में
दोस्त था सभी का वो हंसता-मुस्कराता था
भोला था विष पीकर मित्रता निभाता था
विष पी चला गया नीलकंठ रूठ गया
आश्रय का एक बड़ा वृक्ष आज सूख गया
अनचाहे मन से और सूखी सी आंखों से
उड़ जाए पंछी ज्यों चिरपरिचित शाखों से
खुशबू को खोजेगी हवा भी मशान की
चिता जल रही होगी एक मलिन शान की।
– वागीश
इस मधुमास में
राह देखे एक विरहन श्रावणी मधुमास में
प्रिय के आवन की खबर उनके दरस की प्यास में
क्या हुआ आए नहीं क्यों राम जाने इस बरस
मेघ बरसे जब चुनर भीगी उन्हीं की आस में
याद उनकी हैं दिलाते बाग के झूले सभी
सारी खुशियां हैं समाहित बस उन्हीं के पास में
दामिनी यह मेघ की है कुछ जलाती इस कदर
जेठ की हो ज्यों दुपहरी यूंं जले संत्रास में
देख हरियाली घटाएं मन तड़पता है प्रिये
हम विरह में जल रहे हैं बैठकर आवास में
अब प्रतीक्षा का समय काटे नहीं कटता सखी
है मिलन की कामना मन में मेरे विश्वास में
भूख भी अब मर चुकी है प्यास छू मंतर हुई
दूर उनसे रह ‘किरण’ व्याकुल है सावन मास में
– रोशनी किरण
नारी का सम्मान
जहां नारी का सम्मान है
वहां देश का कल्याण हैं
क्योंकि नारी के खातिर महाभारत हुआ
और नारी के खातिर ही रावण का वध हुआ
कुछ भी हो देश की हर नारियों
का सम्मान करना है
ये देश है वीर जवानों का
यहां गांधी जैसे रहते थे
यहां बुद्ध जैसे महान पुरुष का जन्म हुआ
यह देश है अपना ही घर
क्यों करें ये जुल्म
हे दरिंदो तू इलाही से डर…
– मनोज कुमार, गोंडा, उत्तर प्रदेश